भारत-मॉरीशस का संयुक्त दृष्टिकोण
भारत और मॉरीशस के बीच संबंधों का एक लम्बा इतिहास है। दुनिया में समकाल उथल-पुथल के बीच समय-समय पर दोनों देशों के बीच साझेदारी के नए अध्याय लिखे जाते रहे हैं। अब भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मॉरीशस यात्रा को कई कारणों से महत्वपूर्ण माना जा रहा है। इसलिए भी कि दुनिया इस समय भू-राजनीति के एक जटिल दौर से गुजर रही है और इसमें आर्थिक और सामरिक मोर्चे पर नए ध्रुव बन रहे हैं। ऐसे में भारत के रुख पर विकासशील देशों या वैश्विक दक्षिण के साथ-साथ महाशक्ति माने जाने वाले देशों की भी नज़र रहती है। अब पिछले कुछ समय से अमरीका में सत्ता परिवर्तन के साथ-साथ दुनिया भर में बन रहे नए समीकरण के बीच भी भारत का रुख सभी देशों के लिए मायने रखता है। अच्छा यह है कि भारत ने महाशक्ति कहे जाने वाले से लेकर बाकी सभी देशों के साथ अपने संबंधों को खास महत्व दिया है। प्रधानमंत्री की ताज़ा मॉरीशस यात्रा के आखिरी दिन उन्नत रणनीतिक साझेदारी के लिए भारत-मॉरीशस का संयुक्त दृष्टिकोण जारी किया गया था जो मुख्य रूप से दोनों देशों के बीच खास और अनूठे संबंधों को रेखांकित करता है। इस दौरान बनी सहमति के तहत बुनियादी ढांचा, कूटनीति, वाणिज्य, क्षमता निर्माण, वित्त, आवास, अपराध की जांच, समुद्री याताया निगरानी, डिजिटल प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य, कृत्रिम बुद्धिमत्ता सहित कई क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने पर केंद्रित बातचीत के जरिए द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने पर जोर दिया गया।
पिछले कुछ वर्षों से चीन के रवैये के मद्देनज़र रक्षा और समुद्री सुरक्षा सहयोग को भारत और मॉरीशस के बीच संबंधों का एक महत्वपूर्ण स्तंभ मान कर साझेदारी के सफर को आगे बढ़ाना भी एक अहम कड़ी है। हालांकि मुक्त और सुरक्षित हिंद महासागर क्षेत्र सुनिश्चित करने के मामले में साझा प्रतिबद्धता वाले देश के रूप में इन दोनों देशों को एक स्वाभाविक साझीदार माना जाता है। यही वजह है कि समुद्री चुनौतियों का सामना करने और व्यापक रणनीतिक हितों की सुरक्षा के लिए मिल कर काम करने का अपना पुराना संकल्प दोहराया। भारतीय विदेश नीति की प्राथमिकता सूची में ‘पड़ोसी प्रथम’ के तहत भी मॉरीशस का स्थान महत्वपूर्ण है। हिंद महासागर में मॉरीशस अपनी भौगोलिक अवस्थिति की वजह से भारत के लिए एक बेहद अहम रणनीतिक साझेदार है। भारत को भी इसकी अहमियत का आभास है, इसलिए मित्रता का स्वाभाविक दायित्व निभाने के साथ-साथ भारत ने पिछले कुछ वर्षों में मॉरीशस में कई विकास योजनाओं में निवेश किया है। दोनों देशों के बीच रिश्ते में एक गहराई भी आई है। रणनीतिक लिहाज से मॉरीशस की भारत के साथ बढ़ती घनिष्ठता से चीन का असहज होना स्वाभाविक ही है, क्योंकि बीते कुछ समय से चीन कई स्तर पर ऐसी गतिविधियां जारी रखे हुए है, जिससे भारत को घेरा जा सके। उम्मीद की जा सकती है कि मॉरीशस के साथ भारत का संबंध अब एक नए अध्याय में प्रवेश करेगा और नई वैश्विक परिस्थितियों के अनुसार नई रणनीति तैयार की जाएगी।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की दो दिवसीय मॉरीशस यात्रा ने दोनों देशों के करीबी रिश्तों के अतीत, वर्तमान और भविष्य से जुड़े तमाम पहलुओं को बेहतरीन ढंग से रेखांकित किया है। इस दौरान दोनों देशों के बीच हुए आठ समझौते बेहद अहम हैं। प्रधानमंत्री को वहां के सर्वोच्च सम्मान से नवाज़ा जाना भी खास है। लेकिन ये सब उन रिश्तों के अच्छे फल मात्र हैं, जिनकी जड़ें दोनों देशों की समान सांस्कृतिक और औपनिवेशिक पृष्ठभूमि से ताकत लेते हुए उन्हें वर्तमान और भविष्य की साझा दृष्टि से लैस करती हैं। ज्ञात हो कि मॉरीशस के समाज के बड़े हिस्से का भारतीय मूल 13 लाख आबादी वाले इस द्वीपीय देश में करीब 70 प्रतिशत लोग भारतीय मूल के हैं। इसी से जुड़ा दूसरा अहम पहलू यह है कि मॉरीशस भी गुलामी के खिलाफ लम्बे संघर्ष से गुज़र चुका है। 1968 में ब्रिटेन से आज़ादी हासिल करने के बाद भी देश के एक हिस्से पर संप्रभुता कायम करने की उसकी जद्दोजहद हाल तक चलती रही। ब्रिटेन ने मॉरीशस की आज़ादी के बाद भी उसके एक द्वीपसमूह चागोस पर अपनी संप्रभुता बनाए रखी थी। लम्बी कशमकश के बाद पिछले साल उसने चागोस पर मॉरीशस की संप्रभुता को मान्यता देना स्वीकार कर लिया, इस शर्त के साथ कि उसके एक हिस्से, डिएगो गार्सिया द्वीप पर अगले 99 साल तक उसका कब्ज़ा रहेगा।
ध्यान रहे, डिएगो गार्सिया में अमरीका-ब्रिटेन का सैन्य अड्डा है। इस लम्बी कशमकश के दौरान भारत मॉरीशस के संघर्ष में उसके साथ बना रहा। न सिर्फ मोदी ने यात्रा के दौरान इस तथ्य को रेखांकित किया बल्कि मॉरीशस के प्रधानमंत्री नवीन रामगुलाम ने भी इसे दोनों देशों की दोस्ती का एक पुख्ता प्रमाण बताया। प्रधानमंत्री मोदी की यह यात्रा दस वर्षों के अंतराल पर हुई और इसमें द्विपक्षीय रिश्तों की बेहतरी इस रूप में भी व्यक्त हुई कि तब भारत का जो विजन उन्होंने सागर के रूप में प्रकट किया था, वह अब महासागर का रूप ले चुका है। कुल मिलाकर वैश्विक हलचल के बीच भारत और मॉरीशस ने व्यापार, सुरक्षा और विकास में समझौतों के माध्यम से अपनी रणनीतिक साझेदारी को प्रतिबलित किया है। भारत का ‘महासागर’ दृष्टिकोण और बुनियादी ढांचागत समर्थन क्षेत्रीय सहयोग को सुदृढ़ बनाता है, बाह्य प्रभावों से संरक्षा प्रदान करता है और आर्थिक संबंधों का सुदृढ़ीकरण करता है।