सड़क हादसों पर गडकरी की चिन्ता जायज़

भारत की सड़कों की गुणवत्ता को लेकर ग्रामीण क्षेत्रों से लेकर शहरी क्षेत्रों तक में आए दिन सवाल सामने आते रहे है। कभी सड़क निर्माण होने के एक माह और तीन माह के बीच ही सड़क की परतें बिखरने, शहरों में बनने वाली सड़कों दस फिट से लेकर 15 फिट तक होल होने सहित कई घटनाएं सामने आती रहती है जो इस बात का प्रमाण है कि सड़कों के निर्माण में गुणवत्ता और नियमों की कही न कही अनदेखी की जा रही है। 2021 में देश में सड़क हादसों में 1,53,972 मौतें हुई थीं, जो 2022 में बढ़कर 1,68,491 हो गईं। हालिया केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने 12 दिसम्बर को कहा था कि दुनिया में सड़क हादसों को लेकर सबसे खराब रिकॉर्ड हमारा है। सड़क हादसों पर उनकी याह चिंता बिल्कुल जायज़ है।  सड़क दुर्घटनाएं न केवल जान-माल की हानि करती है, बल्कि इससे देश की अर्थव्यवस्था पर (स्वास्थ देखभाल की नज़र से) भी काफी दुष्प्रभाव पड़ता है। हालांकि हर सड़क दुर्घटना में सड़के ही जिम्मेदार हो ऐसा नहीं है। कई सड़क दुघर्टनाओं में देखा गया है कि ज्यादा रफ्तार से गाड़ी चलाने, नशे में गाड़ी चलाने, गाड़ी चलाते समय मोबाइल पर बात करने, ओवरटेकिंग करते समय लापरवाही, यातायात के नियमों का उल्लंघन, सड़क सुरक्षा के प्रति जागरूक न होने, वाहन चालकों का यातायात के चिन्हों पर ध्यान न देना और पैदल चलने वालों का भूमिगत और पैदल पारपथ का इस्तेमाल न करने के कारण भी सड़क दुघर्टनाओं में मौते हुई है। 
यानि सड़क दुर्घटनाओं पर काबू न पाए जा सकने को लेकर केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री की चिंता वाजिब है। इसके लिए वे खराब सड़क निर्माण को जिम्मेदार मानते हैं। इसके पहले भी उन्होंने संसद में कहा था कि विदेश में जब भी भारत में सड़क दुर्घटनाओं और सड़कों के निर्माण को लेकर बात होती है, तो उन्हें शर्म से मुंह छिपाना पड़ता है। सड़क दुर्घटनाओं के मामले में भारत दुनिया में पहले स्थान पर है। उनके अनुसार खराब सड़क निर्माण को गैर-जमानती अपराध बना दिया जाना चाहिए। सड़क निर्माण के ठेकेदारों और इंजीनियरों को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए। नि:संदेह यह सुझाव कठोर लग सकता है। मगर चूंकि सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने संकल्प लिया है कि वह 2030 तक सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों को घटा कर आधा करना है तो इस संकल्प को बिना ऐसे कठोर कदम के हासिल नही किया जा सकता। मंत्रालय के अनुसार 2023 में पांच लाख सड़क दुर्घटनाएं हुई, जिनमें से एक लाख बहत्तर हजार लोगों की मौत हो गई। इनमें से एक लाख चौदह हजार लोगों की उम्र 18 से 35 वर्ष के बीच थी। इसका मतलब है कि हर दिन औसतन 474 लोगों की जान गई या लगभग हर तीन मिनट में एक मौत हुई। 
सड़क दुर्घटनाओं पर काबू पाने के लिए कई उपाय आजमाए जा चुके हैं। यातायात नियमों के उल्लंघन पर भारी जुर्माने का प्रावधान किया गया। जगह-जगह सीसीटीवी कैमरे लगाए गए। मगर इसका कोई उल्लेखनीय असर नज़र नहीं आया। सड़क दुर्घटनाएं हर वर्ष कुछ बढ़ी हुई ही दर्ज होती हैं। सड़क दुर्घटनाओं में मौत का सबसे बड़ा कारण सड़कों का खराब ढंग से निर्माण चिन्हित किया गया है। राजमार्गों और द्रुतगामी सड़कों पर चौड़ाई आदि में एकरूपता और मोड़ों पर उचित तकनीक का इस्तेमाल न होने के कारण दुर्घटनाएं और मौतें अधिक होती हैं। परिवहन मंत्री ने इस बात की पहचान की और इसे स्वीकार भी किया। सड़कों पर जिन वजहों से दुर्घटनाएं और मौतें होती हैं, उन्हें दूर करने के लिए भारी रकम भी आबंटित की गई है। परिवहन मंत्री ने माना है कि खराब निर्माण सामग्री के इस्तेमाल और अव्यावहारिक डिजाइन की वजह से सड़क दुर्घटनाएं होती हैं। उनकी चिंता जायज़ है, लेकिन इसके लिए जिम्मेदारी तय कौन करेगा। 
यह सर्वविदित है कि सड़क निर्माण में भ्रष्टाचार का पैमाना काफी ऊंचा है। सड़कों के ठेके देने से लेकर उनकी लागत तय करने और फिर तैयार सड़कों की गुणवत्ता का आकलन करने तक अनियमितताएं उजागर होती रहती हैं। इस तरह यह भ्रष्टाचार का एक संगठित तंत्र जैसा बन गया है। ऐसे में अगर ठेकेदारों और इंजीनियरों की कमियों को गैर जमानती अपराध घोषित कर भी दिया जाता है, तो उनमें इसका कितना भय होगा, कहना मुश्किल है। सड़कों की बनावट मानकों के अनुरूप नहीं है, इसका आकलन तो संबंधित महकमे को करना होता है। वैसे भी आम आदमी लाख शिकायत करते रहें कि सड़कों का निर्माण ठीक नहीं हुआ है, उनकी सुनवाई नहीं होती। यह अकारण नहीं है कि कई जगह उद्घाटन के बाद ही किसी सड़क के बारिश मे धस या बह जाने, पुल के गिर जाने की खबर सुर्खियों में होती है। इसलिए सड़कों की गुणवत्ता मापने वाले तंत्र में भी पारदर्शिता लाने की ज़रूरत है। इस मसले पर सिर्फ चिंता जताने के बजाय सख्त और स्पष्ट नीति जमीनी स्तर पर लागू करने को लेकर ठोस पहल करनी होगी।

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