बिहार मतदाता सर्वेक्षण में हैं अनेक त्रुटियां
बिहार में मतदाता सूचियों की गहन समीक्षा का जो नाटक चुनाव आयोग कर रहा है, उसमें हर दिन नए खुलासे हो रहे है। एक तरफ चुनाव आयोग का दावा है कि बिहार के 50 फीसदी से ज्यादा मतदाताओं ने मतगणना प्रपत्र भर कर जमा करा दिया है। दूसरी ओर योगेंद्र यादव की संस्था की ओर से कराए गए सर्वे का कहना है कि आधे से ज्यादा लोगों को प्रपत्र मिला ही नहीं है यानी चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में भी गलत जानकारी दी है। इस नाटक को लेकर एक और खुलासा हुआ है, जिससे चुनाव आयोग की स्थिति हास्यास्पद बनती है। पता चला है कि चुनाव आयोग ने जिन 11 दस्तावेज़ों के आधार पर लोगों को मतदाता बनाने का फैसला किया है। उनमें से तीन में जन्म तिथि या निवास का पता लिखा ही नहीं होता है और दो दस्तावेज़ बिहार में बनते ही नहीं है। अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के प्रमाण-पत्र, वन अधिकार प्रमाण-पत्र पर और आवासीय पता यानी डोमिसाइल सर्टिफिकेट पर या तो जन्म की तिथि नहीं होती है या निवास का पता नहीं लिखा होता है। ये दो चीजें ही मतदाता बनने के लिए चाहिए। फिर इन तीन में से किसी एक दस्तावेज के आधार पर कोई मतदाता कैसे बन पाएगा? इसके अलावा दो दस्तावेज है एनआरसी और फैमिली रजिस्टर। इन दोनों दस्तावेज़ों का बिहार में अस्तित्व ही नहीं है। फिर ये दस्तावेज़ बिहार के लोग कहां से लाएंगे? कुल मिला कर इससे चुनाव आयोग अपनी बची-खुची साख को चौपट करने पर आमादा नजर आ रहा है।
किसी ने तो दिखाई चीन को लाल आंख!
गुजरात का मुख्यमंत्री रहते नरेंद्र मोदी अक्सर केंद्र सरकार को ललकारते थे कि वह चीन को लाल आंख दिखाए। मगर खुद प्रधानमंत्री बने तो अरुणाचल प्रदेश, लद्दाख और सिक्तिम में चीनी सेना के घुस आने के बाद भी चीन को लाल आंख नहीं दिखाई। बहरहाल यह हिम्मत अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने दिखाई है। पेमा खांडू ने चीन को लेकर वह कहा है, जो कहने की हिम्मत पिछले कई दशकों में भारत के किसी भी नेता ने नहीं दिखाई। खांडू ने कहा है कि भारत की सीमा तिब्बत से मिलती है, चीन से नहीं। उनका यह बयान सीधे-सीधे चीन की अखंडता और उसकी संप्रभुता को चुनौती है। यह बहुत बड़ा बयान है, क्योंकि पहली बार किसी ने तिब्बत पर चीन के अवैध कब्ज़े पर खुल कर बयान दिया है। अब तो दलाई लामा भी इस बारे में सोच समझ कर बोलते हैं लेकिन कांग्रेस के मुख्यमंत्री रहे दोरजी खांडू के बेटे, जो अब भाजपा में हैं, ने सीधे चीन को चुनौती दी है। वह इतने पर ही नहीं रुके। उन्होंने यह भी कहा कि अगला दलाई लामा चुनने का अधिकार सिर्फ मौजूदा दलाई लामा को है और चीन को इस मामले में बिल्कुल हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। इससे मिलती-जुलती बात पिछले दिनों केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने भी कही थी, जिससे केंद्र सरकार को दूरी बनानी पड़ी थी, क्योंकि चीन ने रिजिजू के बयान पर आपत्ति जताई थी।
बिहार चुनाव के समय ‘हिन्दू राष्ट्र’ की यात्रा
बिहार में विधानसभा चुनाव नवम्बर के पहले हफ्ते से शुरू होने की संभावना है। जिस समय बिहार में विधानसभा का चुनाव चल रहा होगा उस समय कई मठों के मठाधीश भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने की यात्रा निकालेंगे। यह यात्रा बिहार में नहीं होगी, लेकिन इसका मकसद निश्चित रूप से बिहार चुनाव को प्रभावित करना होगा। ऐसा इसलिए होगा क्योंकि इस यात्रा का ऐलान पटना में किया गया है। पटना में छह जुलाई को सनातन महाकुंभ का आयोजन किया गया, जिसमें रामभद्राचार्य के साथ-साथ बागेश्वर धाम के धीरेंद्र शास्त्री शामिल हुए। हैरानी की बात है कि भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने के लिए आयोजित इस महाकुंभ का उद्घाटन राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने किया। बहरहाल, इस महाकुंभ में ऐलान किया गया कि भारत को भगवा-ए-हिन्द बनाया जाए। धीरेंद्र शास्त्री ने कहा कि कुछ लोग भारत को गज़वा-ए-हिन्द बनाना चाहते हैं, लेकिन भारत भगवा-ए-हिन्द बनेगा। इसके लिए 9 नवम्बर से 16 नवम्बर तक दिल्ली से मथुरा की यात्रा निकाली जाएगी। इसमें भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने का संकल्प घोषित होगा। अगले चार महीने इसकी तैयारी होगी। देश भर के साधु-संतों को न्योता दिया जाएगा। उससे पहले बिहार में इन साधु-संतों के कार्यक्रम होंगे और कथा प्रवचन का आयोजन होगा। अगर नितीश कुमार सही स्थिति में रहते तो हो सकता था कि इसका विरोध करते लेकिन बिहार में अब सब कुछ भाजपा के हिसाब से हो रहा है।
ममता और टाटा के बीच बर्फ पिघली
टाटा समूह के चेयरमैन नटराजन चंद्रशेखरन ने कोलकाता जाकर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मुलाकात की है। ममता बनर्जी पिछले 14 साल से पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री हैं और इस दौरान टाटा संस के तीन चेयरमैन हुए। रतन टाटा और साइरस मिस्त्री दोनों चेयरमैन रहे और दोनों का निधन हो गया। चंद्रशेखरन को भी टाटा संस का चेयरमैन बने आठ साल से ज्यादा हो गए हैं। लेकिन पिछले 14 साल में ममता बनर्जी से मिलने टाटा संस का कोई चेयरमैन नहीं गया। अब जबकि ममता बनर्जी अपने चौथे कार्यकाल के लिए चुनाव में उतरने की तैयारी कर रही है तो चंद्रशेखरन ने उनसे मुलाकात की। गौरतलब है कि टाटा समूह की नैनो कार की फैक्टरी सिंगुर में लगाने के खिलाफ ममता ने आंदोलन किया था। उसी आंदोलन की लहर पर सवार होकर ममता बनर्जी 2014 में बंगाल की मुख्यमंत्री बनी थीं। उन्होंने टाटा समूह को दी गई जमीन का अधिग्रहण रद्द कर दियाए जिसके बाद गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने नैनो प्रोजेक्ट के लिए अपने यहां जमीन दी। हालांकि नैनो प्रोजेक्ट विफल रहा, लेकिन तभी से ममता और टाटा समूह के बीच तनाव बना हुआ था। अब 14 साल के बाद टाटा संस के चेयरमैन ने ममता बनर्जी से मुलाकात की तो यह बर्फ पिघलने का संकेत है लेकिन उससे बड़ा संकेत इस बात का है कि ममता अभी बंगाल में रहने वाली हैं। अगर अगले चुनाव में उनकी विदाई के संकेत मिल रहे होते तो टाटा संस का चेयरमैन 14 साल का झगड़ा भुला कर उनसे मिलने नहीं जाता।
पुराने वाहनों को चार महीने की राहत
राजधानी दिल्ली में उम्र की सीमा पूरी कर लेने वाले वाहनों को मिली चार महीने की मोहलत का मतलब किसी को समझ में नही आ रहा है। लोगों में इस बात को लेकर नाराजगी है कि अगर उनके 10 साल पुराने डीज़ल वाहन या 15 साल पुराने पेट्रोल वाहन बेहतर रखरखाव की वजह से प्रदूषण नहीं फैला रही है तो उम्र के आधार पर उनको क्यों ज़ब्त किया जा रहा है? यह सही तर्क है। व्यावसायिक वाहन जो 10 साल में पांच लाख या उससे भी ज्यादा किलोमीटर चले हों और बहुत प्रदूषण कर रहे हैं तो उनको ज़ब्त करना तो बनता है लेकिन निजी वाहन जो 10 साल में एक लाख किलोमीटर भी नहीं चला हो, उसे क्यों ज़ब्त किया जा रहा है? इस आधार पर लोगों ने विरोध किया, खास कर मध्य वर्ग ने जो भाजपा का समर्थक है तो दिल्ली सरकार ने वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग से इसे टालने का आग्रह किया। सीएक्यूएम ने इस आग्रह को मंजूर करके इस अभियान को चार महीने टाल दिया है। अब सवाल है कि चार महीने में क्या बदल जाएगा? लोग तो तब भी यह सवाल उठाएंगे कि सरकार कार कम्पनियों से मिली हुई है। उनकी बिक्री बढ़वाने और अपनी टैक्स की कमाई बढ़ाने के लिए यह कदम उठाया जा रहा है। चार महीने के बाद पुराने वाहनों को पेट्रोल व डीज़ल नहीं देने और उन्हें ज़ब्त करने का अभियान दिल्ली के साथ-साथ एनसीआर में भी चलेगा यानी हर हाल में वाहन ज़ब्त होंगे।