देर आयद, दुरुस्त आयद!
केन्द्र सरकार के खेल मंत्रालय ने भारतीय कुश्ती संघ को अगले आदेशों तक निलम्बित करके नि:संदेह रूप से देश के खेल जगत में उपजे एक गम्भीर विवाद को विद्रूप होने से रोक दिया है। इस घोषणा के बाद बेशक संघ की नव-निर्वाचित कार्यकारिणी के फैसलों पर रोक लगाई गई है, किन्तु सरकार द्वारा कुश्ती संघ को बर्खास्त नहीं करने अथवा विवाद की जड़ इन चुनावों को रद्द नहीं करने से स्थिति की अस्पष्टता भी पूर्ववत् बनी रहती है। तथापि सरकार के इस फैसले से खेल मंत्रालय और देश के पहलवानों के बीच वार्तालाप का एक द्वार अवश्य खुला है। भारतीय कुश्ती संघ के पूर्व प्रधान भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह और देश की कुछ स्टार महिला पहलवानों के बीच उपजा विवाद लगभग एक वर्ष पुराना है। देश की ओलम्पिक अथवा अन्य कई प्रकार की राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पदक विजेता महिला पहलवानों ने बृजभूषण शरण सिंह पर शारीरिक शोषण एवं जिस्मानी छेड़छाड़ के गम्भीर आरोप लगाते हुए नई दिल्ली में कई महीने लगातार आन्दोलन किया था। इस आन्दोलन की गूंज संसद और प्रधानमंत्री कार्यालय तक भी पहुंची थी। देश भर के महिला और पुरुष पहलवानों ने सर्दी-बरसात की अनेक रातें सड़क पर बैठ कर बिताई थीं। पहले तो सरकार के कानों पर किसी भी मरहले पर जूं तक नहीं रेंगी, किन्तु बाद में सरकार ने बृजभूषण शरण सिंह को अध्यक्ष-पद से हटा कर और नये चुनाव में उसके किसी विश्वासपात्र को अध्यक्ष न बनाने का वायदा करके आन्दोलन को स्थगित कराने हेतु सफलता हासिल कर ली थी।
तथापि, जून मास से स्थगित हुए इस आन्दोलन के ठहरे हुए जल में उस समय फिर तूफान आते प्रतीत हुआ जब भारतीय कुश्ती संघ के 21 दिसम्बर को सम्पन्न हुए चुनाव में पूर्व आरोपित एवं बर्खास्त अध्यक्ष बृज भूषण शरण सिंह के अति निकटवर्ती संजय सिंह को नया अध्यक्ष चुन लिया गया। नि:संदेह इससे आन्दोलनकारी पहलवानों के ज़ख्म हरे हो गये, और विशेषकर महिला पहलवानों के घावों पर तब नमक भी छिड़का गया जब बृजभूषण शरण सिंह ने सरेआम कैमरे के सामने विजय-चिन्ह बनाते हुए चुनौती दी, कि दबदबा था, दबदबा है, और रहेगा भी। नि:संदेह रूप से इस सम्पूर्ण घटनाक्रम की तीव्र प्रतिक्रिया होती। इस प्रतिक्रिया के स्वरूप अपने रुंधे हुए गले और प्रधानमंत्री के नाम लिखे एक पत्र के साथ ओलम्पिक पदक विजेता बजरंग पूनिया ने अपना पद्म-श्री सम्मान उनके आवास के बाहर सड़क के फुटपाथ पर रख दिया। इससे एक दिन पूर्व ही सर्वाधिक आहत एवं प्रभावित हुई एक अन्य ओलम्पिक पदक विजेता महिला पहलवान साक्षी मलिक ने बाकायदा एक पत्रकार सम्मेलन के दौरान कुश्ती खेल जगत से संन्यास लेने की घोषणा करते हुए अपने ‘बूट’ मंच पर रख दिये थे। हरियाणा के एक अन्य पहलवान बीरेन्द्र सिंह द्वारा अपना पद्म-श्री पदक लौटाने की घोषणा के बाद कुश्ती पदक विजेता विनेश फोगाट ने भी ऐसी ही तीव्र प्रतिक्रिया व्यक्त की थी।
बहुत स्वाभाविक है कि बृज भूषण सिंह द्वारा चुनाव परिणाम के बाद की गई इस नितांत निर्लल्ज प्रतिक्रिया के बाद पहलवानों की ओर से भी जवाबी प्रतिक्रिया होती और ऐसा हुआ भी। ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार संभवत: पूर्व अध्यक्ष की दबंगता और उसकी राजनीतिक शक्ति से भयभीत है, अथवा पूर्व अध्यक्ष ही केन्द्र की शक्तिशाली सरकार को ठेंगा दिखाये जाने पर आमादा है। यदि ऐसा नहीं, तो क्या कारण है कि अतीत में इस प्रकार की गम्भीर शिकायतों अथवा आरोपों के दृष्टिगत, केन्द्र की भाजपा सरकार अपने ही कई दिग्गजों को बाहर का रास्ता दिखाये जाने के बावजूद, बृज भूषण शरण सिंह के मामले में आंखें मूंद लेने हेतु विवश दिखाई देती है। बृज भूषण शरण सिंह के विरुद्ध आरोप कितने पुष्ट और संजीदा थे, इसका पता इस बात से भी चल जाता है कि दिल्ली की पुलिस ने अदालत में पेश होकर इस आरोप की पुष्टि की थी कि वह महिला पहलवानों के शारीरिक शोषण अथवा उनके साथ छेड़छाड़ का कोई अवसर चूकता नहीं था। इसके बावजूद उसके विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं की गई, तो इससे सरकार की बंधे-हाथों की विवशता ही प्रकट होती है। नि:संदेह देश की इन पहलवान बेटियों की आंखों से आंसुओं के ज़रिये उतरी उनकी पीड़ा को भली-भांति समझा जा सकता है, तथापि सरकार द्वारा ऐसे आरोपित व्यक्ति को संरक्षण दिये जाने की बात आसानी से गले नहीं उतरती। सरकार की यदि कोई विवशता थी भी, तो भी, मानवीय दृष्टिकोण से इन तारांकित खिलाड़ियों खासकर महिला पहलवानों के साथ सहानुभूति के साथ पेश आया जाना चाहिए था। उन्हें पूर्णतया दृष्टिविगत एवं अवहेलित किया जाना किसी भी भांति ठीक नहीं। बृज भूषण शरण सिंह द्वारा अपना दबदबा घोषित किये जाने संबंधी रवैये को तो कदापि उचित करार नहीं दिया जा सकता।
हम समझते हैं कि बेशक खेल मंत्रालय ने नई कार्यकारिणी के एक गलत फैसले के आधार पर कुश्ती संघ को केवल निलम्बित किया है, इसे भंग अथवा किसी को बर्खास्त नहीं किया। तो भी, यह फैसला एक चिंगारी को आग की लपट बनने से रोकने में अवश्य सहायक होगा। यह भी संभव है कि बजरंग पूनिया और साक्षी मलिक भी अपने फैसले पर पुनर्विचार हेतु सहमत हो जाएं। इससे सचमुच पहलवानों और खेल मंत्रालय के बीच वार्तालाप हेतु उन्मुक्त हवा के एक झोंके के लिए कोई नया वातायन अवश्य खुल सकता है। कुछ भी हो, हम इस फैसले को देर आयद, दुरुस्त आयद की तरह समझते हैं।