रंग पंचमी पर देवता खेलते हैं होली

19 मार्च रंग पंचमी पर विशेष

रंग पंचमी को देव होली भी कहते हैं। इस तिथि का हिंदू धर्म में बहुत धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है। रंग पंचमी या देव होली, मनुष्यों की होली के पांचवें दिन यानी चैत्र माह में कृष्ण पक्ष की पंचमी को मनाई जाती है। शास्त्रों के मुताबिक इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने इंद्र सहित अन्य देवताओं के साथ होली खेली थी। इस दिन समूचे वातावरण में रंगों के माध्यम से सकारात्मक ऊर्जा का विस्तार होता है जिसे दैवीय ऊर्जा माना जाता है। रंग पंचमी या देव होली का यह धार्मिक-आध्यात्मिक पर्व विशेष रूप से मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन वातावरण में सत्व गुण से भरपूर दिव्य तरंगें सक्रिय होती हैं, जो नकारात्मक शक्तियों को नष्ट करने और सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाने में सहायक होती हैं।
यह पर्व वास्तव में होली का आध्यात्मिक विस्तार या कहें उसकी सम्पूर्णता है। क्योंकि होली राक्षसी प्रवृत्तियों के नाश का पर्व है,होलिका बुराई का प्रतीक है,जिसके लिए होली मनाई जाती है। इससे अलग रंग पंचमी दैवीय आनंद और सत्वगुण की वृद्धि का प्रतीक है। इसीलिए इसे देवताओं की प्रसन्नता का पर्व भी कहते हैं। इस दिन देवताओं के लिए मनुष्यों द्वारा कई विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं, जिससे वे प्रसन्न होते हैं और भक्तों पर कृपा बरसाते हैं। महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में इस दिन विशेष रूप से गुलाल उड़ाकर देवताओं की आराधना की जाती है। जबकि मथुरा-वृंदावन में इस दिन ब्रज की होली का समारोहपूर्वक समापन होता है। ब्रजभूमि में देव होली कृष्ण लीला का ही विस्तार है। जबकि मध्यप्रदेश के मालवा इलाके में और राजस्थान में इस दिन विशेष शोभायात्राएं निकलती हैं और लोग शोभायात्राओं में शिरकत करते हुए ‘देव होली’ मनाते हैं।
देवहोली का वास्तव में रिश्ता हमारे गुणों के संतुलन से है। मनुष्य में जो सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण होते हैं, देव होली इन तीनों गुणों में से हममें सत्व गुण को बढ़ाती है। रंग पंचमी के दिन विभिन्न देव शक्तियों को प्रसन्न करने के लिए रंगों का उत्सव मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन वातावरण में दैवीय शक्तियां सक्त्रिय होती हैं और रंग खेलने से सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ता है। यह पर्व वास्तव में दैवीय ऊर्जा तरंगों को जागृत करने का दिन है, जो वातावरण को शुद्ध और सकारात्मक बनाती हैं। इसीलिये रंग पंचमी को केवल आनंद का उत्सव नहीं माना जाता बल्कि इसे आध्यात्मिक रूप से आंतरिक और बाह्य नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करने वाला पर्व माना जाता है। इस पर्व में रंगों के जरिये मन की आंतरिक शुद्धि होती है। क्योंकि भारतीय आध्यात्म परंपरा में रंगों का सीधा संबंध चक्त्रों (ऊर्जा केंद्रों) और मन की अवस्थाओं से होता है। रंग पंचमी पर रंगों के प्रयोग से हमारा अपना आंतरिक चैतन्य यानी स्प्रिचुअल कांशियसनेस जागृत होता है। इसके साथ ही यह पर्व प्रेममई भक्ति का संचार करता है। क्योंकि इसमें लोग सामाजिक सौहार्द और आंतरिक आध्यात्म की डोर से एक दूसरे के साथ जुड़ते है। इस पर्व में प्रेम, सद्भाव और एकता का संदेश छिपा होता है, जो अंतत: हमें भक्ति और ईश्वरीय प्रेम की ओर ले जाता है।
देव होली पर सम्पन्न किये जाने वाले कुछ विशेष अनुष्ठान और परंपरायें हैं। कुछ जगहों में इस गुलाल उड़ाने की विशेष परंपरा होती है, जिसे वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा के संचार का जरिया माना जाता है। महाराष्ट्र में यह श्रीमंत पेशवाओं के काल से चली आ रही परंपरा है, जहां लोग ढोल-ताशों और गुलाल के साथ यह उत्सव मनाते हैं। कई जगह इस दिन विशेष हवन और पूजन किए जाते हैं, ताकि जीवन में शुभ्रता और समृद्धि बनी रहे। इसलिए वृहद सन्दर्भ से देखा जाय तो रंग पंचमी केवल एक रंगों का त्योहारभर नहीं है, बल्कि यह खुद को धार्मिक, आध्यात्मिक और सामाजिक रूप से समृद्ध करने का जरिया है। इस दृष्टि से इसका महत्व बहुत ज्यादा बढ़ जाता है।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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