किसानों के लिए आर्थिक सहारा है चेरी का पेड़
हालांकि गुठलीदार चेरी का फल भारतीयों के लिए अतीत में कभी स्वाभाविक फल नहीं रहा, यह मूलरूप से यूरोप, पश्चिमी एशिया और उत्तरी अमरीका का फल है। भारत में सिर्फ हिमालयी वाइल्ड चेरी प्राकृतिक रूप से पायी जाती रही है, जिसे कभी फल के लिए नहीं उगाया जाता रहा। मगर दो-तीन दशकों से खासकर ग्लोबलाइजेशन के बाद भारत के शहरी इलाकों और मिड हाई इनकम ग्रुप में चेरी एक लोकप्रिय और स्टेट्स सिंबल फल बन गया है। खासकर उन लोगों के बीच भी जो स्वास्थ्य के प्रति दिनों दिन जागरूक हो रहे हैं। बहरहाल देश में मध्यवर्ग के बढ़ते एक्सपोजर और मज़बूत होती इनकम के कारण भारत में अब चेरी जैसे फल की काफी मांग है। यही कारण है कि हिमाचल प्रदेश, कश्मीर, उत्तराखंड, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मणिपुर और नागालैंड के पहाड़ी इलाकों में अब काफी बड़ी तादाद में चेरी का उत्पादन हो रहा है। इसके लिए इन पर्वतीय इलाकों में चेरी की कई नस्लें विकसित की गई हैं,जिस कारण अब तो बिहार, उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों और महाराष्ट्र में भी चेरी की बागवानी होने लगी है।
भारत में जंगली चेरी को हिमालियन वाइल्ड चेरी या पद्म कहा जाता है और खाने वाली चेरी जिसकी खेती होती है, ये चेरी खास तौर पर व्यवसायिक रूप से फलों के उत्पादन हेतु उगायी जाती है। चेरी का पेड़ पर्यावरण, कृषि और सौंदर्य की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। पर चेरी के पेड़ उगाने के पहले कुछ खास बातें जान लेनी चाहिए। मसलन-
* चेरी के पेड़ धूप लगने वाली जगह पर अच्छी तरह से विकसित होते हैं, लेकिन इन्हें गर्मी की बजाये समशीतोष्ण जलवायु चाहिए होती है।
* चेरी के पेड़ को हर दिन कम से कम 6 घंटे धूप मिलनी चाहिए।
* चेरी के पेड़ अच्छी जलनिकासी वाली मिट्टी में सबसे ज्यादा विकसित होते हैं।
* चेरी के पेड़ को बड़े पेड़ों के दरमियान या इमारतों के पास नहीं लगाना चाहिए।
चेरी का फल खट्टा और मीठा दोनों होता है। चूंकि बाज़ार में मीठी चेरी की ज्यादा मांग है, इसलिए मीठी चेरी के पेड़ ज्यादा लगाये जाते हैं। हालांकि खट्टी चेरी के भी बहुत उपयोग हैं। जैम, जैली, केक, टार्ट, पीज और चीज़ केक के साथ-साथ मीठी चेरी के ताजे फल खूब शौक से खाये जाते हैं। गुठलीदार चेरी के फल जिसे ड्रूप कहते हैं आकार में छोटे, गोल, चमकदार और गहरी त्वचा वाले होते हैं। चेरी का फल लाल, पीला, काला किसी भी रंग का हो सकता है और स्वाद जैसा कि हमने पहले ही बताया खट्टा या मीठा होता है। मीठी चेरी की मांग भी ज्यादा है और इसके गुण भी ज्यादा हैं। यह खाने के लिए उपयुक्त भी होती है। लेकिन खट्टी चेरी व्यवसायिक नजरिये से ज्यादा उपयोगी है; क्योंकि जैम, जूस और बेकिंग में खट्टी चेरी की ज्यादा मांग रहती है। भले चेरी भारत का स्वाभाविक फल न हो, लेकिन चूंकि अब भारत के मध्यवर्ग के बीच खासा लोकप्रिय हो चला है, इसलिए भारत के फल बाज़ार में इसकी अच्छी खासी मांग हो चली है। इसके अलावा शहरीकरण के बाद जिस तरह से पेस्ट्री, चॉकलेट, फलों के सलाद, जैम, जैली, आइस्क्रीम आदि की मांग बढ़ी है, उसके कारण भी चेरी की व्यवसायिक खेती बेहद उपयोगी और आर्थिक दृष्टि से बहुत फायदेमंद हो चली है।
अब देश में त्योहारों के मौके पर भी चेरी की मांग काफी ज्यादा रहती है। हालांकि अभी भी भारत में बिकने वाली 50 प्रतिशत से ज्यादा चेरी विदेशों से ही आती है, लेकिन पिछले एक दशक में अपने यहां भी चेरी के उत्पादन के साथ इसकी मांग बढ़ी है। यही वजह है कि हिंदुस्तान के अब करीब 10 राज्यों में चेरी एक व्यवसायिक फसल के रूप में किसानों के बीच काफी लोकप्रिय हो रहा है। चेरी का चूंकि उच्चतम व्यवसाय मूल्य है, इसलिए अब देश के उत्तर पूर्वी हिस्से और उत्तराखंड से लेकर कश्मीर तक की हिमालयी बेल्ट में बड़े पैमाने पर चेरी की बागवानी दिखती है।
चेरी का पेड़ 4 से 15 मीटर तक यानी 13 से 50 फीट तक लंबा हो सकता है। खट्टी चेरी के पेड़ आमतौर पर ठिगने होते हैं। हालांकि चेरी की कुछ बौनी किस्में मीठी भी होती है। चेरी का पेड़ लगाये जाने के 4 से 5 सालों बाद फल देना शुरु हो जाता है। इसके पेड़ की सामान्य और स्वाभाविक उम्र 60 साल से ज्यादा है, लेकिन यह उत्पादन 40 से 50 सालों तक ही दे पाता है, इसके बाद चेरी में उत्पादन बहुत कम हो जाता है। चेरी के पेड़ों में बारी-बारी से साधारण अंडाकार पत्तियां, गुलाबी लाल रंग की कलियां और सफेद पंखुड़ियों वाले फूल होते हैं, जो शुरुआती बसंत के दौरान गुच्छों में दिखायी देते हैं। गोल या दिल के आकार वाला फल चेरी बेहद स्वादिष्ट होता है।
एक किसान चेरी के पेड़ों की बागवानी करके आराम से 50 हजार प्रति एकड़ से ज्यादा की वार्षिक इनकम कर सकता है और अगर आप खुद चेरी के विभिन्न किस्म के उत्पाद भी बना सकें तो एक पेड़ से वार्षिक डेढ़ से दो लाख रुपये की कमायी हो जाती है बशर्ते पेड़ में अच्छी तरह से फसल लगी हो। जैसे-जैसे दुनिया में खानपान ग्लोबल हो रहा है, चेरी की मांग हर देश में बढ़ रही है। क्योंकि चेरी से बनी जैम और जैली, न सिर्फ बेहद स्वादिष्ट और लंबे समय तक चलने वाली होती है। एक किसान चेरी के एक पेड़ से भी ठीक ठाक कमाई कर सकता है, लेकिन उसे भरोसा रखना होगा साथ ही उसमें बाज़ार की भी समझ होनी चाहिए। -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर