हथियार के रूप में किया जा रहा टैरिफ का इस्तेमाल

दुनिया अभी कोविड-19 महामारी की छाया से उभर चुकी है, जो एक ऐसा संकट जिसने लगभग सभी देशों की अर्थव्यवस्था को तबाह कर दिया, आपूर्ति श्रृंखलाओं को बाधित कर दिया और वित्तीय बाज़ारों को उथल-पुथल कर दिया था। जैसे-जैसे राष्ट्र पुनर्निर्माण का प्रयास कर रहे हैं, एक और तूफान मंडराने लगा है जो महामारी से भी अधिक घातक और लंबे समय तक चलने वाला है। अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा घोषित टैरिफ  के रूप में जाना जाने वाला आर्थिक वायरस ने अपना विघटनकारी मार्च शुरू कर दिया है जिससे वैश्विक व्यापार और आर्थिक स्थिरता पर ग्रहण लग सकता है। 
झटके पहले से ही स्पष्ट हैं कि वैश्विक बाज़ार बेचैनी के साथ प्रतिक्रिया दे रहा है। व्यवसायक अपनी रणनीतियों को फिक से तैयार कर रहे हैं और सरकारें इसके विपरीप प्रभाव से बचने के लिए स्वयं को तैयार कर रही हैं। दुनिया आर्थिक कूटनीति में एक अराजक और अप्रत्याशित बदलाव देख रही है, जिसे एक ऐसे नेता द्वारा संचालित किया जा रहा है जो अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को सत्ता और प्रभुत्व के एक उच्च-दांव वाले खेल की तरह मानता है। टैरिफ  के लिए डोनाल्ड ट्रम्प का दृष्टिकोण केवल एक नीतिगत बदलाव नहीं है, बल्कि स्थापित विश्व व्यवस्था पर हमला है। 
व्यापार युद्ध कोई नई बात नहीं है, लेकिन जिस तरह से ट्रम्प ने प्रतिशोध के हथियार के रूप में टैरिफ  का इस्तेमाल किया है, वह अभूतपूर्व है। वे देश जो लम्बे समय से संयुक्त राज्य अमेरिका के आर्थिक सहयोगी रहे हैं, वे खुद को क्रॉसहेयर में पाते हैं। पहले यह चीन था, फिर कनाडा और मैक्सिको, और अब भारत भी इस दायरे में आ गया है। कोई भी देश उनके अनिश्चित आर्थिक आदेश से अछूता नहीं है। उनकी व्यापार नीतियां दीर्घकालिक आर्थिक रणनीति द्वारा निर्धारित नहीं हैं, बल्कि एक ऐसे नेता की आवेगपूर्ण प्रवृत्ति द्वारा निर्धारित हैं जो वैश्विक बाज़ार को एक युद्ध के मैदान के रूप में देखता है, जहां अमरीका को किसी भी कीमत पर विजयी होना चाहिए। 
ट्रम्प ने आर्थिक वार्ताओं को बलपूर्वक सौदों में बदल दिया है। जब तक दूसरे देश अमरीकी मांगों के आगे नहीं झुकते, उन्हें भारी शुल्क का सामना करने पड़ेगा। जो देश विरोध करने की हिम्मत करते हैं, उनके सामने बड़ी चुनौती रहेगी। यह व्यापार नीति नहीं है, यह वैश्विक स्तर पर जबरन आर्थिक वसूली है। इस बलपूर्वक कार्रवाई का शिकार केवल एक राष्ट्र ही नहीं हैं, बल्कि व्यवसाय और उपभोक्ता भी होंगे जो बढ़ती लागत, आपूर्ति श्रृंखला व्यवधान और वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता के माहौल का खमियाजा भुगतेंगे।
