संसद का सत्र बुलाने से क्यों कतरा रही है सरकार ?
भारतीय सेना के ऑपरेशन सिंदूर और आतंकवाद के प्रति भारत के रूख की जानकारी दुनिया भर के देशों को देने के लिए केंद्र सरकार ने 59 लोगों को सात प्रतिनिधिमंडल में बांट कर विदेश भेजा है। ये सात प्रतिनिधिमंडल दस दिन तक दुनिया भर के देशों को बताएंगे कि आतंकवाद के प्रति भारत की क्या नीति है और कैसे वह सीमा पार के आतंकवाद का सामना कर रहा है। पाकिस्तान की पोल खोली जाएगी और भारतीय सेना के पराक्रम के बारे में भी दुनिया को बताया जाएगा, लेकिन विपक्षी पार्टियां चाहती है कि यही बात संसद में भी बताई जाए लेकिन सरकार इसके लिए तैयार नहीं है। जो बातें बताने के लिए भारत के सांसद, पूर्व सांसद और राजदूत आदि विदेश गए हैं, वहीं बातें तो संसद में भी बतानी है। फिर क्यों सरकार इससे हिचक रही है? इतना ही नहीं भारतीय सेना की ओर से हर दिन एक नया वीडियो जारी किया जा रहा है, जिसमें बताया जा रहा है कि सेना ने कैसे ऑपरेशन सिंदूर को अंजाम दिया। दो दिन तक तीनों सेनाओं के बड़े अधिकारियों ने मीडिया के सामने बैठ कर ऑपरेशन की सभी तकनीकी और रणनीतिक जानकारियां दी। इसके बाद ऐसी क्या संवेदनशील जानकारी बच जाती है, जो संसद में चर्चा होने पर दुनिया जान जाएगी? ज़ाहिर है संसद का सत्र नहीं बुलाने के पीछे राजनीति है। अभी सब कुछ एकतरफा तरीके से सरकार की ओर से कहा जा रहा है और वह नहीं चाहती है कि संसद में विपक्ष को एक बड़ा प्लेटफॉर्म मिले।
परमाणु लीकेज की खबर अफवाह
दुनिया भर के परमाणु ठिकानों की निगरानी और सुरक्षा का ज़िम्मा संभालने वाली इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी (आईएईए) ने इस बात से इंकार किया है कि पाकिस्तान के परमाणु ठिकाने से लीकेज हुई है। इस एजेंसी को यह स्पष्टीकरण इसलिए देना पड़ा है कि भारत और पाकिस्तान के बीच हुए चार दिन के सैन्य टकराव के बाद यह खबर तज़ी से फैली थी कि भारत ने पाकिस्तान के किराना हिल्स पर स्थित परमाणु ठिकाने को निशाना बनाया है और इस हमले में परमाणु फैसिलिटी को नुकसान पहुंचा है। यह बात इतनी फैली कि सेना की प्रैस कॉन्फ्रैंस में इस बारे में सवाल पूछा गया। सेना ने बड़े विनोदपूर्ण ढंग से सेना ने इस सवाल को टाल दिया। सेना की ओर से पत्रकार को कहा गया कि ‘आपने अच्छा किया जो बता दिया कि किराना हिल्स पर पाकिस्तान का परमाणु ठिकाना है, हमें इस बारे में जानकारी नहीं थी।’ लेकिन इससे अफवाहें खत्म नहीं हुईं। गौरतलब है कि अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भी कहा कि उन्होंने भारत-पाकिस्तान के बीच परमाणु युद्ध रुकवाया और लाखों लोगों को मरने से बचाया। उनकी बात में इशारा था कि दोनों देश परमाणु हथियार का इस्तेमाल करने जा रहे थे। कहा जा रहा था कि भारत के मिसाइल हमले के बाद पाकिस्तान की परमाणु फैसिलिटी को नुकसान पहुंचा है जिसके बाद उधर से जवाबी कार्रवाई की तैयारी हो रही थी। यह भी कहा गया कि इसी वजह से आननफानन मे युद्ध विराम की सहमति बनी। जो भी हो, आईएईए की घोषणा से काफी कुछ स्थिति साफ हुई है।
विपक्ष को एकजुट कर रहे स्टालिन
विपक्षी पार्टियों के शासन वाले राज्यों की विधानसभाओं से पारित विधेयकों को अनंतकाल तक रोक कर रखने की हाल में बनी प्रवृत्ति को सुप्रीम कोर्ट ने 8 अप्रैल के फैसले से समाप्त कर दिया। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला तमिलनाडु के राज्यपाल और तमिलनाडु सरकार के विवाद को लेकर दायर याचिका मे आया था। इसलिए जब राष्ट्रपति की ओर से इस फैसले को लेकर अनुच्छेद 143 के तहत एक रेफरेंस सुप्रीम कोर्ट को भेजा गया तो सबसे पहले तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने प्रतिक्रिया दी। उन्होंने इसकी आलोचना की और केंद्र सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि यह राज्यों में चुनी हुई सरकारों को कमज़ोर करने और उनका अधिकार कम करने का प्रयास है। अब खबर है कि स्टालिन इसके विरोध में विपक्षी पार्टियों को एकजुट करेंगे और इसका विरोध