हर जोड़ का तोड़ है हमारे पास

सच पूछो तो आज कल की पीढ़ी को तोड़ने में बहुत मजा आता है। तोड़ना...नहीं समझे। मतलब जो न समझे उसको भी तोड़ देते हैं। अब बोलो, समझे कि नहीं समझे। हमारे देश में कानून बना ही किसलिए है, तोड़ने के लिए। विद्यालय हो या वाचनालय, कार्यालय हो या पुस्तकालय, औषधालय हो या शौचालय- जिसके लिए जो भी नियम बनाए गए हों, लोगों को वे नियम तोड़ने में मज़ा आता है। आए भी क्यों न? सड़क पर ट्रैफिक सिग्नल हो या सरकारी दफ्तर में कतार, विद्यालय की अनुशासन संहिता हो या सार्वजनिक स्थानों की मर्यादा, इनका पालन करने में तो नाक सिकुड़ जाती है लेकिन तोड़ने में अद्भुत रोमांच महसूस होता है। नियमों को तोड़कर लोग ऐसे इतराते हैं, मानो कोई बहुत बड़ा पराक्रम कर दिखाया हो! ऐसा ही कुछ पराक्रम हमारे ऩकलवीर वार्षिक परीक्षाओं में दिखाते हैं। सरकार नकल रोकने के लिए कितने ही कठोर उपाय कर ले, कितनी ही सख्ती दिखाले, नकलवीर किसी चीज से घबराते नहीं। सरकार के सभी नियमों को, कानूनों को तोड़कर धड़ल्ले से नकल करते हैं और नकलवीर चक्र प्राप्त करने की होड़ में आ जाते हैं। नकलवीर से याद आया कि नकल करना सच में एक अद्भुत कला है। यदि विश्व की समस्त कलाओं को एक पलड़े में रख दिया जाए और नकल को दूसरे में, तो नकल का पलड़ा हमेशा भारी रहेगा। यह एक ऐसी विद्या है, जिसमें परिश्रम की नहीं, बल्कि चतुराई की आवश्यकता होती है। हमारे एक मित्र तो अक्सर कहा करते हैं कि ‘नकल के लिए भी अकल चाहिए और यदि अकल है, तो फिर नकल की क्या ज़रूरत?’ लेकिन शायद वे इस गूढ़ सत्य से अनभिज्ञ हैं कि नकल करने का अपना ही एक अलग आनंद है। जिस प्रकार चोरी किए गए आम का स्वाद बगीचे में उगे आम से अधिक मीठा लगता है, उसी प्रकार नकल का मज़ा भी परिश्रम से अर्जित अंकों से कहीं ज्यादा अच्छा होता है।
अब देखिए बच्चों के लिए परीक्षा एक महायुद्ध से कम नहीं होती और नकल उनके लिए किसी ब्रह्मास्त्र से कम नहीं होती। वे इसे प्रयोग करने की पूरी तैयारी के साथ परीक्षा कक्ष में प्रवेश करते हैं और नकल के पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ देते हैं। इस कला के स्वर्णिम इतिहास में अनेक महान आत्माओं ने अपना नाम रोशन किया है। कहते हैं कि पुराने ज़माने में नकल पर्चियों तक ही सीमित थी, परंतु आज विज्ञान और तकनीक ने इस कला को नए आयाम दे दिए हैं। मोबाइल, स्मार्टवॉच, ब्लूटूथ, माइक्रोचिप-ये सब आधुनिक काल में नकल के अमोघ अस्त्र बन चुके हैं। नकल किसी भी व्यक्ति को मानसिक रूप से विकसित करने में सहायक सिद्ध होती है। नकल करने के नए-नए तरीके खोजने के लिए एक नकलवीर को क्या-क्या अनुसंधान करने पड़ते हैं, यह शायद आप भली भांति जानते होंगे। क्योंकि कभी न कभी तो आपने भी नकल की होगी। नकल करने से मनुष्य की सातवीं इंद्री सक्रिय हो जाती है। एक अध्यापक ने परीक्षा हॉल में घोषणा की कि- ‘तुम सबको नकल करने की पूरी छूट है, पर पकड़े मत जाना!’ बच्चे भी कम कहां थे उन्होंने इसे एक चुनौती के रूप में लिया और ऐसी-ऐसी जगह छुपाकर ले आए कि उक्त अध्यापक उनका वह चक्रव्यूह नहीं तोड़ पाए। क्योंकि तोड़ना आज की पीढ़ी जानती है, पुरानी नहीं। परंतु समस्या तब हुई जब एक दिन परीक्षा कक्ष में एक ऐसा अध्यापक आ गया, जो खुद नकल करने में माहिर रह चुका था और इस क्षेत्र में बड़े-बड़े रिकॉर्ड तोड़ चुका था। उसने एक बच्चे को पकड़कर कहा- ‘बेटे, जिस स्कूल में तुम पढ़ रहे हो, वहां मैं प्रिंसीपल रह चुका हूं। तुम्हारी हर चालाकी मुझसे पहले ही गुज़र चुकी है!’ बेचारा बच्चा शरमा गया और अपने पर्ची के कलेक्शन को आत्मसमर्पण कर दिया।
वास्तव में नकल करने और उसे पकड़ने के बीच सदियों से एक रोचक संघर्ष चलता आ रहा है। सरकार नकल रोकने के लिए नित नए नियम बनाती है, और विद्यार्थी उन्हीं नियमों को तोड़ने के लिए नए तरीके खोजते हैं। कुछ अध्यापक भी अब इस सोच में परिवर्तन कर चुके हैं- ‘क्यों सारा साल मेहनत करवाई जाए? परीक्षा के छह-सात दिन की मेहनत से अगर बच्चे पर्चियों से पास हो जाएं, तो गुरुजी को भी राहत और बच्चे भी कामयाब। है भी सही जब शार्टकट से काम चल रहा है तो फिर लंबे रास्ते से क्यों जाना। देख लिया न आपने कि लोगों के पास हर जोड़ का तोड़ है।
मो. 8901006901

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