राहुल के बयानों को अपने ढंग से पेश कर रहा है पाकिस्तानी मीडिया
कांग्रेस तथा विपक्ष नेता राहुल गांधी के उस बयान की पाकिस्तानी मीडिया में खूब चर्चा हो रही है, जिसमें उन्होंने कहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के आगे आत्मसमपर्ण कर दिया है। इसे बयान लेकर पूरी भाजपा राहुल को गद्दार और पाकिस्तानी मीडिया का नायक बता रही है। भारत के टीवी चैनल भी भाजपा के सुर में सुर मिलाते हुए राहुल और कांग्रेस से सवाल पूछ रहे हैं। दूसरी ओर भाजपा नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री सुब्रह्मण्यम स्वामी प्रधानमंत्री मोदी पर राहुल से भी ज्यादा तीखा हमला करते हुए 6 भारतीय विमानों के गिरने का दावा कर रहे हैं। यही नहीं, वह संघर्ष विराम कराने के अमरीकी राष्ट्रपति के दावे को भी सही बता रहे हैं। भारतीय विमानों के गिरने की बात भारत के चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल अनिल चौहान ने भी मानी है। मगर पाकिस्तानी मीडिया स्वामी और जनरल चौहान के बयानों को तवज्जो न देते हुए सिर्फ राहुल के बयान की चर्चा कर रहा है। ऐसा क्यों, बहुत सीधी सी बात है, जैसा टेलीविजन मीडिया भारत का है, वैसा ही पाकिस्तान का भी है। जब हमारे यहां के टीवी चैनल पैसे के लिए किसी भी हद तक झुकने के तैयार रहते हैं तो पाकिस्तानी टीवी चैनल ऐसा क्यों नहीं कर सकते? जब हमारे टीवी चैनल देश में युद्धोन्माद पैदा करने के लिए पाकिस्तानी सेना के किसी भी पूर्व अधिकारी, वहां के किसी भी नेता, पत्रकार या किसी टपोरी को 10-20 हज़ार रुपये देकर भारत को, भारतीय प्रधानमंत्री और भारतीय सेना को गालियां दिलवा सकते हैं तो पाकिस्तानी टीवी चैनलों को कुछ पैसे देकर उनसे राहुल गांधी के बयानों पर चर्चा कराना कौन-सी बड़ी बात है?
परिसीमन 2029 के बाद ही हो पाएगा
केंद्र सरकार ने जनगणना और उसके साथ ही जातिगत गणना कराने का जो ऐलान किया है, उसके मुताबिक दो चरणों में होने वाली जनगणना एक मार्च 2027 को पूरी हो जाएगी। हालांकि इसके आंकड़े आने में समय लगेगा। इसीलिए सरकार की ओर से कहा गया है कि परिसीमन का काम जनगणना से नहीं जुड़ा है। माना जा रहा है कि इस बार जनगणना डिजिटल डिवाइसेज के साथ होगी, जिससे अंतिम आंकड़े आने में ज्यादा समय नहीं लगेगा। फिर भी एक अनुमान के मुताबिक अंतरिम आंकड़े 2028 से पहले नही आएंगे। अगर जनगणना के अंतरिम आंकड़े 2028 में आएंगे तो अंतिम आंकड़े आने में एक साल के करीब समय और लगेगा। तब तक 2029 का लोकसभा चुनाव आ जाएगा। चूंकि परिसीमन के लिए अलग से एक साल से ज्यादा का समय लगेगा, इसलिए यह 2029 से पहले संभव नहीं होगा। इसका मतलब कि लोकसभा का अगला चुनाव 543 सीटों का ही होगा और उसके बाद परिसीमन का काम होगा। गौरतलब है कि अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार द्वारा किए गए संविधान संशोधन में भी कहा गया है कि 2026 के बाद होने वाली जनगणना के आधार पर परिसीमन होगा। अत: जनगणना 2027 में पूरी होगी, 2029 तक उसके अंतिम आंकड़े आएंगे और उसके बाद परिसीमन होगा।
अवमानना के मामले में दोहरा रवैया!
