श्री आनंदपुर साहिब में तीन दिवसीय राष्ट्रीय कांफ्रैंस 

श्री आनंदपुर साहिब की पवित्र भूमि पर एक दशक पहले स्थापित हुए एडवांस इंस्टीच्यूट ऑफ सोशल साइंसिज़ ने बहुत कम समय में अधिक प्रसिद्धी हासिल कर ली है। 21 फरवरी से 23 फरवरी, 2025 की राष्ट्रीय कांफ्रैंस इसका प्रत्यक्ष परिणाम है। पंजाबी अध्ययन, अध्यापन एवं अनुसंधान को समर्पित इस कांफ्रैंस के दस सत्रों में उत्तर भारत की 9 यूनिवर्सिटियों का भाग लेना इस विषय की तत्कालीन गम्भीरता पर मुहर लगाता है। याद रहे कि यह इंस्टीच्यूट सरबत दा भला चैरिटेबल ट्रस्ट के मैनेजिंग ट्रस्टी एस.पी. सिंह ओबराय का सपना है, जिन्होंने आनंदपुर साहिब की पवित्र भूमि पर सन्नी ओबराय विवेक सदन निर्मित करके इस भू-खंड के दूरवर्ती क्षेत्रों के सामाजिक एवं सांस्कृतिक बदलाव में सुधार के बिना मातृ भाषा के पढ़ने-पढ़ाने तथा भविष्य की ओर भी ध्यान दिया है। अच्छी बात यह है कि इस सपने को साकार करने में इंस्टीच्यूट की डायरैक्टर डा. भूपेन्द्र कौर की मेहनत एवं उद्दम ने सोने पर सुहागे का काम किया है। 
विदायगी सत्र की अध्यक्षता कर रहे मैडिकल यूनिवर्सिटी के पूर्व उपकुलपति डा. राज बहादुर ने अपने भाषण में सुचेत किया कि जब तक हम विश्व के अकादमिक घटनाक्रम को उत्सुकता से देखते हुए अपने अध्ययन एवं अध्यापन की विधाओं में बदलाव नहीं करेंगे, तब तक हम किसी निश्चित लक्ष्य की ओर सेधित नहीं हो सकेंगे। यदि अध्यापक के अध्यपान से संबंधित मूल तत्वों पर पकड़ नहीं तो वह विद्यार्थियों के साथ क्या न्याय कर सकता है? उन्होंने कहा कि बात यहां तक ही सीमित होती तो अध्यापक को रिफ्रैशर कोर्सों के माध्यम से जागरूक किया जा सकता था, परन्तु जब शिक्षा के क्षेत्र से जुड़ीं सरकारी एजेंसियां ही कठिन राह पर चल पड़ें तो अच्छे की आशा भी कैसे की जा सकती है? उन्होंने यह भी कहा कि मल्टी फैकल्टीस के इन स्वरों में यदि आप अन्य भाषाओं का ज्ञान उनकी व्याकरण, उनकी लिपी, सोशल साइंसिज़ के ज्ञान से अवगत नहीं तो अपने क्षेत्र का भाग्य नहीं बदला जा सकता।
डा. राज बहादुर ने कहा कि मल्टी फैकल्टी का महत्व सिर्फ सोशल साइंस या भाषाओं तक ही सीमित नहीं, मैडिकल क्षेत्र में भी फैल चुका है। मैडिकल व्यवसाय भाषाओं के ज्ञान के बिना कार्य ही कैसे कर सकता?
दिल्ली, कुरुक्षेत्र, पटियाला, बठिंडा, अमृतसर. जम्मू, धर्मशाला तथा चंडीगढ़ स्थित यूनिवर्सिटियों को एक मंच पर बुला कर पंजाबी साहित्य, संस्कृति एवं समाज के भविष्योन्मुख मामलों की खोज-पड़ताल करना कोई आसान काम नहीं था। यहां पंजाबी साहित्य में आ रही नई धाराओं पर विचार ही नहीं किया गया। आधुनिक समाज में पंजाबी भाषा की स्थिति पर भी ध्यान दिया गया और पंजाबी भाषा एवं संस्कृति पर डिजिटल मीडिया तथा तकनीक के प्रभाव का लेखा-जोखा भी किया गया।
इस सत्र के मुख्य मेहमान तथा विवेक सदन के कुलपति डा. एस.पी. सिंह ओबराय ने घोषणा की कि सरबत दा भला चैरिटेबल ट्रस्ट इस इंस्टीच्यूट को यूनिवर्सिटी बनाने का फैसला कर चुका है और इस क्षेत्र में अधिक अनुभव वाले प्रोफैसर उसके साथ हैं। उन्होंने कहा कि हम सकारात्मक परिणाम निकालने में अहम भूमिका अदा करेंगे, यह मेरा विश्वास है।
कांफ्रैंस के बारे विस्तृत रिपोर्ट पेश करते हुए केन्द्र की डायरैक्टर डा. भूपेन्द्र कौर ने तीन दिन की कारगुज़ारी की चर्चा की। उन्होंने कहा कि एक दिन यह केन्द्र अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अकादमिक क्षेत्र में अपना नाम पूरी तरह स्थापित कर लेगा। 
यहां दिल्ली दक्षिण से कृत्रिम ज्ञान तथा नई संचार टैक्नोलाजी के विशेषज्ञ डा. रवेल सिंह ही नहीं, पटियाला की साहित्यिक जोड़ी डा. जसविन्दर सिंह तथा धनवंत कौर सहित पंजाबी यूनिवर्सिटी पटियाला के पूर्व प्रोफैसर सरबजिन्दर सिंह, सुरिन्दर सिंह, मनमोहन सिंह तथा श्रीमती एवं श्री गिल भी पहुंचे हुए थे। जसविन्दर-धनवंत जोड़ी को इंस्टीच्यूट का माहौल एवं अध्यापन-अध्यापक प्रक्रिया ने बड़ा प्रभावित किया।
दुगरी गांव में दरबार-ए-बसंत
मोबाइलों पर हंसते-बसते, गाते पंजाब का केन्द्र बना गांव दुगरी एक और बाज़ी मार गया है। इस बार उस गांव के गुरुद्वारा श्री सुखमनी साहिब ने अपने बसंत ऋतु के समारोह को दरबार-ए-बसंत का नाम दिया है। यहां के प्रमुख सेवादार एवं काफला सभा के अध्यक्ष अरविन्दर सिंह नूर ने शाम को दीवान सजा कर यहां प्रसिद्ध पंथक शख्सियतों की उपस्तिथि सुनिश्चित करने के अतिरिक्त संगीत अकादमी के विद्यार्थियों को सम्मानित करके नई पौध को बुज़ुर्गों के समान पेश किया है। मुबाकर!
अंतिका
(हरदियाल सागर)
तुसीं बैठक ’च बहि के ज़िक्र जद कीता समंदर दा,
सी हाऊका तैरिया नुक्कर ’च रक्खे खोगियां ऊपर।
तमन्ना है कि बण मुस्कान हर पल खेडदा होवां,
मैं मावां नाल लग्ग के घूक सुत्ते बच्चियां ऊपर।
है नकली धुप्प, नकली पौण, नकली जल तां की होया,
असीं फुल्लदार बूटे वाह लवांगे, गमलियां ऊपर।

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