प्रोफेशनल बॉक्सिंग में निशांत देव ने जलाया उम्मीदों का चिराग
आखिरकार निशांत देव ने वह कर दिखाया, जो उनसे पहले गिनती के चंद ही भारतीय बॉक्सर कर सके हैं। हरियाणा में करनाल का यह 24 वर्षीय मुक्केबाज़ अब प्रोफेशनल बॉक्सर बन गया है। निशांत को संसार की सबसे सम्मानित बॉक्सिंग प्रमोशन- मैच रूम ने साइन किया है। निशांत ने बतौर प्रोफेशनल अपनी पहली फाइट 25 जनवरी 2025 को लॉस वेगास के द कॉस्मोपॉलिटन होटल के रिंग में लड़ी, जोकि अपने 1,00,000 वर्ग फीट कैसिनो के लिए विख्यात है। निशांत का मुकाबला एक अन्य नये प्रोफेशनल सदस्य एलटन विग्गिंस से था, जोकि कैलिफोर्निया के बॉक्सर हैं।
निशांत ने शानदार डेब्यू किया। वह तेज़, ताकतवर और फोकस रहने वाले बॉक्सर हैं और उन्होंने दो मिनट के भीतर ही अपना मुकाबला जीत लिया। रिंग में उतरने के चंद सेकंड में निशांत ने अंदाज़ा लगा लिया था कि वह अपने प्रतिद्वंदी से प्रतिभा में मीलों आगे हैं, हालांकि इस खब्बू भारतीय बॉक्सर की यह पहली प्रोफेशनल फाइट थी। निशांत का हर जैब अपने निशाने पर पड़ रहा था। असहाय विग्गिंस पहले दाएं हुक-बाएं हुक के मिश्रण से ज़मीन पर गिरा और फिर बाएं हुक-दाएं हुक के मिश्रण से ज़मीन पर गिरा। इसके बाद जैब व हुक की इस रफ्तार से उस पर बौछार पड़ी कि रेफरी को यकीन हो गया कि मुकाबले को आगे जारी रखना बेकार है, विग्गिंस घातक चोटों का शिकार हो सकता है, शायद उसका करियर ही समाप्त हो जाये। इसलिए मुकाबले को रोक दिया गया और निशांत को विजयी घोषित कर दिया गया।
निशांत ने केवल अपनी जीत के अंदाज़ से ही प्रभावित नहीं किया बल्कि जिस तरह से वह रिंग में मूव कर रहे थे,उसने भी दर्शकों को प्रभावित किया। लम्बे कद के निशांत वाइड स्टांस से खड़े हुए थे और वह जिस रफ्तार से रिंग में मूव कर रहे थे, उस रफ्तार में आज तक 60 किलो से ऊपर की किसी भी वज़न श्रेणी में किसी भी भारतीय बॉक्सर को मूव करते हुए नहीं देखा गया। निशांत 71 किलो (लाइट मिडिल वेट) श्रेणी के हैं। लेकिन यह रफ्तार सटीकता या पॉवर की कीमत पर नहीं आयी। यह दोपहर की खिली धूप की तरह स्पष्ट था कि अब निशांत में बहुत सुधार आ गया है। अब वह कम पॉवर व मध्य सटीकता की तेज़ पंचिंग मशीन नहीं रहे हैं, जिसकी बदौलत उन्हें विश्व चैंपियनशिप में कांस्य पदक मिला था और पेरिस ओलंपिक के क्वार्टर फाइनल में, जब वह स्पष्ट विजेता थे, तो जजों के विवादित फैसले ने उन्हें पराजित घोषित कर दिया था। निशांत अब अत्यधिक कौशल वाले, हार्ड पंच करने वाले प्रोफेशनल हो गये हैं और यह सब इस वजह से हो सका है क्योंकि उन्होंने तीन माह तक अमरीका में कोच रोनल्ड सिम्स से ट्रेनिंग ली है।
अपनी जीत के बाद रिंग में ही निशांत ने मुहम्मद अली जैसा आत्मविश्वास प्रदर्शित करते हुए कहा, ‘मैं विश्व चैंपियन बनना चाहता हूं। मैं इतिहास बनाना चाहता हूं- भारत से पहला बॉक्सिंग विश्व चैंपियन।’ आत्मविश्वास अपनी जगह और आगे की कठिन डगर अपनी जगह। प्रोफेशनल बॉक्सिंग का संसार केवल बॉक्सर के कौशल व प्रतिभा तक सीमित नहीं है। यह विशाल है, इसमें पारदर्शिता का अभाव है और यह लॉबिंग, बैकरूम डील्स, राजनीति व प्रभाव का निर्दयी संसार है। अमरीका, इंग्लैंड या मैक्सिको की तरह प्रोफेशनल बॉक्सिंग संसार में भारत की उपस्थिति ही नहीं है, जब बात प्रमोशन व लॉबिंग की आती है। इसका अर्थ यह है कि भारतीय बॉक्सर्स को इस संसार में प्रवेश करने और तैरते रहने में अतिरिक्त कठिन प्रयास करने पड़ते हैं। निशांत से पहले जो भारतीय बॉक्सर प्रोफेशनल बने उन्हें उंगलियों पर गिना जा सकता है। तीन बार के ओलंपियन विकास कृष्ण ने अपनी तीनों प्रोफेशनल फाइट्स जीतीं, लेकिन उनका करियर कहीं न पहुंच सका। नीरज गोयत प्रोफेशनल बनने वाले शुरुआती भारतीय मुक्केबाज़ों में शामिल थे। वह 2015 में प्रोफेशनल बने थे। आरंभ उनका प्रशंसनीय रहा, उन्होंने एशिया में खुद को टॉप संभावना के रूप में स्थापित किया, लेकिन फिर प्रमोटर्स की उनमें दिलचस्पी नहीं रही।
भारत के अब तक के सबसे सफल प्रोफेशनल बॉक्सर ओलंपिक पदक विजेता विजेंद्र सिंह रहे हैं, जो 2015 में प्रोफेशनल बने थे, लेकिन आयु उनके साथ न थी। प्रोफेशनल डेब्यू के मात्र दो वर्ष के भीतर उनकी स्पीड व रेफ्लेक्सेस में गिरावट आने लगी और उन्हें खामोशी से एक किनारे कर दिया गया। निशांत के पक्ष में कुछ बातें हैं जिनसे अन्य प्रोफेशनल भारतीय बॉक्सर वंचित थे। सबसे पहली व महत्वपूर्ण बात तो यह है कि वह बेहतर बॉक्सर हैं। अपनी डेब्यू फाइट में ही उन्होंने साबित कर दिया कि उनकी बॉक्सिंग स्किल्स पर शक करने की गुंजाइश नहीं है। अगर विजेंद्र सिंह से उनकी तुलना की जाये तो रफ्तार व सटीकता में सिंह कभी भी निशांत जैसे थे ही नहीं। दूसरा यह कि निशांत को वह संगठन प्रमोट कर रहा है, जिसने अंथोनी जोशुआ व कैनेलो अल्वरेज़ जैसे बॉक्सर्स को प्रमोट किया है। तीसरा यह कि 24 वर्ष की आयु में निशांत अपनी एथलेटिक क्षमता के चरम पर हैं और वह उस कोच के साथ काम कर रहे हैं जो उन्हें 16 साल की आयु से जानता है। एक भारतीय बॉक्सर द्वारा सभी चालें सही चलना दुर्लभ है। इसलिए निशांत को हर वह सहयोग देने की आवश्यकता है, जिसके वह योग्य हैं। -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर