इतिहास और इतिहासकार, एक दृष्टिकोण 

इस विषय के बारे में लिखने से पहले इतिहास क्या है, के बारे में साधारण शब्दों में व्याख्या यह है कि तात्कालिक समय में घटित घटनाओं का वर्णन व उस समय में लिखित रचनात्मक लेख व महत्वपूर्ण लोगों के किरदार व उनके कार्य जिनसे विश्व ने प्रेरणा ली है व उनमें से कुछ युद्ध, विघटन, कष्ट, नरसंहार के कारण बने कुछ अति महत्वपूर्ण विश्व को नई राहें मिलीं, नई खोजें हुईं। जीवन को सुलभ बनाने के साधन मिले। खेल, उद्योग, रक्षा, यातायात, शिक्षा, शासन प्रणालियां, संचार, उपभोग व विलासिता के बारे में वर्णित पंक्तियां बार-बार सम्मान व घृणा के साथ याद की जाती हैं। इसे ही तो इतिहास कहते हैं। आज जब मैं इस विषय के बारे में लिख रहा हूं, तब न जाने कितनी बातें मेरे सामने एक यक्ष प्रश्न बन कर उभर रही हैं। जिसे इतिहास मान कर आज तक हम सत्य समझ रहे हैं, वे वास्तव में कितनी सत्य है, इसके बारे में आगे लिखने से पहले मैं आपको एकर उदाहरण से बताना चाहता हूं कि मैं इस निष्कर्ष पर क्यों और कैसे पहुंचा।
अभी हाल ही में भारत और पाकिस्तान में ऑपरेशन सिंदूर के दौरान मैंने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ को वहां की संसद में बोलते हुए सुना जिसमें वह कह रहे थे कि हमने दुश्मन मुल्क के पांच विमान जिनमें तीन राफेल और दो सुखोई विमान थे, को मार गिराया और भारत ने घबरा कर युद्धविराम के लिए गुहार लगाई है, इसके लिए मैं पाकिस्तान की सेना को मुबारकबाद देता हूं। लगभग यही शब्द उनके रक्षा मंत्री ख्वाज़ा मोहम्मद आसिफ व पूर्व विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो ने विदेशी पत्रकारों से साक्षात्कार के दौरान कहे। अब इन्हीं शब्दों को पाकिस्तान के लेखकों व अन्य बुद्धिजीवियों द्वारा अलग-अलग लेखों द्वारा पाकिस्तान की जनता को परोसा गया। हो सकता है, इसी से सम्बधित कुछ किताबें भी लिखी जाएंगी। इन सबमें सबसे महत्पूर्ण पाकिस्तान के प्रधानमंत्री द्वारा संसद में दिया गया बयान है, क्योंकि संसद के संवाद आने वाली पीढ़ियों के लिए ज्ञान व शोध के स्रोत भी होते हैं। 
अब आप अंदाज़ा लगाइये कि आज से सुछ सौ वर्ष बाद जब कोई विद्यार्थी पाकिस्तान के भारत के साथ हुए युद्धों के बारे में खोज कर रहा होगा, तब वह तो इसे सत्य ही मानेगा, क्योंकि इसी ऑपरेशन के बाद वहां की सेना के सेनापति सैयद आसिफ मुनीर अहमद को उनके बेहतरीन कार्य के लिए फील्ड मार्शल बना दिया गया है। अगर इसी समय कोई भारत का विद्यार्थी भी इसी विषय पर पेपर लिख रहा होगा, तब उसके निष्कर्ष व पाकिस्तान के विद्यार्थी द्वारा निकाले गए निष्कर्ष एक-दूसरे के बिल्कुल विपरीत होंगे। 
इसी विषय को थोड़ा आगे ले जाइये। कुछ हिन्दुस्तानी व पाकिस्तानी परिवार विदेशों में बस जाते हैं। उनके बच्चे अपनी मेहनत व लगन से कुछ वर्षों के बाद विश्व स्तर के लेखक हो जाते हैं व उन्हें कई पुरस्कारों से नवाज़ा भी जाता है और यदि लेखक कुछ सौ वर्ष पहले की घटनाओं व उस समय के महत्वपूर्ण पुस्तकों के निष्कर्ष के बारे कुछ नकारात्मक टिप्पणियां करते हैं और इन्हीं शब्दों को सत्य मान कर कुछ चाटुकार लोग बहस शुरू कर लेते हैं, जिसका