किसान मेले तथा धान, बासमती की काश्त

खरीफ की बिजाई का सीज़न तो अप्रैल के बाद ही शुरू होता है, परन्तु इस सीज़न में बीजने वाली फसलों की किस्मों के बीजों के चयन संबंधी किसानों ने अभी से विचार करना शुरू कर दिया है। किसान रबी-खरीफ की फसलों के संशोधित बीज किसान मेलों से खरीदने के लिए प्रयास करते हैं, क्योंकि इन मेलों में पी.ए.यू., आई.सी.ए.आर.-आई.ए.आर.आई. तथा अन्य इनसे कोलैबोरेशन करके किसान संस्थाओं द्वारा किसानों को संशोधित एवं अधिक उत्पादन देने वाली किस्मों के बढ़िया बीज उपलब्ध किए जाते हैं। इन मेलों में बीज के अतिरिक्त किसानों को ज्ञान-विज्ञान, नए कृषि अनुसंधान, वैज्ञानिक तकनीकों तथा अन्य कृषि संबंधी जानकारी दी जाती है। 
आई.सी.ए.आर.-भारतीय कृषि अनुसंधान, नई दिल्ली पूसा में तीन दिन के लिए 24 से 26 फरवरी तक ‘कृषि विज्ञान मेला’ लगा रही है। यह मेला भारत के सभी राज्यों के किसानों को सेवाएं उपलब्ध करवाएगा। संस्थान के संयुक्त निदेशक (एक्सटैंशन) डा. आर.एन. पडारिया के अनुसार देश भर से लगभग एक लाख लोग जिनमें किसान, कृषि व्यापार से संबंधित व्यक्ति, अलग-अलग राज्यों के कृषि से संबंधित कर्मचारी एवं अधिकारी, विद्यार्थी तथा अन्य कृषि से संबंधित व्यक्ति इस मेले में भाग लेंगे। मेले का विषय ‘उन्नत कृषि, विकसित भारत’ है। इस अवसर पर विशाल कृषि प्रदर्शनी भी लगाई जाएगी। योग्य चुने हुए किसानों को ‘इनोवेटिव फार्मर पुरस्कार’ तथा ‘आई.ए.आर.आई.-फैलो फार्मर’ पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा।
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय द्वारा अमृतसर ज़िले में नाग कलां जहांगीर में 5 मार्च को किसान मेला आयोजित किया जाएगा और खरीफ की फसलों के संशोधित बीज वितरित किए जाएंगे। बल्लोवाल सौंखड़ी में 7 मार्च को किसान मेला लगाया जाएगा। फरीदकोट में 11 मार्च को तथा गुरदासपुर में 13 मार्च को किसान मेले लगाए जाएंगे। बठिंडा में 18 मार्च को किसान मेला आयोजित किया जाएगा। रौणी (पटियाला) में किसान मेला 25 मार्च को लगाया जाएगा। मुख्य दो दिवसीय मेला लुधियाना में पंजाब कृषि विश्वविद्यालय परिसर में 21 तथा 22 मार्च को लगाया जाएगा। इसके अतिरिक्त आई.सी.ए.आर.-आई.ए.आर.आई.-कोलैबोरेटिव आऊट स्टेशन रिसर्च सैंटर रखड़ा में 19 मार्च को किसान विशेष प्रशिक्षण कैंप लगाया जाएगा, जिसमें पंजाब यंग फार्मज़र् एसोसिएशन द्वारा धान, बासमती तथा सब्ज़ियों के संशोधित बीज किसानों को दिए जाएंगे। आई.ए.आर.आई. रिजनल स्टेशन करनाल में कोई दिन निर्धारित करके आई.ए.आर.आई. द्वारा विकसित किस्म के बीज किसानों को वितरित किए जाएंगे। 
खरीफ के मौसम में धान पंजाब की मुख्य फसल है, जिसकी काश्त 31 से 32 लाख हैक्टेयर रकबे पर की जाती है। इस धान की काश्त के अधीन कुल रकबे में से लगभग 24 लाख हैक्टेयर रकबे पर धान की किस्में काश्त की जाती हैं और शेष रकबा बासमती की किस्मों की काश्त के अधीन आता है। गत वर्ष धान के मंडीकरण में किसानों को बड़ी परेशानियों का सामना करना पड़ा। कम समय में पकने वाली धान की पी.आर.-126 किस्म जो एक बड़े रकबे पर लगाई गई थी, उसकी फसल बेचने में किसानों को बड़ी मुश्किलें आई थीं। बहुत से स्थानों पर यह फसल एम.एस.पी. 2320 रुपये प्रति क्ंिवटल से कम करके किसानों को बेचनी पड़ी और नुकसान उठाना पड़ा। बासमती की किस्मों में गत वर्ष के मुकाबले कीमतें मंदे का शिकार हो गईं। चाहे बाद में मंडी में कुछ तेज़ी आई और दाम 3000 रुपये प्रति क्ंिवटल के आस-पास बढ़ गया। गत वर्ष किसानों को 4000 रुपये क्ंिवटल तक की बिक्री भी हुई। कई किस्मों की इससे भी अधिक दाम पर बिक्री हुई थी। इस वर्ष किसान फैसला लेंगे कि धान की पी.आर.-126 के अतिरिक्त कौन-सी किस्म लगाएं या पी.आर.-126 किस्म की ही बिजाई करें, यदि सरकार इसकी बिक्री एम.एस.पी. पर करवाना सुनिश्चित बना दे। आई.ए.आर.आई. द्वारा विकसित नई बासमती की पी.बी.-1882 किस्म जो पकने को 134 दिन लेती है और 18 से 20 क्ंिवटल प्रति एकड़ उत्पादन देती है, सूखे को सहन करने की समर्था रखती है, की सीधी बिजाई के लिए सिफारिश की गई है। यह किस्म की बीजने के लिए भी किसान उत्सुक होंगे, परन्तु इस नई किस्म का कितना बीज किन किसानों को मिलता है, यह देखने वाली बात है। इस किस्म का बीज आम किसानों को खुला दिए जाने की कोई सम्भावना नहीं। इसके अतिरिक्त आई.सी.ए.आर.-आई.ए.आर.आई. (पूसा) ने कम समय में पकने वाली धान की पूसा-2090 तथा पूसा-1824 किस्में विकसित की हैं। ये किस्में पकने को 120 से 130 दिन लेती हैं और उत्पादन क्रमश: 89 क्ंिवटल तथा 98 क्ंिवटल प्रति हैक्टेयर तक है। इन दोनों किस्मों का बीज भी पंजाब के किसानों को ज़रूरी मात्रा में उपलब्ध नहीं होगा। 
पूसा आई.सी.ए.आर.-आई.ए.आर.आई. द्वारा बासमती की अधिकतर लाभदायक किस्में जैसे पूसा बासमती-1985, पूसा बासमती-1979, पूसा बासमती-1692, पी.बी.-1847, पी.बी.-1885 तथा पी.बी.-1886 के अतिरिक्त भी विकसित करके रिलीज़ की गई हैं, जिनका उत्पादन अधिक तथा चावल बढ़िया होने के कारण किसानों के लिए लाभदायक रहेंगी।

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