गंभीर संकट का संकेत है बढ़ती वैश्विक तपिश

जलवायु परिवर्तन या यूं कह लें कि वैश्विक तपिश (ग्लोबल वार्मिंग) के चलते मानव अस्तित्व पर आ रहे संकट की गंभीरता को इसी से समझा जा सकता है वैश्विक तपिश के दुष्परिणाम तेज़ी से हमारे सामने आने लगे हैं। लाख प्रयासों, शिखर सम्मेलनों और संकल्पों के बावजूद पृथ्वी पर तापमान की बढ़ती दर को रोकने में हम पूरी तरह से विफल रहे हैं। 1850 से अब तक के रिकार्ड के अनुसार विश्व में अब तक का सबसे गर्म साल 2024 रहा है। वर्कले अर्थ द्वारा जारी रिपोर्ट में भी इस बात की पुष्टि होती है कि सर्वाधिक गर्म साल 2024 रहा है। मज़े की बात यह है कि यह सब तो तब है जब वैश्विक तपिश को लेकर वैश्विक सम्मेलन लगातार आयोजित हो रहे है और पृथ्वी के बढ़ते तापमान को डेढ़ डिग्री तक सीमित करने के प्रयास किये जा रहे हैं। वैश्विक तपिश का सीधा सीधा अर्थ धरती के तापमान में बढ़ोतरी होना है। इस साल 2025 के ग्लोबल हीट डे की थीम रिकागनाइजिंग एण्ड रेस्पोडिंग टू हीट स्ट्रोक रखा गया है। दुनिया के देश 2050 तक वैश्विक तपिश दर को 50 प्रतिशत कम करना चाहते हैं। 
दरअसल 1896 में ही स्वीडिस मौसम विज्ञानी ने वैश्विक तपिश के खतरों से चेता दिया था। 1975 में वैश्विक तपिश को लेकर सबसे पहली रिपोर्ट आई और 1988 में अमरीका की सीनेट में नासा वैज्ञानिक जैम्स हेनसेन से चर्चा करते हुए आने वाले संकट को स्पष्ट कर दिया था। वैश्विक तपिश के कारण आज दुनिया के देशों, समुद्र किनारे बसे के शहरों, जंगलों की जैव विविधता और बच्चों, बुजुर्गों और पुरानी बीमारियों से ग्रसित लोगों के सामने गंभीर संकट आ गया है। कहने का अर्थ यह है कि यह संकट किसी एक स्थान या एक नागरिक विषेष पर ना होकर समूची मानव जाति के अस्तित्व पर आ गया है। इसके दुष्परिणामों को तो इस तरह से समझा जा सकता है कि ग्लेशियर तेज़ी से पिघलने लगे हैं, इससे समुद्र का जल स्तर लगातार बढ़ने लगा है। मौसम की स्थिति अस्पष्ट होती जा रहे है। गर्मी का मौसम लम्बा व अधिक गर्म होता जा रही है। मौसम चाहे सर्दी का हो, गर्मी का हो या बरसात का, अपने चरम पर पहुंच जाता है। जलवायु परिवर्तन या वैश्विक तपिश के कारण बरसात के दिन कम हो गए हैं, लेकिन कम समय में अधिक बारिश होने बाढ़ जैसी स्थिति पैदा हो जाती है। 
मौसम विज्ञानियों ने पहले ही चेता दिया था कि औद्योगिक क्रान्ति और हमारी जीवन शैली में बदलाव से वैश्विक तपिश के हालात बन गए हैं। वैश्विक तपिश का सबसे मुख्य कारण जीवाश्म ईंधन का अत्यधिक उपयोग रहा है। कोयला, तेल, गैस आदि जीवाश्म ईंधन के उपयोग से ओज़ोन परत पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। इसी कारण तापमान में बढ़ोतरी हो रही है। जीवाश्म ईंधन के साथ ही कुछ अन्य कारण भी है जिससे तापमान में बढ़ोतरी हो रही है। शहरीकरण के लिए लोहे, सीमेंट का अधिक उपयोग, बढ़ रही आबादी का दबाव, प्राकृतिक संसाधनों का व्यापक स्तर पर दोहन, सुविधा के लिए नित नए इलेक्ट्रोनिक उत्पादों का अत्यधिक उपयोग, पंखें या कूलर के स्थान पर एयर कंडीशनरों का उपयोग, आदि तापमान में बढ़ोतरी का कारण बने हुए हैं। मज़े की बात यह है कि आज जिसे बेहतर व उपयोगी बताया जा रहा है, कुछ समय बाद ही उसे हानिकारक बताने में भी हिचकिचाहट नहीं हो रही। आजकल जापान व कछ अन्य देशों में माइक्रोवेव ओवन या आरओ आदि के उपयोग को हानिकारक बताया जाने लगा है। पहले प्लास्टिक को बढ़ावा दिया गया और अब उसके दुष्परिणाम सामने हैं। इसी तरह से जीवाश्म ईंधन के विकल्प के रूप में ईवी वाहनों के प्रोत्साहन के साथ ही दबे स्वर में यह बात भी सामने आने लगी है कि ईवी का भी तापमान पर असर पड़ेगा। हालात इसने गम्भीर होने लगे हैं कि हीट स्ट्रोक के कारण लोगों की ही नहीं जानवरों की भी जान जाने लगी है। 
तापमान की बढ़ोतरी का इसी से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि स्थानीय निकायों द्वारा तापमान अधिक होने पर आमनागरिकों को राहत देने के लिए सड़कों पर पानी का छिड़काव करवाया जाने लगा है तो जयपुर सहित कई शहरों में सिग्नल वाले रास्तों पर गर्मी से राहत के लिए हरा पर्दा लगाया जाने लगा है। आज लोगों में पशु-पक्षियों के प्रति भी संवेदनशीलता बढ़ी है और गर्मी के कारण दाना-पानी की व्यवस्था एक अभियान के रूप में की जाने लगी है। खैर यह तो व्यक्तिगत प्रयासों की बात हुई परन्तु अधिक तापमान के कारण जंगलों में दावानल, तेज़ी से ग्लेशियरों का पिघलना, एक ही बरसात में बाढ़ जैसे हालात पैदा होना, आंधी व तूफान के कारण जन-धन की हानि और अन्य समस्याएं तेज़ी से बढ़ती जा रही है। अभी भी समय है कि हम सजग हो जाएं और प्रकृति संसाधनों से खिलवाड़ करने के स्थान पर उन्हें विकास का वाहक बनाएं। इसके लिए बीट द हीट के हैसटैग से संदेश देने का आह्वान भी लगातार किया जा रहा है।
-मो. 94142-40049

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