हिंडनबर्ग रिसर्च बॉडी का बंद होना अडानी समूह के लिए राहत की बात
विवादित इक्विटी रिसर्च फर्म हिंडनबर्ग अचानक बंद हो गयी है। संचालन को समाप्त करते हुए, फर्म के संस्थापक और शॉर्ट-सेलर ने कहा कि ‘यह उनके जीवन का केवल एक अध्याय था’, न कि एकमात्र अध्याय।
हिंडनबर्ग के बंद होने की खबर ने तुरंत भारत में राजनीतिक मोड़ ले लिया। जहां एक ओर सत्तारूढ़ भाजपा ने कहा था कि हिंडनबर्ग जैसे एजंट ‘आर्थिक आतंकवादी’ थे, जिन्होंने भारत में मूल्यवान को नष्ट करने का काम किया, वहीं दूसरी ओर विपक्षी कांग्रेस ने कहा कि हिंडनबर्ग के बंद होने की इस घटना का अर्थ यह नहीं कि अडानी समूह पर भ्रष्टाचार और कदाचार के प्रयासों के सभी आरोप अब समाप्त हो गये हैं तथा समूह पाक-साफ हो गया है।
हिंडनबर्ग भारत में तब चर्चा में आया जब उसने अडानी समूह की उभरती कंपनियों पर रिपोर्ट प्रकाशित की, जिसमें कहा गया कि समूह पर भारी कर्ज का बोझ है, जिसका बैलेंस शीट में उचित प्रावधान नहीं किया गया है। अडानी पर महत्वपूर्ण सरकारी मंजूरी और अनुबंध प्राप्त करने के लिए सरकारी अधिकारियों को रिश्वत देने जैसे अन्य आरोप भी थे।
हिंडनबर्ग के इशारे पर अमरीकी अधिकारियों ने अडानी समूह के मामलों की जांच शुरू की थी, क्योंकि भारतीय समूह ने अमरीका में धन जुटाया था। अमरीकी अधिकारी उनके भतीजे गौतम अडानी को गिरफ्तार करने के आदेश जारी करने की हद तक चले गये थे। अडानी समूह ने कुछ अमरीकी फंड वापस करके स्थिति को पुन: प्राप्त करने की कोशिश की थी। फिर भी पीछे हटने की कार्रवाई के बावजूद, हिंडनबर्ग की रिपोर्ट ने अडानी समूह की कंपनियों के बाज़ार पूंजीकरण से भारी मूल्य मिटा दिया था।
हिंडनबर्ग रिपोर्ट सार्वजनिक होने से पहले, अडानी समूह के प्रमुख प्रमोटर गौतम अडानी को मुकेश अंबानी से आगे धन की दुनिया में सबसे अमीर व्यक्तियों में से एक माना जाता था। रिपोर्ट के प्रकाशन ने उनकी संपत्ति को इतना कम कर दिया कि वे नीचे गिर गये। अडानी समूह पर हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के प्रकाशन के बादए समूह की कंपनियों के शेयरों में भारी गिरावट आयी और निवेशकों ने अपनी इक्विटी होल्डिंग पर बड़ी रकम खो दी। हालांकि बाद में शेयर की कीमतें पूरी तरह से ठीक हो गयीं।
इस बीच हिंडनबर्ग ने वह किया जिसे ‘शॉर्ट सेलिंग’ के रूप में जाना जाता है, यानी, जब कोई निवेशक किसी शेयर की कीमत गिरने की उम्मीद करता है तो इस तरह कीमत गिरने की उम्मीद में उन्हें बेच देता है। इन निवेशकों को ‘शॉर्ट सेलर’ या ‘मंदी’ की स्थिति लेने वाले निवेशक कहा जाता है। अडानी समूह पर हिंडनबर्ग की रिपोर्ट ने बिल्कुल इसी तरह की स्थिति पैदा की है और आम निवेशकों को बहुत नुकसान हुआ है। हालांकि शोध फर्म संयुक्त राज्य अमरीका के साथ-साथ भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) में भी जांच के घेरे में आ गयी थी।
अडानी शेयरों के अलावा शोध फर्म ने कई अन्य कंपनियों पर भी इसी तरह की रिपोर्टें प्रकाशित की थी। अमरीकी प्रतिभूति निरीक्षण निकाय, प्रतिभूति और विनिमय आयोग (एसईसी) ने भी अपनी रिपोर्टों के माध्यम से फर्म की प्रथाओं और बाज़ार में हेरफेर की जांच शुरू कर दी थी। संभवत: इन सभी जांचों के दबाव में और आगे के खुलासों की प्रत्याशा में, फर्म ने अपने परिचालन को बंद करने का फैसला किया। हिंडनबर्ग भी भारी संकटग्रस्त मुद्रा व्यापारी जॉर्ज सोरोस के साथ अपने संबंधों के कारण जांच के घेरे में था।
जैसे ही हिंडनबर्ग बंद होने की रिपोर्टें सामने आयीं, अडानी समूह के कर्मचारियों और निवेशकों में खुशी की लहर दौड़ गयी। कुछ ने तो यहां तक कहा कि अडानी समूह की अजेयता की स्थिति सही साबित हुई। हालांकि, कांग्रेस प्रवक्ता जयराम रमेश ने इस बात पर जोर देने का बीड़ा उठाया कि इसका मतलब अडानी समूह को ‘क्लीन चिट’ नहीं है। समूह भारतीय बाजार में कई आरोपों का सामना कर रहा है। कुछ की जांच सेबी द्वारा की जा रही है।
भारत सरकार और उसकी जांच एजंसियों को यह सुनिश्चित करने में उचित काम करना चाहिए कि अडानी समूह की कंपनियां बाज़ार के सिद्धांतों का पालन करें और अपने बाज़ार पूंजीकरण को बढ़ाने के लिए शेयरों की कीमतों में हेरफेर न करें। भारत के लोग विदेशी एजंसियों की रिपोर्टों से प्रभावित होते हैं क्योंकि उन्हें सेबी जैसी भारतीय एजंसियों की निष्पक्ष कार्यप्रणाली पर संदेह है। यह खत्म होना चाहिए। नरेंद्र मोदी सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि अडानी समूह को उसकी नियामक एजेंसियों से किसी भी अन्य भारतीय कंपनी की तरह ही समान व्यवहार मिले। कोई वरीयता नहीं। (संवाद)