अन्त आपसी वैमनस्य व दंगों में परिवर्तित हो जाता है। हम तो भाग्यशाली हैं कि हमें यह कटु सत्य अपने सामने घटित होते दिखाई दे रहा है, क्योंकि प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री व पूर्व विदेश मंत्री की टिप्पणियों के बाद जब पत्रकारों ने रक्षा मंत्री आसिफ से पूछा कि जो हवाई जहाज़ गिराने का आप दावा कर रहे हैं, वे कहां गिरे? उनके अवशेष तो कहीं गिरे होंगे। जो पायलट इनको चला रहे थे, वे कहा हैं? हम इन गिरे हुए विमानों को देखना चाहते हैं। इस पर ख्वाज़ा साहिब ने कहा कि आप लोग ट्विटर पर ट्वीट नहीं पढ़ते क्या? बार-बार ट्विटर पर इसका ज़िक्र किया जा रहा है। यह तो हकीकत है पाकिस्तान के दावों की, परन्तु क्या आने वाली पीढ़ियां ट्विटर पर ट्वीट्स को या संसद में दिये गए भाषण को सत्य मानेंगी? 
ज़ाहिर है कि संसद में किये गये दावों को ही सत्य माना जाएगा और इस समय के देशी व विदेशी तथाकथित बुद्धिजीवियों के लेखों को ही आधार माना जाएगा, क्योंकि इन लोगों का सत्य से कोई वास्ता नहीं होता। इनका एकमात्र लक्ष्य अपने लिए सुख-सुविधा जुटाना व तात्कालीन शासकों की हां में हां मिलाना ही होता है व अपने लिए एक स्थान सुरक्षित करना ही इनका एकमात्र लक्ष्य होता है। अब निर्णय हमने करना है कि हमें अपनी सोच का आधार इन आधारहीन साधन जैसे कि व्हाट्सअप, इंस्टाग्राम, ट्विटर इत्यादि की टिप्पणियों को बनाना है या कि हमारे महान व्यक्तियों द्वारा लिखी गई पुस्तकों को आधार मान कर करना है। 
मैं एक छोटी-सी वास्तविकता का ज़िक्र करना चाहूंगा। आचार्य चाणक्य ने अर्थ-शास्त्र लगभग 2300 वर्ष पूर्व लिखा था। इस महान ग्रंथ को लिखने से पूर्व आचार्य विष्णु गुप्त (चाणक्य) ने लिखा है कि इस धरा पर आज तक सभी उपलब्ध लेखों के अध्ययन के बाद मैं यह अर्थ शास्त्र लिखने जा रहा हूं व उन्होंने सम्पूर्ण अर्थ-शास्त्र में अपने लेखों के बारे में अगर कोई नई विचारधारा दी है, तब उस समय के लिखित ग्रंथ का विधिपूर्वक उल्लेख किया है कि अमुक टिप्पणी इन ग्रंथ के अमुक अध्याय व श्लोक से ली गई है। 
हमने क्या किया? : हमने अर्थ-शास्त्र की आलोचना का आधार कुछ विदेशी लेखकों द्वारा लिखित टिप्पणियों  को मान कर अर्थ-शास्त्र जैसी महान लेखनी को भी नहीं छोड़ा। और आलोचना भी कौन कर रहे हैं? जिन्हें शायद यह भी पता नहीं होता कि भारत में कितने राज्य और कितने संघीय क्षेत्र हैं। दुख इस बात का है कि शिक्षित व समर्थ लोग चुप्पी साधे हुए हैं। इतिहास गवाह है कि अशिक्षित व समाज विरोधी किसी भी राष्ट्र के पतन का कारण कभी नहीं हुए, अपितु शिक्षित व समर्थ लोगों की चुप्पी व असहयोग ही रहा है। 
समय रहते ही हम अपनी चुप्पी तोड़ें और अपनी सोच का आधार अपने महान लोगों द्वारा लिखित लेखों व उनके द्वारा किए गए कार्यों को ही आधार बनाएं। हम कल क्या थे, यही रटते रहने से कोई लाभ नहीं होगा। हम आज क्या हैं, कहां हैं? कल के लिए आज क्या कार्य किये जा रहे हैं व हम कितने प्रयत्नशील हैं? यही सिद्ध करेगा कि हम कल कहां पहुंचेंगे। 

-गांव संतोषगढ़, ज़िला ऊना, हिमाचल प्रदेश 
-मो. 94175-47493

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