करने के लिए उन्हें तैयार करेंगे। वैसे सुप्रीम कोर्ट को रेफरेंस भेजने की खबर आने के तुरंत बाद सीपीएम ने भी इसकी आलोचना की। केरल की सीपीएम सरकार भी राज्यपाल के पास लंबित विधेयकों को लेकर सुप्रीम कोर्ट गई है और तमिलनाडु मामले में दिए गए फैसले को केरल पर भी लागू करने की मांग कर रही है। बहरहाल, स्टालिन केरल, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, तेलंगाना, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, झारखंड आदि राज्यों के मुख्यमंत्रियों से बात करेंगे। ये सभी राज्य किसी न किसी रूप में राज्यपालों की भूमिका से परेशान रहे हैं। विपक्षी मुख्यमंत्री कानूनी और राजनीतिक दोनों तरह की लड़ाई की तैयारी करेंगे। वैसे आम तौर पर राष्ट्रपति के रेफरेंस से सुप्रीम कोर्ट के फैसले नहीं बदला करते हैं।
मौसम विभाग लगातार विफल
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) की मौसम संबंधी भविष्यवाणियों की विश्वसनीयता पर अक्सर सवाल उठते रहते हैं। हालांकि मौसम विभाग उन थोड़े से सरकारी विभागों में है, जो कमाई कर रहा है। यह अलग बात है कि सरकारी एजेंसियों से ही उसे ज्यादा पैसा मिलता है। उसने पिछले साल डेढ़ सौ करोड़ रुपये से ज्यादा की कमाई की है। लेकिन पिछले कुछ समय से मौसम संबंधी उसके पूर्वानुमान गलत निकलने से उसके कामकाज पर सवाल उठ रहे हैं। वैसे भी भारत में मौसम विभाग की भविष्यवाणी को मज़ाक का विषय ही माना गया है क्योंकि मौसम विभाग की ओर से जो भविष्यवाणी की जाती है, अक्सर उसका उलटा होता है। लेकिन पिछले कुछ समय से मौसम के मिज़ाज को बिल्कुल नहीं भांप पाने का आरोप मौसम विभाग पर है। असल में इस महीने दिल्ली में तीन बार ऐसा तूफान आया जिसके बारे में मौसम विभाग ने कोई अलर्ट जारी नहीं किया था। मौसम विभाग अलर्ट जारी करे और कुछ नहीं हो तो कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन अलर्ट जारी नहीं हो और कुछ बड़ा हो जाए तो उसका नुकसान होता है। इसकी शुरुआत एक और दो मई की दरम्यानी रात से हुई। उस दिन बड़ी तेज आंधी आई और खूब तेज़ बारिश भी हुई। इसका अलर्ट मौसम विभाग ने नहीं जारी किया था। अभी पिछले सप्ताह राजस्थान से धूल भरी आंधी चली और दिल्ली में उससे बहुत नुकसान हुआ, उसका अंदाज़ा भी मौसम विभाग ने नहीं ज़ाहिर किया। तेज़ आंधी और बारिश से विमानों के परिचालन पर बड़ा असर हुआ।
दिल्ली में ट्रिपल इंजन सरकार के बावजूद!
राष्ट्रीय राजधानी में अब ट्रिपल इंजन की सरकार है। केंद्र में भाजपा की सरकार है, जिसके तहत दिल्ली का ज्यादातर कामकाज आता है। केंद्र के बनाए जीएनसीटीडी एक्ट के मुताबिक उप-राज्यपाल ही असली सरकार है और उप-राज्यपाल केंद्रीय गृह मंत्री को रिपोर्ट करते हैं। इसके बाद दिल्ली में राज्य सरकार भाजपा की है और अब दिल्ली नगर निगम में भी भाजपा की सरकार है। इतना ही नहीं पहली बार ऐसा हुआ है कि दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में भी हर जगह भाजपा की सरकार है। हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के कुछ क्षेत्र एनसीआर में आते हैं। इन तीनों राज्यों में भाजपा की सरकार है। इसके बावजूद दिल्ली में पानी, बिजली से लेकर प्रदूषण तक की समस्या गंभीर होती जा रही है तो उसके लिए कौन ज़िम्मेदार होगा? क्या अब भी अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को ही ज़िम्मेदार ठहराया जाएगा या एनसीआर की सीमा से दूर लेकिन दिल्ली की हवा को प्रभावित करने वाले पंजाब की आम आदमी पार्टी की सरकार और हिमाचल प्रदेश की कांग्रेस सरकार को जिम्मेदार ठहराया जाएगा? यह पहली बार है कि मई में दिल्ली में हवा की गुणवत्ता खराब हो रही है। अप्रैल में भी दिल्ली में हवा की गुणवत्ता बहुत खराब रही। आमतौर पर दिल्ली में गर्मी के मौसम में हवा की गुणवत्ता सुधर जाती है। अगर बारिश हो और तेज़ हवा चल रही हो तो हवा की गुणवत्ता और बेहतर हो जाती है, लेकिन भीषण गर्मी, तेज़ हवा और कई बार बारिश के बावजूद दिल्ली की हवा में सुधार नहीं हुआ है।