अभी कुछ दिन पहले ही भाजपा के वरिष्ठ सांसद निशिकांत दुबे ने न्यायपालिका पर बहुत आपत्तिजनक टिप्पणी की थी। उन्होंने तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना का नाम लेकर कहा था कि संजीव खन्ना की वजह से देश में गृह युद्ध हो रहा है, लेकिन तब अदालत ने भाजपा सांसद के खिलाफ अवमानना का मामला नहीं शुरू किया, बल्कि अदालत के सामने यह मामला आया तो उसे यह कहते हुए खारिज कर दिया गया कि न्यायपालिका इतनी कमज़ोर नहीं है, जो ऐसी टिप्पणियों से बिखर जाएगी। अब उसी सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेकर एक यू-ट्यूबर अजय शुक्ला के खिलाफ अदालत की अवमानना का मामला शुरू किया है। आरोप है कि अजय शुक्ला ने अपने यू-ट्यूब प्लेटफॉर्म पर सुप्रीम कोर्ट से हाल ही में रिटायर हुईं जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी के लिए अपमानजनक टिप्पणियां की हैं। प्रधान न्यायाधीश बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने स्वयं इस पर संज्ञान लिया और सुप्रीम कोर्ट की रजिस्टरी को निर्देश दिया है कि वह अवमानना की कार्रवाई शुरू करे। सवाल है कि क्या अजय शुक्ला की टिप्पणी निशिकांत दुबे की टिप्पणी से भी ज्यादा अपमानजनक है और क्या वे निशिकांत दुबे से बड़े व्यक्ति हैं? शुक्ला के बयान से अदालत की भावना आहत हो गई और मुकद्दमा शुरू हो गया, लेकिन भाजपा के एक सांसद ने प्रधान न्यायाधीश पर आरोप लगाया तो वह टिप्पणी अवमानना के योग्य नहीं मानी गई!
आपातकाल के 50 साल पर विशेष सत्र?
केंद्र सरकार आपातकाल के 50 साल पूरे होने पर संसद का विशेष सत्र बुला सकती है। कांग्रेस के महासचिव और संचार विभाग के प्रमुख जयराम रमेश ने कहा है कि सरकार 25 और 26 जून को दो दिन का विशेष सत्र बुला सकती है, जिसमें आपातकाल के 50 साल पूरे होने पर चर्चा होगी। पता नहीं सरकार का इस तरह का कोई इरादा है या नहीं लेकिन कांग्रेस ने उससे पहले ही इसका माहौल बना दिया। कांग्रेस की ओर से कहा जा रहा है कि पहलगाम कांड और उसके बाद ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा के लिए सरकार विशेष सत्र नहीं बुला रही है। गौरतलब है कि कांग्रेस, सीपीएम, तृणमूल कांग्रेस आदि पार्टियों ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिख कर संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग की है, लेकिन सरकार ने इससे इन्कार किया है। अगर इंदिरा गांधी द्बारा 1975 में लगाए गए आपातकाल के 50 साल पूरे होने के मौके पर विशेष सत्र होता है तो कांग्रेस इसे बड़ा मुद्दा बनाएगी। अगर विशेष सत्र होता है तो कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल उसमें आपातकाल की बजाय पहलगाम और ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा की मांग करेंगे और अपनी ओर से विपक्ष के नेता इसी मसले पर बोलेंगे। वैसे विपक्ष की ओर से केंद्र सरकार पर देश मे अघोषित आपातकाल लगाने का आरोप लगाया जाता है। वह मुद्दा भी विशेष सत्र में आ सकता है। सरकार को भी अंदाज़ा है कि विशेष सत्र बुलाया तो पहलगाम, ऑपरेशन सिंदूर, युद्ध विराम जैसे तमाम मुद्दे उठेंगे।
अर्थ-व्यवस्था पर नहीं दिखा कुम्भ का असर
भारत सरकार के सांख्यिकी विभाग की ओर से वित्त वर्ष 2024-25 के जारी आंकड़ों के मुताबिक इस वित्त वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के बढ़ने की दर 6.5 फीसदी रही। इसके साथ ही यह भी आंकड़ा आया कि पिछले वित्त वर्ष की आखिरी तिमाही यानी जनवरी से मार्च 2025 के बीच जीडीपी बढ़ने की दर 7.4 फीसदी रही। यह आंकड़ा एक साल पहले यानी जनवरी से मार्च 2024 की विकास दर 8.4 फीसदी से एक फीसदी कम रहा। सरकार के आंकड़ों के मुताबिक ज्यादातर सेक्टर में गिरावट रही। गौरतलब है कि उससे पहले के वित्त वर्ष में विकास दर 9.2 फीसदी रही थी, जो 2024-25 में घट कर साढ़े छह फीसदी पर आ गई। ध्यान देने की बात है कि जनवरी से मार्च की अवधि वह थी, जिसमें उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में कुम्भ चल रहा था। दावा किया गया कि 60 करोड़ से ज्यादा लोगों ने कुम्भ में डुबकी लगाई। योगी आदित्यनाथ सरकार की ओर से दावा किया जा रहा था कि कुम्भ से तीन लाख करोड़ रुपए का कारोबार जीडीपी में जुड़ेगा और उपभोक्ता खर्च बढ़ने का असर जीडीपी पर दिखाई देगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। चौथी तिमाही यानी जनवरी से मार्च तक जब कुम्भ चल रहा था उस समय उपभोक्ता खर्च बढ़ने की दर सिर्फ छह फीसदी रही, जो उससे पहले की पांच तिमाहियों में सबसे कम है। इसका मतलब है कि कुम्भ उपभोक्ता खर्च नहीं बढ़ा पाया और देश की अर्थव्यवस्था पर वैसा सकारात्मक असर नहीं डाल पाया, जैसे असर का प्रचार किया जा रहा था।