अर्थ-व्यवस्था को धार देगी रेपो दर में कमी
वैश्विक स्तर पर चल रही आर्थिक उथल-पुथल के बीच पिछले कुछ समय से देश में अर्थव्यवस्था के लिहाज से सकारात्मक खबरें और अब भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) की ओर से नीतिगत दरों में कमी से यही संकेत उभरता है कि महंगाई कुछ नियंत्रण में है। ऐसे में आर्थिक मोर्चे पर खड़ी चुनौतियों से निपटने में काफी हद तक देश आगे बढ़ा है।
आरबीआई ने एक बार फिर गत 6 जून को प्रमुख नीतिगत दर यानी रेपो दर में 0.5 फीसदी की कमी करके उसे 5.5 फीसदी कर दिया। जो उम्मीद से ज्यादा है। इसके अलावा एक चौंकाने वाले फैसले के तहत आरबीआई ने बैंकों के लिए भी नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) में भी एक फीसदी की कटौती की घोषणा लगातार तीसरी बार की है। इससे पहले आरबीआई ने इसी वर्ष फरवरी और अप्रैल में पच्चीस आधार अंकों की कटौती की थी। ज़ाहिर है, यह न केवल देश के भीतर आर्थिक उतार-चढ़ाव से निपटने की कोशिश है, बल्कि दुनिया भर में जो चुनौतियां खड़ी हो रही हैं, उसमें निपटने और अर्थव्यवस्था को संभालने में भी मदद मिलेगी। यही नहीं आरबीआई की घोषणा के चंद घन्टों बाद ही बैंकिंग सेक्टर में लोन और फिक्स्ड डिपॉजिट के ब्याज दरों में कमी होने वाली है। देश के दो बड़े बैंकों ने ऋण की ब्याज दर में बदलाव किया है। पब्लिक सेक्टर के पंजाब नेशनल बैंक ने रेपो लेंडिंग रेट (आरएलएलआर) में 50 बीपीएस की कटौती की है। नई दरें 9 जून से प्रभावी होंगी। वहीं देश के एक बड़े प्राइवेट सेक्टर बैंक ने एमसीएलआर दरों में 10 बीपीएस यानि 0.10 प्रतिशत की कमी है। दरों में कटौती का असर ईएमआई पर पड़ेगा। उधारकर्ताओं को राहत मिलेगी। होम लोन, कार लोन, पर्सनल लोन और ऋण पर नए रेट प्रभावी होंगे। भारतीय स्टेट बैंक के ग्रुप चीफ इकोनॉमिक एडवाइजर सौम्य कांति घोष और पिरामल एंटरप्राइज़ेज़ के चीफ इकोनॉमिस्ट देबोपम चौधरी ने एक ऐसी भविष्यवाणी की थी, जिसका शायद ही किसी और ने अनुमान लगाया हो। उन्होंने जून में भारतीय रिज़र्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति की बैठक में ब्याज दरों में बड़ी कटौती का अनुमान लगाया था, और हुआ भी ऐसा ही। रिज़र्व बैंक ने ब्याज दरों में 50 बीपीएस की कटौती की दी। अब इन दोनों अर्थशास्त्रियों ने फिर से भविष्यवाणी की है। इन दोनों का मानना है कि रिज़र्व बैंक फिर से ब्याज दरों में कटौती करेगा।
आम बोलचाल के रूप में रेपो दरों में कमी को मुख्य रूप से ऋण के लिहाज से सुविधाजनक माना जाता रहा है। कज़र् सस्ता या महंगा होने का हिसाब इसी पर टिका होता है और इसका सीधा और पहला असर उन उपभोक्ताओं पर पड़ता है, जिन्होंने घर, वाहन, अन्य सामान या फिर शिक्षा जैसी ज़रूरतों के लिए बैंकों से ऋण लिया होता है या फिर वे लोग, जो इस बात का इंतज़ार करते हैं कि रिज़र्व बैंक की ओर से कब नीतिगत दरों में कमी की जाए और कज़र् सस्ता होने के बाद वे कुछ खरीदने या निवेश करने की योजना बनाएं। वैसे तो रिज़र्व बैंक की नीतिगत दरों के अनुरूप ही व्यावसायिक बैंक उपभोक्ताओं को दिए जाने वाले ऋण और अन्य सावधि जमा के मद में ब्याज की दरें निर्धारित करते हैं। रेपो दर के घटने बाद यह अनुमान लगाया जा रहा है कि पिछले कुछ समय से वाहन बाज़ार और खासतौर पर ज़मीन-जायदाद के कारोबार में जिस तरह की मंदी की आशंका जताई जा रही थी, नीतिगत दरों में कटौती के बाद उसमें सुधार होगा। इस लिहाज से देखें तो रिज़र्व बैंक की ओर से नीतिगत दरों में बड़ी कमी की जो घोषणा की है, वह एक तरह से अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने की दिशा में एक अहम कदम है, लेकिन इस तरह के फैसले सिर्फ घोषणाओं और अर्थव्यवस्था के जटिल गणित तक ही न सिमटे रहें। इसका असर जब तक ज़मीन पर नहीं दिखेगा, आम लोगों को इसका सीधा फायदा नहीं मिलेगा, वे अपनी ज़रूरत के लिए घर या कोई अन्य चीज की खरीदारी को लेकर सहज और निर्द्वद्व नहीं होंगे, तब तक इस तरह के फैसले अर्थव्यवस्था की चुनौतियों को दूर करने में सहायक साबित नहीं हो सकते। महंगाई से राहत और क्रय शक्ति की सीमा में खरीदारी में सहजता से यह तय होगा कि रेपो दर में कमी का लाभ आम लोगों तक कितना पहुंच पाता है। ऋण लेने का उत्साह उसे चुकाने की स्थितियों पर टिका रह सकता है। इसलिए रोज़गार और आय के अन्य माध्यमों की बुनियाद मज़बूत करने की स्थिति पैदा करनी होगी, ताकि लोग अपने निवेश और अन्य आर्थिक फैसलों को लेकर सुरक्षित महसूस करें। भारतीय रिज़र्व बैंक ने आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए रेपो दरों में 0.5 प्रतिशत की कटौती की है, जो विशेषज्ञों के अनुमान से अधिक है। साथ ही, कैश रिज़र्व रेशो में 1 प्रतिशत की कमी की गई है, जिससे बैंकों के पास कज़र् देने के लिए अधिक धन उपलब्ध होगा। हालांकि यह भी कहा जा रहा है कि यूक्रेन-रूस युद्ध और अमरीकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रम्प के टैरिफ संबंधी अनिश्चितताओं के कारण विकास की राह चुनौतीपूर्ण हो गई है।