महिलाओं के प्रति बदलना होगा नज़रिया
महिला दिवस पर विशेष
इक्कीसवीं सदी की बात करे तो यहां की महिलाएं हर क्षेत्र में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिला काम कर रही है। अब तो भारत की संसद ने भी महिलाओं के लिये लोकसभा व विधानसभाओं में 33 प्रतिशत आरक्षण का विधेयक पास कर दिया है। उससे आने वाले समय में भारत की राजनीति में महिलाओं की भूमिका अधिक महत्वपूर्ण हो जायेगी। देश में महिलाओं को अब सेना में भी महत्वपूर्ण पदो पर तैनात किया जाने लगा है। जो महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक बड़ा कदम है।
यहां महिलाओं को पुरुषों के बराबर अधिकार है। महिलाएं देश की आधी आबादी का प्रतिनिधित्व करती हैं तथा विकास में भी बराबर की भागीदार है। आज के युग में महिला पुरुषों के साथ ही नहीं बल्कि उनसे दो कदम आगे निकल चुकी है। महिलाओं के बिना समाज की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। भारतीय संविधान के अनुसार महिलाओं को भी पुरुषों के समान जीवन जीने का हक है। प्राचीन काल से ही यहां महिलाओं को समाज में विशिष्ट आदर एवं सम्मान दिया जाता रहा है।
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस हर साल 8 मार्च, 1911 से पूरे विश्व में मनाया जाता है। जिसका उद्देश्य महिलाओं की सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक उपलब्धियों का जश्न मनाना है। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2025 का थीम है ‘कार्रवाई में तेज़ी लाना।’ वर्ष की 2025 थीम में सभी महिलाओं के लिए अधिकार, समानता, सशक्तिकरण होगी, जो वैश्विक स्तर पर महिलाओं की प्रगति को रोकने वाली प्रणालीगत बाधाओं को तोड़ने के लिए समावेशन और तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता पर प्रकाश डालती है।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक साल 2023 में भारत में महिलाओं के खिलाफ कुल 4,05,861 अपराध दर्ज किए गए। इन अपराधों में दुष्कर्म, छेड़छाड़, दहेज उत्पीड़न, घरेलू हिंसा, यौन उत्पीड़न, साइबर अपराध, और अपहरण जैसे गंभीर अपराध शामिल हैं। इनमें सबसे ज्यादा मामले घरेलू हिंसा और यौन उत्पीड़न के सामने आए हैं। जो समाज में महिलाओं की सुरक्षा के प्रति हमारी उदासीनता को दर्शाते हैं। इससे पहले 2022 में 4,45,256 मामलेए 2021 में 4,28,278 मामले 2020 में 3,71,503 मामले दर्ज किए गए थे।
एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक प्रति एक लाख आबादी पर महिला अपराध की दर 66.4 फीसदी रिकॉर्ड की गई। ऐसे मामलों में आरोप पत्र दायर करने की दर 75.8 फीसदी रही। एनसीआरबी ने बताया कि भारतीय दंड संहिता के तहत महिलाओं के खिलाफ सबसे ज्यादा 31.4 फीसदी जुर्म पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता किए जाने के थे। 2023 के 12 महीने बाद जारी किए गए इस रिपोर्ट में महिलाओं के प्रति हो रहे अपराध में दहेज उत्पीड़न और दुष्कर्म जैसे अपराध दर्ज किए गए हैं। राष्ट्रीय महिला आयोग की यह रिपोर्ट महिलाओं के प्रति पुलिस की उदासीनता दिखाती है। आंकड़ों के मुताबिक देश भर में यौन उत्पीड़न के 805 मामले, साइबर अपराध के 605 मामले, पीछा करने के 472 मामले और सम्मान से जुड़े अपराध के खिलाफ 409 शिकायतें दर्ज कराई गईं। आंकड़ों के मुताबिक महिलाओं के खिलाफ अपराधों में दुष्कर्म के मामले भी शामिल हैं। साल 2023 में दुष्कर्म और दुष्कर्म के प्रयास के 1,537 मामले दर्ज किए गए। इसके बाद गरिमा के अधिकार के तहत 8,540, घरेलू हिंसा के 6,274, दहेज उत्पीड़न के 4,797, छेड़छाड़ के 2,349 और महिलाओं के प्रति पुलिस की उदासीनता के 1,618 मामले दर्ज किए गए।
2023 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले 2022 की तुलना में कम हुए हैं। 2022 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 30, 864 मामले दर्ज किए गए थे। जबकि 2023 में यह संख्या घटकर 28,278 हो गई। यह एक सकारात्मक संकेत है लेकिन अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। साल 2022 के बाद से शिकायतों की संख्या में कमी देखी गई है। जब 30,864 शिकायतें प्राप्त हुई थी, जो 2014 के बाद से सर्वाधिक आंकड़ा था। जहां तक बात महिलाओं की सुरक्षा की आती है तो पिछले कुछ वर्षों में भारत ने अभूतपूर्व निर्णयों से महिलाओं की सुरक्षा के लिए कई प्रबंध किए हैं। आज भारत में महिलायें पहले की अपेक्षा ज्यादा सुरक्षित है।
हम एक तरफ महिलाओं को हर क्षेत्र में बराबरी का दर्जा देकर उन्हे आगे बढ़ा रहें है। वहीं दूसरी तरफ उनके साथ अत्याचार की घटनाओं में भी लगातार बढ़ोतरी हो रही है। आये दिन हमें महिलाओं के साथ दुष्कर्म, दुर्व्यवहार होने की घटनाये सुनने को मिलती रहती है।
ऐसी घटनाओं से महिला सशकिथकरण के अभियान को धक्का लगता हैं। देश में महिलाओं के प्रति खराब होते माहौल को बदलने की ज़िम्मेदारी सिर्फ सरकार की ही नहीं, अपितु हर आम आदमी की भी है। सभी को आगे आकर महिला सुरक्षा की लड़ाई में महिलाओं का साथ देना होगा तभी देश की मातृ शक्ति सिर उठा कर शान से चल सकेगी। अब महिलाओं को समझना होगा कि आज समाज में उनकी दयनीय स्थिति समाज में चली आ रही परम्पराओं का परिणाम है। इन परम्पराओं को बदलने का बीड़ा स्वयं महिलाओं को ही उठाना होगा। तभी समाज में उनके प्रति सोच बदल पायेगी।