मगरमच्छ के दांतों से नोचकर मांस खाने वाला पक्षी मिस्री प्लोवर

यह 20-21 सेंटीमीटर का एक दरमियाने कद का पक्षी है। इसका वजन कोई 75 से 85 ग्राम के बीच होता है। इसका नाम है-मिस्री प्लोवर। इसकी पीठ भूरे रंग की होती है, पेट सफेद होता है, सिर पर एक आकर्षक काली पट्टी होती है, जो आंखों से होकर गुजरती है और इसकी चोंच पतली व नुकीली होती है। यह पक्षी आमतौर पर मिस्र में तो पाया ही जाता है, मिस्र के अलावा यह सूडान, इथोपिया आदि में नील नदी के आसपास देखा जाता है। इसकी खासियत यह है कि मगरमच्छों से भरी नील नदी में जब कोई मगरमच्छ किनारे आकर सुस्ता रहा होता है, तो यह पक्षी एक विशेष तरह की आवाज निकालकर उसे सूचना देता है कि मैं आ रहा हूं। 
इसकी आवाज सुनकर मगरमच्छ सजग हो जाता है और जब यह आवाज देते हुए मगरमच्छ के पास पहुंचता है तो वह बड़े सहज स्वभाव से अपना जबड़ा खोल देता है। यह पक्षी मगरमच्छ से जरा भी डरे, सहमें इसके जबड़े में जाकर बैठ जाता है और अपनी पतली नुकीली चोंच के जरिये मगरमच्छ द्वारा शिकार किये जाने के बाद जो मांस उसके दांतों में फंसा रह जाता है, उसे बड़े मजे से निकाल निकालकर खाता है। जहां बड़े-बड़े जानवर, यहां तक कि जंगल का राजा कहा जाने वाला शेर तक मगरमच्छ के पास जाने से घबराता है और उसके खुले जबड़े को देखकर उसमें झुरझुरी छूटने लगती है, वहीं यह 100 ग्राम से भी कम का पक्षी बड़े आराम से चहकते हुए मगरमच्छ के दांतों में फंसे मांस से अपनी दावत उड़ाता है। यह प्रकृति में सहजीवन का एक अद्भुत नजारा है। दरअसल मगरमच्छ के मुंह में घुसकर उसके दांतों में फंसे मांस को निकालकर प्लोवर पक्षी द्वारा इस तरह खाये जाने को नोटिस सदियों पहले मिस्र के लोगों द्वारा ले लिया गया था और इसे परस्पर सहयोग की मिसाल माना गया था। वास्तव में मगरमच्छ और प्लोवर पक्षी के बीच इस रिश्ते को प्रकृति की एक गहन समझ और संतुलन की अद्भुत मिसाल कह सकते हैं। इस नजारे में पारिस्थितिकी तंत्र की अद्भुत और जटिल संरचना भी छुपी है। यह पक्षी मिस्री प्लोवर के नाम से मशहूर है, तो इसका कारण यह है कि मिस्र के लोगों ने सदियों पहले इस पक्षी का नोटिस लिया था इसलिए इसे मिस्र की सभ्यता में बहुत खास दर्जा भी हासिल है। मिस्र के प्राचीन शिलाचित्रों में कई सारे चित्र प्लोवर पक्षी हैं और कुछ शिलालेख भी हैं, जिसमें यह दर्शाया गया है कि इंसान ने प्रकृति के इस अद्भुत संबंध को सदियों पहले समझ लिया था। 
वास्तव में मगरमच्छ और मिस्री प्लोवर के बीच जो यह सहजीवन का संबंध है, वह परस्पर एक दूसरे के हित में है। क्योंकि जब मगरमच्छ शिकार करते हैं और उनके दांतों में अकसर मांस के टुकड़े फंसे रह जाते हैं, तो अगर वे साफ न हुए तो कुछ दिनों के बाद झड़ने लगते हैं। इससे संक्रमण का खतरा पैदा हो जाता है और अगर एक बार यह संक्रमण हो जाए तो मगरमच्छ का जबड़ा बीमार पड़ जाता है और अंतत: मगरमच्छ की मृत्यु हो जाती है। इस आसन्न खतरे से बचने के लिए ही मगरमच्छ ने सदियों से यह सतर्कता बरती है कि जब प्लोवर उसके दांतों में फंसे मांस के टुकड़े को निकालकर खाता है, तब कभी भी मगरमच्छ प्लोवर को नुकसान नहीं पहुंचाता। शायद ही कोई दुर्भाग्यपूर्ण ऐसा उदाहरण हो, जब प्लोवर द्वारा उसके दांतों की सफाई करने के दौरान मगरमच्छ ने मुंह बंद करके उसके साथ दगाबाजी की हो। क्याेंकि इससे दोनों को फायदा है। जहां मगरमच्छ के दांतों में फंसे सड़े हुए मांस के निकल जाने से वह स्वस्थ रहता है और शिकार करने में सक्षम रहता है, वहीं प्लोवर पक्षी को बिना कोई अतिरिक्त श्रम किए, मजे से मांस की दावत उड़ाने का मौका मिलता है।
प्लोवर मगरमच्छ के मुंह से सिर्फ सड़ा हुआ मांस ही नहीं, मगरमच्छ के जबड़े में पैदा होने वाले परजीवियों और कीड़े मकोड़ों को भी खाता है। इससे मगरमच्छ को बहुत राहत मिलती है। कई वैज्ञानिक मानते हैं कि मगरमच्छ और प्लोवर के बीच का यह संबंध सदियों पुराना है और हजारों साल के सहजीवन परंपरा के तौर पर विकसित हुआ है। हां, कई बार मगरमच्छ को मुंह खोले खोले परेशानी होने लगती है, तब मगरमच्छ भी कुछ ऐसे संकेत करता है कि प्लोवर कुछ देर के लिए उसके जबड़े से बाहर निकल जाए और वह अपना जबड़ा बंद कर सके। एक-दूसरे के साथ सदियों से सहयोग करने के कारण दोनों ने ऐसे संकेतों को बहुत अच्छी तरह से पहचानना भी सीख लिया है। प्रकृति के इस अद्भुत नजारे से हमें यह जैविक और नैतिक शिक्षा मिलती है कि सहजीवन परस्पर हितों के लिए कितना भी जोखिमपूर्ण हो, लेकिन जरूरी है। मिस्री प्लोवर और मगरमच्छ के बीच का यह सौहार्दपूर्ण संबंध हमें प्रकृति की अद्भुत जैविक विविधता से भी परिचय कराती है और इस विरोधाभास में संतुलन कायम करने का दुर्लभ नजारा पेश करती है। 
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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