भारत-चीन की आपसी सद्भावना
विगत दिवस अमरीकी पाडकास्ट होस्ट लेक्स फ्रिडमैन ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ लम्बी बातचीत की, जिसमें उन्होंने श्री मोदी के साथ निजी जीवन से लेकर प्रत्येक क्षेत्र के अलग-अलग विषयों के संबंध में सवाल पूछे। इस बातचीत की विश्व भर में भारी चर्चा हो रही है। इस बातचीत के दौरान लेक्स फ्रिडमैन ने चीन के संबंध में कुछ सवाल पूछे, जो दोनों देशों के बनते और टूटते रिश्तों संबंधी भारत का चीन के प्रति रवैया भी व्यक्त करते थे और इन रिश्तों में आपसी सम्भावित सद्भावना की उम्मीद भी प्रगट करते थे। इन सवालों का जवाब देते हुए प्रधानमंत्री ने सकारात्मक रवैया अपनाते हुए यह कहा कि सच्चाई यह है कि दोनों देशों का लम्बी अवधि से सीमांत झगड़ा चलता आ रहा है और कभी-कभार यह रोष का रूप भी धारण कर लेता है, जैसे कि वर्ष 2020 में दोनों देशों का तनाव सीमा पर तैनात सैनिक टकराव में बदल गया था। इसके बाद अधिक समय तक दोनों देशों की सीमाओं पर सैनिक एक-दूसरे के समक्ष आ खड़े हुए थे। इसके बावजूद भी दोनों ओर से प्रत्येक स्तर पर आपसी बातचीत होती रही, जिस कारण यह तनाव कम होता गया। इसी भेंट में श्री नरेन्द्र मोदी ने यह भी बताया कि विगत वर्ष अक्तूबर महीने में रूस के शहर कज़ान में उनकी चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ बातचीत हुई थी, जिसके बाद यह तनाव और भी कम हो गया। प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि दोनों देशों में मतभेद ज़रूर हैं परन्तु ये मतभेद विवाद में नहीं बदलने चाहिएं।
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की इन संतुलित टिप्पणियों के बाद चीन ने एक बार फिर दोनों देशों में सद्भावना का माहौल पैदा होने की बात की है। चीन के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माऊ निंग ने कहा कि दोनों देशों के पिछले दो हज़ार से भी अधिक समय से आपसी मैत्रीपूर्ण संबंध रहे हैं। उस समय दोनों का प्रत्येक स्तर पर आपसी आदान-प्रदान भी होता रहा और दोनों ने एक-दूसरे से बहुत कुछ सीखा है। चीन के यातरू शिक्षा शास्त्री और धार्मिक नेताओं ने भारत की लम्बी ऐतिहासिक यात्राएं कीं और यहां के लोगों तथा यहां की जीवनशैली संबंधी विस्तारपूर्वक बहुत कुछ लिखा। यह भी कि बौद्ध धर्म के चीन में प्रवेश करने के बाद लम्बी अवधि तक बौद्ध के चिन्तन ने चीनियों को प्रभावित करके रखा।
चीन के विदेश मंत्रालय ने अपनी बातचीत को और विस्तार देते हुए कहा कि आज दोनों विकासशील देश यदि एकजुट होकर चलते हैं तो इस रास्ते में बड़ी सफलताएं मिल सकती हैं। दोनों देशों के पौने तीन अरब से भी अधिक लोगों की आपसी सहयोग से जीवनशैली बदल सकती है। यह भी कि दोनों देशों के पुराने आपसी राजनीतिक संबंधों की 75वीं वर्षगांठ आ रही हैं। 75वीं वर्षगांठ एक ऐसा अवसर है, जो दोनों के लिए विकास की गति को तेज़ करने का ज़रिया बन सकता है। हम भी दोनों देशों के सम्भावित संबंधों को आशापूर्ण ढंग से देखते हैं, परन्तु क्रियात्मक रूप में उन्हें वास्तविकता से निपटते हुए बेहद कठिनाइयों में से भी गुज़रना पड़ सकता है। द्विपक्षीय मामलों को आपसी सद्भावना से ही हल किया जा सकता है। आगामी समय को एशिया का समय भी कहा जाने लगा है, इस समय के दौरान इन दोनों देशों द्वारा आर्थिक विकास में अहम योगदान डालने की सम्भावना से इन्कार नहीं किया जा सकता।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द