महाकुंभ के नए सबक

यह ऐतिहासिक महाकुंभ रहा। इसमें 66 करोड़ लोग विश्व के सबसे बड़े आयोजन में साक्षी रहे। 45 दिन तक चला यह आयोजन, जिसमें भारत के हर वर्ग का आम आदमी श्रद्धा की डुबकी लगाने के लिए शामिल हुआ। उसे न तो गाड़ी या बस की धक्कामुक्की या अन्य मुश्किलों की परवाह थी न ही दूर तक पैदल चलने की थकान। बच्चे, बूढ़े, महिलाएं, पुरुष, गरीब, मध्य वर्ग, उच्च वर्ग के लोग सभी का लक्ष्य एक ही था किसी न किसी तरह कुंभ में शामिल होना और पवित्र स्नान करना। विपक्ष कमियां गिनवा कर थक गया। कुछ उत्साही पानी को दूषित कह कर चिल्लाते रहे, लेकिन जन-जीवन की एकाग्र धुन पर ज़रा भी फर्क नहीं पड़ा। कुंभ स्नान के लिए अंतिम दिन डेढ़ करोड़ लोग पहुंचे। कुल 66-31 करोड़ लोगों ने स्नान किया। यह संख्या चीन, भारत को छोड़कर अन्य सभी देशों की आबादी से अधिक है। 73 देशों के राजनयिक, नेपाल के पचास लाख के अतिरिक्त इटली, फ्रांस, अमरीका सहित अनेक देशों के लाखों श्रद्धालु विश्व के इस बड़े आयोजन का हिस्सा बने। उत्तर प्रदेश में इतने बड़े आयोजन और अपार जनसमूह के आगमन से जो आर्थिक बदलाव आया है उसका आकलन अभी बाकी है, परन्तु प्रयागराज के त्रिवेणी संगम में डुबकी लगाने का जो अति-उत्साह सामने आया है वह भारत की महान परम्पराओं में अटूट विश्वास दिखाता है। हमारी आध्यामिकता में बेशक इतने लम्बे समय में कमी आई हो, लेकिन आस्था अडिग है। पुरानी मान्यताओं को जिंदा रखने का इससे बड़ा उदाहरण कहीं नहीं मिलेगा। पता चला है कि हमारे देश के आम नागरिक में जीने की इच्छा और संघर्ष आज भी अद्भुत है। उच्च मध्य वर्ग, उच्च वर्ग ने पढ़ लिख कर, अवसरों का लाभ उठाकर जीवन स्तर को बेशक बेहतर बनाया है या अपना तथा बच्चों का भविष्य संवार लिया हो, लेकिन एक मामूली आदमी अपनी अभावग्रस्त ज़िन्दगी में आशा और आस्था का दीप जलाए खड़ा है। आप क्या वास्तविकता का प्रचार कर उनसे यह सहारा भी छीन लेना चाहते हो।
आम आदमी जब धनाभाव, बीमारी, दु:ख परेशानी से लड़ता हुआ, इतनी बड़ी भीड़ में, इतनी मुश्किल यात्रा के बाद संगम में स्नान करने आता है तो उसके मन में कहीं न कहीं पाप से मुक्ति का एहसास बना रहता है। जब कानून से, व्यवस्था से डर खत्म हो रहा हो, तब भी पाप से डरना अंतरात्मा के सजग होने, संवेदनशीलता बने रहने का संकेत है जोकि समाज की बेहतरी का सूचक ही है।  यह भी महसूस किया जा रहा है कि जब ए.आई. का दौर शुरू हो चुका हो तब यह आस्था, यह उद्धार भारत की विशेष पहचान बन सकता है। अब दावा किया जाने लगा है कि आने वाले एक दशक में मनुष्य ही नहीं रोबोट भी मनुष्य की तरह सोच सकता है। तब विकास के लिए सभी दरवाजे खोलता भारत इस आस्था और पदभार पर गर्व कर सकता है। उसकी चेतना का मशीनीकरण इतना भी आसान नहीं है। कुंभ में लाखों लोग, एक ही समय, एक ही स्थान पर रोज स्नान करते रहे हैं। किसी ने किसी की जाति नहीं पूछी, किसी ने किसी के मजहब, मान्यता, आस्था पर सवाल नहीं उठाया। किसी ने किसी की इनकम नहीं पूछी। कोई भेदभाव कहीं भी नज़र नहीं आया। इसका मतलब है कि भारत एक बड़े परिवर्तन के लिए तैयार हो रहा है। वह है भेदभाव रहित एक आम आदमी की आम जगह। अब समाज के सुधारक संस्थान भारत भर के आम आदमी को तुच्छ विभाजन से ऊपर उठने का संदेश सफलता से दे सकते हैं।

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