सात घंटे 

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‘अरे माता जी, हम नालायकों के लिए आप इतना कुछ कर रही हैं। हम इसके लायक नहीं हैं।’
‘ऐसी बात मत करो बेटा। किस हालात में किसी को क्या करना पड़ता है, इस पर बहुत कुछ कहा जा सकता है। पर अभी तुम आराम से यह पकौड़े खाओ।’
छोटू ने कहा, ‘एक बात कह सकता हूँ मांजी?’
‘हां, हां कहो...।’
‘इस मौसम में इन पकौड़ों से अच्छी दुनिया में कोई चीज हो ही नहीं सकती है।’
तीनों हंसने लगे। इतने में फोन बजा तो उस्ताद और छोटू चौकन्ने हो गए।
मीना ने अलमारी के ऊपर से मोबाईल उठाया। ‘हैलो हां बेटी सब ठीक से है न। ..... हां यहां सब ठीक-ठाक है। सुमि आज स्कूल में खूब खेली थी, थक गई। आज वह होमवर्क पूरा करते ही सो गई। .... नहीं आज मैं उससे बात नहीं कराऊंगी। अभी-अभी सोई है। बहुत थकी हुई है। उसके पापा को भी कह देना। सुबह स्कूल जाने से पहले अच्छी तरह बात करा दूंगी। बाहर तेज़ बारिश है। आवाज साफ नहीं आ रही है। तो ठीक है बेटी कल सुबह अच्छे से बात करना। बाय।’
मीना ने फोन रखा तो उस्ताद और छोटू ने राहत की सांस ली और पकौड़ों पर टूट पड़े।
बाहर बादल गर्जे और खिड़की बड़े झटके से खुल गई। मीना ने तुरंत बाहर के कमरे में जाकर उसे बंद किया।
बाहर अंधेरा हो गया था। सुमि ने बहुत राहत की सांस लेकर अपनी कापी बंद की और उछल कर जोर से बोली, ‘नानी होमवर्क पूरा हुआ। अब मैं टीवी देख सकती हूँ?’
‘ज़रूर बेटी पर पहले स्कूल का बैग लगा लो। मैं रसोई में लगी हूँ। अकेले लगा लोगी या मैं आऊं?’
‘नहीं नानी मैं लगा लूंगी।’
बैग लगाकर सुमि टीवी के सामने जमने ही वाली थी कि उसे मेहमानों के प्रति अपने कर्त्तव्य की याद आई।
उसने साथ के कमरे में जाकर कहा, ‘अंकल आपने कुछ खाया कि नहीं।’
‘आपकी नानी ने बहुत कुछ खिलाया बेटी। आपकी नानी ने हमारा बहुत ख्याल रखा।’
‘अंकल हमारे घर जो भी आता है वह यही कहता है तुम्हारी नानी बहुत अच्छी है। अंकल आपको पता है मेरी नानी तो दुनिया की सबसे अच्छी नानी हैं।’ ‘बेटी तुमने बिल्कुल ठीक कहा।’
‘एक बार मैं बहुत बीमार हुई तो मेरी नानी तीन रात तक जागी रही, मेरे पास बैठी रहीं।’
‘अच्छा’।
‘एक बार बाहर खाई में भोला गिर गया तो नानी अपनी छतरी को लाठी बनाकर गहरी खाई में चली गईं और उसे बचा कर लाईं।’
‘भोला कौन है?’
‘जो आंटी यहां मोहल्ले की सफाई का काम करती हैं, उनका बेटा है।’
‘अच्छा उसे बचाने नानी खाई में चली गईं।’
‘हां, नानी कहती है दूसरों की हैल्प करने में ही उन्हें खुशी मिलती है।’
इतने में मीना ने आकर कहा, ‘सुमि मैंने तुम्हारा खाना लगा दिया है। पहले खाना खा लो नहीं तो टीवी देखते-देखते ही तुम्हें नींद आ जाएगी।’
‘क्या बनाया है नानी?’
‘पूरी-आलू और टमाटर की चटनी।’
‘ओह! मजा आ गया।’ कहकर सुमिता दूसरे कमरे की ओर भागी। खाना खाते हुए ही उसने टीवी लगा दिया और मस्त हो गई।
मीना ने उसके स्कूल के कपड़े सलीके से तैयार कर दिए, स्कूल बैग चैक किया। फिर थोड़ा सा खाना खुद भी सुमिता के पास बैठ कर खाया।
थोड़ी देर बाद टीवी के पास बैठ कर सुमि ऊंघने लगी। मीना से उसे झकझोरा - ‘ऐसे ही न सो जाना बेटी। हाथ धो लो कुल्ला, कर लो।’
