आवारा कुत्तों की समस्या
पंजाब में आवारा कुत्तों का कहर निरंतर जारी है। प्रतिदिन आवारा कुत्ते प्रदेश के किसी न किसी शहर अथवा ग्रामीण क्षेत्र में लोगों विशेषकर बच्चों, महिलाओं और वृद्धों को अपना शिकार बना रहे हैं। इनमें से अधिकतर अपने प्राण गंवा बैठते हैं। ताज़ा घटना पटियाला के क्षेत्र नाभा के अंतर्गत स्थित एक गांव ढ़ींगी की है, जहां आवारा कुत्तों ने एक 9 वर्षीय बच्चे को अपना शिकार बनाया है। इस प्रकार की यह कोई पहली घटना नहीं है। इससे पहले लुधियाना के गांव हसनपुर में 11 वर्षीय बच्चे हरसुखप्रीत को कुत्तों ने नोच-नोच कर मार दिया था। इस गांव में ही कुछ दिन पहले एक और 10 वर्ष के बच्चे अर्जुन को इसी तरह कुत्तों ने नोच-नोच कर खा लिया था। इसके बाद गांव के लोगों ने सड़क जाम करके गांव के पास से हड्डा रोड़ी उठाने की मांग की थी। कुछ दिन पहले ही सैसोंवाल खुर्द (लुधियाना) में भी एक डेढ़ वर्षीय बच्चे राजबीर सिंह को कुत्तों ने बुरी तरह जख्मी कर दिया था। वर्ष 2024 की फरवरी में भी पटियाला में आवारा कुत्तों ने 12 वर्षीय के बच्चे को नोच-नोच कर खा लिया था। अभी कुछ दिन पहले जालन्धर में भी घर के बाहर खेल रहे एक बच्चे को आवारा कुत्ते उठाकर ले गये और नोच-नोच कर उसको खा गये। जालन्धर में एक बुज़ुर्ग महिला पर भी हमला करके कुत्तों ने बुरी तरह जख्मी कर दिया था। हालात इस कदर खराब हो चुके हैं कि अबोहर में पिछले दिनों आवारा कुत्ते आपस में लड़ते हुए एक घर में दाखिल हो गये और डेढ़ साल के नवजन्मे बच्चे की आंख निकाल कर खा गये।
यह समस्या केवल पंजाब की ही नहीं है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार देश भर में लगभग 6 करोड़ से भी ज्यादा आवारा कुत्ते हैं। वर्ष 2019-2022 के समय के दौरान 1.6 करोड़ कुत्तों के काटने के मामले दर्ज किये गये थे। देश में प्रतिवर्ष 18000-20000 के करीब लोग कुत्तों के काटने के कारण अपनी जान गवा रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संस्था के मुताबिक दुनियाभर में कुत्तों के काटने के कारण होती मौतों में 36 प्रतिशत मौतें केवल भारत में होती हैं। पंजाब तथा हरियाणा हाईकोर्ट में भी कई बार यह मामला उठा है और अदालत ने पंजाब सरकार को कुत्तों के काटने पर कम से कम पीड़ित को 10 हज़ार रुपये मुआवज़ा देने के लिए कहा था।
कुत्तों के हमलावर होने के पीछे कई कारण ज़िम्मेदार बताए जाते हैं। एक अध्ययन के अनुसार भूखे तथा प्यासे होने के कारण कुत्ते इंसानों पर अधिक हमले करते हैं। दूसरी ओर गांवों के निकट हड्डारोड़ी होने के कारण आवारा कुत्ते, वहां अपना भोजन ढूंढते हैं, जिस कारण वे खूंखार बन जाते हैं।
वर्ष 2001 से पहले नगर निगम तथा नगर पालिकाओं के अधिकारी सार्वजनिक स्थानों को सुरक्षित रखने के लिए आवारा कुत्तों की समस्या का समाधान अपने स्तर पर कर देते थे, परन्तु वर्ष 2001 में भारत सरकार द्वारा पशु जन्म नियंत्रण (कुत्ते) नियम लागू कर दिया गया। इस कानून के तहत आवारा कुत्तों की नसबंदी, उनका मुंह बांधना तथा रेबीज़ के खिलाफ सुझाव दिए गए हैं। इन्हें लागू करने की ज़िम्मेदारी स्थानीय निकाय अर्थात म्युनिसिपल कमेटियों पर छोड़ दी गई है, जो कि सही ढंग से कुत्तों को नियंत्रित करने में विफल रही हैं। इस कारण आवारा कुत्तों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। आवारा कुत्तों की संख्या बढ़ने के पीछे एक अन्य कारण यह है कि कुछ लोगों द्वारा कुछ समय तक कुत्ता रख कर फिर आवारा छोड़ दिया जाता है।
देश के सामने यह एक बड़ी समस्या खड़ी हो गई है। नि:संदेह केन्द्र सरकार ने मानवता के आधार पर अंग्रेज़ों के समय के कुत्तों को ज़हर की गोलियां देकर मारने के अमल पर रोक लगा कर जीवों के प्रति एक उदारता वाला कदम उठाया था, परन्तु अब जब उसका बदला हुआ कानून बुरी तरह विफल हो गया है और लोगों के लिए, विशेषकर महिलाओं एवं बच्चों के लिए आवारा कुत्ते जान के लिए खतरा बन गए हैं तो इसका समाधान करना भी केन्द्र तथा राज्य सरकारों का काम है। इस संबंधी सरकारों द्वारा शीघ्र-अतिशीघ्र कोई प्रभावी नीति बनानी चाहिए। विश्व के विकसित देशों का भी इस संबंधी अध्ययन करना बनता है कि वे इस समस्या का कैसे समाधान कर रहे हैं। इस गम्भीर समस्या के कारण लोगों में व्यापक स्तर पर असुरक्षा की भावना पैदा हो गई है, जिसे दूर करना सरकारों का ही काम है।