प्रसिद्ध-चमत्कारी है बड़ली का भैरूनाथ मंदिर
जोधपुर रियासत के श्रद्धालु राजा-महाराजाओं व उनकी महारानियों ने धार्मिक प्रवृति के फलस्वरूप मारवाड़ में समय-समय पर अनेकानेक भव्य मंदिरों का निर्माण शहर परिधि व आसपास के क्षेत्रों में करवाया था। मंदिरों की एक लबी श्रृंखला के तहत एक ऐसा ही प्रबल जनास्था का मंदिर जोधपुर शहर से 13 किलोमीटर दूर जोधपुर-जैसलमेर मार्ग पर बड़ली गांव में है। बड़ली के भैरू मंदिर नाम से विख्यात यह मंदिर सवा सौ वर्ष पुराना है। इस मंदिर का निर्माण मारवाड़ के नरेश राव सीहाजी ने करवाया था, जोकि पूरे राजस्थान में विख्यात है।
राव सीहाजी जोधपुर के साथ कन्नौज के भी शासक थे। इन्होंने मारवाड़ से बाहर रहकर 13 वर्ष तक कन्नौज पर भी शासन किया था। वे प्राय: मारवाड़ में भी आते रहते थे। एक बार जब वे कन्नौज से अपने वफादारों व राज पुरोहितों के साथ मारवाड़ लौट रहे थे तभी मुलतान की तरफ से मुगलों ने मारवाड़ पर आक्रमण कर दिया। राव सीहाजी उस समय द्वारिका जा रहे थे लेकिन युद्ध की विभीषिका देखकर वे स्वयं वहां नहीं जा पाये और अपने राज पुरोहितों को काशी भेजकर भैरूजी की मूर्ति लाने की आज्ञा देकर वे स्वयं आक्रमणकारियों पर दलबल सहित टूट पड़े, अन्त में मुगलों को मुंह की खानी पड़ी।
जब राज पुरोहित राव सीहा जी के इष्टदेव के रूप में काले पत्थर की भैरूजी की मूर्ति लेकर मारवाड़ लौटे तो उस समय राव सीहाजी पाली में डेरा डाले हुए थे। कुछ दिन बाद में राज पुराहितों के साथ भीनमाल व खेड़ होते हुए जोधपुर पहुंचे तो सीमा में प्रवेश के दौरान इन्हें एक हराभरा क्षेत्र व पानी का विशाल तालाब दिखाई दिया, जहां बड़ (बरगद) का एक विशाल वृक्ष था। राव सीहाजी अपने लाव-लश्कर समेत यहीं ठहर गये और तालाब के किनारे भैरूजी की प्रतिमा प्रतिष्ठापित करने का मन बनाया। राज पुरोहितों के सहयोग से विधिवत् पूजा-अर्चना के बाद अपने इष्टदेव भैरूजी की मूर्ति को यहां स्थापित कर दिया। धीरे-धीरे भैरूजी की ख्याति जनमानस में फैलने लगी तो ग्रामीणों ने भारी भरकम बड़ के पेड़ के नाम से ही इस स्थान का नाम बड़ली रख दिया व कालान्तर में यह मंदिर बड़ली के भैरू के नाम से विख्यात हो गया।
आज समूचे मारवाड़ में बड़ली के भैरू के प्रति लोगों में इतनी श्रद्धा है कि न केवल आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में बल्कि समूचे राजस्थान के अलावा गुजरात व मध्य प्रदेश तथा महाराष्ट्र के भी श्रद्धालु मनोवांछित आशीर्वाद प्राप्त करने हेतु यहां आते हैं। विशेष रूप से श्रद्धालुजन पुत्र प्राप्ति की इच्छा रख के आते हैं। कई श्रद्धालुओं को भैरूजी पर्चे देते है। जोधपुर-जैसलमेर मार्ग पर दायीं ओर बना बड़ली के भैरूजी की काले पत्थर के निर्मित आदमकद प्रतिमा है, जिसके पास तीन छोटी और प्रतिमाएं है मूर्तियां एक चबूतरे पर विराजमान हैं। मूर्तिया पर लाल व सफेद चमकीली पन्निया चढ़ी हुई है। मंदिर के पीछे विशाल तालाब के पीछे पुरोहितों की कुलदेवी विशैतरी माता का मंदिर है।
बड़ली के भैरूनाथ मंदिर में प्रवेशद्वार के बायी और धूणें बने हुए हैं, जिनमें बड़ा धुणा साधु-संतों के लिए हैं भीतरी मठ में अंखड ज्योति व घूणा हर समय जलता रहता है। इन घूणों के समीप सात समाधियां भी है जो कि पूर्व पुजारियों की हैं।
भैरूजी को प्रसाद के रूप में शराब व मीठा भोग ही चढ़ता है, लेकिन प्रसाद सीमा से बाहर न ले जाने की परम्परा भी है। इसलिए सभी श्रद्धालु प्रसाद यहीं वितरित कर देते है। मंदिर से जाते वक्त श्रद्धालु मंदिर में चींण (धागा) बांध कर फिर पीछे मुड़कर नहीं देखते हैं। भैरूजी के मंदिर में प्रतिवर्ष भाद्रपद की शुक्ल पक्ष में तेरस, चौदस व पूर्णिमा के रोज भारी मेला लगता है। हर तीन साल में अधिक मास पर यहां भौगिशैल परिक्रमा का मेला भी लगता है, जिसमें राजस्थान के दूरदराज क्षेत्रों से भारी तादाद में श्रद्धालु आते हैं। भैरूजी की पूजा के साथ यहां बड़ को पूजने की भी रीति है। इन्हीं भैरूजी के मंदिर से एक अन्य मूर्ति को यहां से बीकानेर भी ले जाया गया है, जिसे टोलियासर गांव में प्रतिष्ठापित कर यहीं के भैरूजी का ही स्वरूप प्रदान किया गया है। समूचे देश में व राजस्थान में ऐसे दो ही काले भैरूजी हैं, जो जनास्था के पौराणिक मंदिरों के रूप में जाने जाते है। (सुमन सागर)