विश्व प्रसिद्ध है शिमला का जाखू मंदिर

हिमाचल प्रदेश में जाखू एक मात्र ऐसा स्थल है, जहां महावीर हनुमान के पद्-चिन्ह मौजूद हैं। शिमला के चर्चित स्केन्डल प्वॉइंट से लगभग 2 किमी. दूर 2455 मीटर की ऊंचाई पर जाखू पहाड़ी शिमला की सबसे ऊंची पहाड़ी मानी जाती है। इसी पहाड़ पर यह प्राचीन हनुमान मंदिर स्थित है। 
इस पौराणिक मंदिर एवं महावीर हनुमान के इस स्थल पर आगमन के संबंध में दो कथाएं प्रचलित हैं। प्रथम कथा के अनुसार श्री राम एवं रावण युद्ध के मध्य मेघनाद द्वारा लक्ष्मण जी को शक्ति लगने पर जब लंका के ही वैद्य ने संजीवनी बूटी द्वारा लक्ष्मण की प्राण रक्षा होने का उपाय बताया तो महावीर हनुमान को द्रोण गिरि जाकर वह बूटी लाने का काम सौंपा गया। द्रोण पर्वत पर संजीवनी को पहचान न पाने पर महावीर वह पूरा पर्वत ही उखाड़ लाए, जिस पर वह वनस्पति जगमगा रही थी और लौटते हुए क्षणिक विश्राम हेतु वे इसी जाखू पर्वत पर रुके। यह पहाड़ी जो पहले काफी विशाल थी, उनके द्वारा लाए गए पर्वत के बोझ से ऊपर से समतल हो गयी और यहां हनुमान जी के पद्-चिन्ह बन गए, जो आज तक मौजूद हैं, बाद में यहां मंदिर बना दिया गया। दूसरी कथा भी लगभग इसी के समान है, किन्तु इस दूसरी कथा के अनुसार संजीवनी लेने जाते समय रास्ते में हनुमान जी को इस पहाड़ी पर एक संत तपस्या में करते नज़र आए। याकू नामक इस संत के दर्षनार्थ हनुमान जी रुके और इस क्षणिक विश्राम के मध्य उन्होंने याकू को न केवल अपनी यात्रा का उद्देश्य बताया, वरन् याकू से संजीवनी के विषय में विस्तृत जानकारी भी प्राप्त की। हनुमान जी भला कहां रुकने वाले थे, वे याकू से संजीवनी के संबंध में पूर्ण जानकारी प्राप्त कर वापसी यात्रा में मिलने का वादा कर द्रोण पर्वत की ओर चल पड़े। 
याकू संत भी हनुमान जी की प्रतीक्षा कर रहे थे। समयावधि का पूर्ण ज्ञान होने के कारण याकू संत को लगा कि अब हनुमान जी वापस नहीं आएंगे तो वे बेहद दुखी हुए। हनुमान जी जैसे व्यक्ति ने अपना वादा नहीं निभाया, ऐसा वे सोच ही रहे थे कि हनुमान जी भाव स्वरूप में उनके सामने प्रकट हुए और अपने न आने और वादा न निभाने का कारण भी स्पष्ट कर तुरंत अंर्तध्यान हो गए लेकिन उनके अंर्तध्यान होने के बाद याकू की इच्छा एवं भावना का सम्मान करने हेतु उनकी एक मूर्ति वहां स्वयं प्रकट हो गयी। याकू ने उस स्थल पर एक मंदिर का निर्माण करवाया और उस मूर्ति को उस मंदिर में प्रतिष्ठित कर दिया। मंदिर में आज भी उस मूर्ति के दर्शन किये जा सकते हैं। इन्हीं याकू संत के नाम पर इस पर्वत का नाम जाखू पड़ा। दोनों ही कथाओं में इतना तो स्पष्ट है कि हनुमान जी का आगमन इस पर्वत पर हुआ था और इसी की स्मृति स्वरूप इस मंदिर का निर्माण कराया गया। पुरातात्विक दृष्टि से भी यह मंदिर शताब्दियों पुराना माना जाता है। देवस्थल के रूप में यह पृथ्वी के पवित्रतम स्थानों में से एक है। यहां 108 फीट ऊंची हनुमान जी की प्रतिमा भी कुछ ही वर्ष पहले स्थापित की गई है, जिससे इस स्थल की मान्यता एवं आकर्षण कई गुना बढ़ गया है। दशहरे पर प्रतिवर्ष यहां विशाल उत्सव का आयोजन किया जाता है, क्योंकि पौराणिक दृष्टि से लगभग इसी समय हनुमान जी का आगमन इस स्थल पर हुआ था। भारतीय धर्मप्रिय मानस के लिए शिमला का यह पौराणिक मंदिर आस्था का वह केन्द्र है, जहां जाकर तन-मन एवं आत्मा सभी तृप्ति का अनुभव श्रद्धालु करते हैं।  
 

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