सुमि आधी नींद में उठी, बाथरूम गई और बिस्तर पर जाकर लुढ़क गई। नींद में उसके भोले-भाले चेहरे को उसकी नानी ने बहुत प्यार से देखा, फिर चादर ओढ़ा दी। फिर उसके पास बैठकर बहुत प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरने लगी।
इसी समय छोटू और उस्ताद कमरे में आए। नानी के प्यार को देखकर दोनों ने एक-दूसरे को देखा, फिर दोनों लौट गए। कुछ देर बाद मीना उठी और चीजें समेटने लगीं। फिर रसोई में चली गई। रात गहराने लगी थी। उस्ताद और छोटू गुपचुप अपनी सलाह कर रहे थे। इतने में मीना दो प्लेटें लेकर आई। उसमें फूली हुईं पूरियां थीं और गर्म तरकारी। ‘लो अब गर्म-गर्म खाना खा लो तो मेरी रसोई निबट जाएगी।’ ‘अरे माजी आपने तो पहले ही इतना कुछ खिला दिया था।’ ‘वाह! ऐसा हो सकता है कि घर में खाना बने और मेहमान न खाएं। मैं तो इंतजार कर रही थी कि सुमिता सो जाए। फिर तुम्हारे लिए गर्म पूरी बना कर दूं।’
सच बात तो यह थी कि उस्ताद और छोटू दोनों को भूख लगी थी और गर्म पूरियां सामने देख कर तो यह भूख और भी तेज हो गई थी। दोनों ने बहुत तृप्त होकर भोजन किया। मीना पूछ-पूछ कर पूरी, तरकारी, चटनी देती रही।भली-भांति भोजन कर दोनों मित्र कुछ देर बैठे रहे, फिर मीना को बुलाकर कहा, ‘मांजी, अब हमें यहां से चलना होगा।’
‘अभी बारिश बहुत तेज़ है।’
‘हमारे लिए तो यह ठीक ही है मांजी।’
मीना अंदर गई और एक लिफाफा ले आई। ’इसमें कुछ सेब हैं, यह लिफाफा जेब में भी आ जाएगा।’
उस्ताद ने लिफाफे को माथे पर लगाया, फिर झुका, फिर हाथ जोड़े।
मीना ने कहा, ’बेटे तुम्हें और किसी चीज़ की ज़रूरत हो तो बिना संकोच के बताओ।’
दोनों चुप रहे।
‘संकोच मत करो। मुझे मांजी कहा है, बिना संकोच के कहो यदि कोई ज़रूरत है।’
‘मांजी सच कहें तो हमें बच निकलने के लिए बस के किराए के 500 रुपयों की बहुत ज़रूरत है। इसके बिना हमारा जीवन खतरे में पड़ सकता है।’ मीना चुपचाप भीतर गई और 500 रुपए का नोट लाकर उस्ताद के हाथ में थमा दिया।
उस्ताद ने कहा, ‘मैं कितना अभागा हूँ मां कि अपने को आपका बेटा कहने के योग्य कभी नहीं मान पाऊंगा।’
मीना ने कहा- ‘ऐसा मत कहो बेटा। मां भी बेटे से कुछ मांगना चाहती है।’
उस्ताद ने कहा, ‘कहो मां, अपने इस हालात में दे सका तो पीछे नहीं हटूंगा।’
मीना ने कहा, ‘आज तुमने मुझसे वायदा किया था बेटे कि तुम्हारी नातिन को खरोंच भी नहीं आएगी, और तुमने इसे पूरा निभाया। वह सुख-शांति से सो गई है। डर की छाया भी उस पर तुम दोनों ने नहीं पड़ने दी। यह मेरे प्रति बहुत उपकार रहा। अब मैं तुमसे आगे के लिए मांगती हूँ कि आगे भी जहां तक संभव हो किसी को नाहक भय या दु:ख न पहुंचाना, उसके प्रति हिंसा न करना। देखो तुम्हारी आज की स्थिति को समझते हुए मैंने तुमसे न नाम पूछा न पता, पर मेरी इस बात पर ध्यान ज़रूर देना और स्वीकार करना। जब भी तुम्हारे लिए संभव हो, इस राह को छोड़ सही राह पर लौटना।’ उस्ताद ने कहा, ‘मां अगर हम आपका कहा करने की पूरी कोशिश करें तो क्या आपका आशीर्वाद हमारे साथ होगा, क्या अपने सिर पर हम आपका हाथ महसूस कर सकेंगे?’
‘हां, बेटा, तुम ऐसा सच्चा प्रयास करोगे तो मेरा आशीर्वाद भी सदा तुम्हारे साथ होगा। तुम्हारे लिए मेरी प्रार्थना भी रहेगी।’
कुछ देर वे तीनों नि:शब्द खड़े रहे। फिर दोनों ने मीना के पैर छुए और बारिश भरे अंधकार में शीघ्र ही खो गए।

(समाप्त)

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