ट्रम्प के टैरिफ  उन्माद के नतीजे तत्काल आर्थिक झटकों से कहीं आगे तक फैले हुए हैं। कई देशों को लगातार निशाना बनाकर उन्होंने एक अस्थिर करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। वैश्विक अर्थव्यवस्था परस्पर निर्भरता पर पनपती है, जिसमें सभी राष्ट्रों को लाभ हो। ट्रम्प की एकतरफा नीति इस जटिल जाल को खत्म करने का प्रयास है। यह सहयोग को संघर्ष में, व्यापार को टैरिफ  में और विकास को ठहराव में बदलती है। अगर उनका रवैया ऐसा रहा तो दुनिया आर्थिक राष्ट्रवाद के दौर में पहुंच सकती है, जहां सामूहिक प्रगति पर स्वार्थ हावी हो जायेगा और वस्तुओं एवं सेवाओं के मुक्त प्रवाह की जगह संरक्षणवाद ले लेगा।
ट्रम्प का व्यवहार एक ऐसे नेता की ओर इशारा करता है जो सिर्फ नीतियों को लागू नहीं कर रहा है, बल्कि बदला भी ले रहा है। कार्यकारी आदेशों पर हस्ताक्षर करते समय उनकी बॉडी लैंग्वेज, व्यापारिक साझेदारों के खिलाफ उनकी तीखी बयानबाजी और रचनात्मक कूटनीति में शामिल होने से इन्कार करना, ये सभी एक ऐसे नेता की ओर इशारा करते हैं जो शासन के बजाय शिकायतों से प्रेरित है। ऐसा करके वह वैश्विक अर्थव्यवस्था को अनिश्चितता के रसातल में धकेल रहे हैं जहां भरोसा खत्म हो रहा है और हर देश को खुद ही अपना बचाव करना होगा।
उनकी नीतियों के आर्थिक नुकसान वास्तविक हैं और फिर भी वह बेफिक्र हैं। उन्हें विश्वास है कि उनकी बलि की रणनीति अंतत: दुनिया को सहमत होने के लिए मजबूर कर देगी। ट्रम्प के आर्थिक सिद्धांत में मूलभूत दोष यह विश्वास है कि अमरीका बल के माध्यम से सुपर लाभ प्राप्त कर सकता है। वह एक ऐसी दुनिया की कल्पना करता है जहां अमरीका विशुद्ध आर्थिक ताकत के माध्यम से शर्तें तय करता है जबकि अन्य आवश्यकता के अनुसार उनका पालन करते हैं। यह एक खतरनाक दृष्टिकोण है। वैश्विक अर्थव्यवस्था की वास्तविकता यह है कि यह अंतर्संबंध लचीलापन पैदा करती है। कोई भी राष्ट्र, यहां तक कि अमरीका भी अलगाव में नहीं पनप सकता। विश्वास और सहयोग को कम करके ट्रम्प अनजाने में अमरीका की अपनी आर्थिक स्थिति को कमज़ोर कर रहे हैं। हालांकि वह अल्पकालिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं। जबरदस्ती के माध्यम से लाभ कमाने की प्रवृत्ति अमरीका की विश्वसनीयता और आर्थिक साझेदारी को दीर्घकालिक अपूरणीय क्षति पहुंचा सकती है। शायद ट्रम्प के व्यापार युद्ध का सबसे खतरनाक पहलू नियम-आधारित वैश्विक व्यापार का क्षरण है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की आर्थिक व्यवस्था विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) जैसी संस्थाओं के माध्यम से श्रमसाध्य रूप से बनायी गयी थी, जिसे ठीक इसी तरह की आर्थिक अराजकता को रोकने के लिए डिज़ाइन किया गया था। स्थापित मानदंडों को दरकिनार करके और उन्हें एकतरफा फामानों से बदलकर ट्रम्प प्रभावी रूप से उसी प्रणाली को खत्म कर रहे हैं जिसने दशकों से वैश्विक आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित की है। यदि प्रत्येक राष्ट्र उनके दृष्टिकोण को अपनाता है तो इसका परिणाम एक आर्थिक अराजकता होगी, जहां सिद्धांत नहीं, बल्कि शक्ति व्यापार संबंधों को निर्धारित करेगी। (संवाद)

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