सूखती धरती, सूखते सपने : भूमि क्षरण से जूझती दुनिया
आज विश्व मरुस्थलीकरण व सूखा रोकथाम दिवस पर विशेष
धरती की उपजाऊ त्वचा दरक रही है, सूख रही है और धीरे-धीरे रेत में बदलती जा रही है। विश्व की यह भयावह त्रासदी आज एक वैश्विक आपदा के रूप में उभर रही है, जिसे हम ‘मरूस्थलीकरण’ कहते हैं। संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित ‘विश्व मरूस्थलीकरण व सूखा रोकथाम दिवस’ प्रतिवर्ष 17 जून को मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य है वैश्विक समुदाय को भूमि क्षरण, सूखे और बंजर होती धरती की ओर सचेत करना। धरती का लगभग 40 प्रतिशत हिस्सा किसी न किसी रूप में भूमि क्षरण से जूझ रहा है और इस संकट से दुनिया की आधी आबादी प्रभावित हो रही है। इस भयावह संकट से निपटने में हर व्यक्ति की भूमिका अहम है। इस वर्ष यह दिवस ‘भूमि को पुन:स्थापित करे- अवसरों को खोलें’ विषय के अंतर्गत मनाया जा रहा है। यह विषय इस बात पर प्रकाश डालता है कि प्रकृति की नींव ‘भूमि’ को पुन:स्थापित करने से किस प्रकार रोज़गार सृजित हो सकते हैं, खाद्य और जल सुरक्षा को बढ़ावा मिल सकता है, जलवायु कार्रवाई का समर्थन किया जा सकता है और आर्थिक लचीलापन निर्मित किया जा सकता है।
संयुक्त राष्ट्र मरूस्थलीकरण रोकथाम संधि (यूएनसीसीडी) की वर्ष 2024 की रिपोर्ट के अनुसार विश्व की लगभग 25 प्रतिशत उपजाऊ भूमि अब तक बंजर हो चुकी है। यह भूमि न केवल खाद्यान्न उत्पादन के लिए उपयुक्त थी बल्कि करोड़ों लोगों के जीवन-यापन का साधन भी थी। आज स्थिति यह है कि हर साल लगभग 120 लाख हेक्टेयर भूमि बंजर हो रही है, जो कि हर मिनट 23 हेक्टेयर के बराबर है। यही नहीं वर्ष 2023 के अंत तक वैश्विक स्तर पर 130 देशों ने स्वीकार किया कि वे भूमि क्षरण की गंभीर स्थिति से जूझ रहे हैं। यूएनसीसीडी के अनुसार यदि तत्काल प्रभावी कदम नहीं उठाए गए तो 2050 तक विश्व की 90 प्रतिशत भूमि किसी न किसी रूप में क्षरण का शिकार हो जाएगी। इस क्षरण के चलते वैश्विक खाद्यान्न उत्पादन में 12 से 15 प्रतिशत तक की गिरावट का खतरा है। संयुक्त राष्ट्र की एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार केवल मरूस्थलीकरण के कारण 2030 तक करीब 13.5 करोड़ लोग विस्थापन के लिए विवश हो सकते हैं। मरूस्थलीकरण और सूखा एक-दूसरे के पूरक बनते जा रहे हैं। जब भूमि सूखती है तो जैव विविधता समाप्त होती है और धरती की उपजाऊ परतें उड़ जाती हैं। संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि वर्ष 2025 तक दो-तिहाई से अधिक वैश्विक जनसंख्या जल संकट से प्रभावित होगी, जिससे खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य व आजीविका पर गहरा असर पड़ेगा। भारत में ही देखें तो नीति आयोग के ‘कंपोजिट वाटर मैनेजमेंट इंडेक्स’ के अनुसार 2030 तक भारत की लगभग 40 प्रतिशत जनसंख्या को पीने योग्य जल की उपलब्धता नहीं होगी।
इसरो द्वारा वर्ष 2021 में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार भारत की कुल भौगोलिक भूमि का लगभग 29.7 प्रतिशत क्षेत्र (करीब 96.4 मिलियन हेक्टेयर) मरूस्थलीकरण या भूमि क्षरण से प्रभावित है। इससे भी गंभीर बात यह है कि इनमें से करीब 80 प्रतिशत क्षेत्र केवल 9 राज्यों (राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, झारखंड, ओडिशा, जम्मू-कश्मीर और तेलंगाना) में केंद्रित है। सीएसई (सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट) की एक रिपोर्ट में बताया जा चुका है कि भारत के 78 सूखा-प्रवण ज़िलों में से 21 ज़िले ऐसे हैंए जहां 50 प्रतिशत से अधिक भूमि बंजर हो चुकी है। झारखंड, दिल्ली, गोवा व गुजरात जैसे राज्यों में तो मरूस्थलीकरण की प्रक्रिया और भी तेज हो चुकी है। वर्ष 2023 में नीति आयोग द्वारा प्रकाशित भूमि और जल संकट पर रिपोर्ट में बताया गया था कि भारत का लगभग 70 प्रतिशत भौगोलिक क्षेत्र ‘ड्राईलैंड इकोसिस्टम’ की श्रेणी में आता है, जो जलवायु परिवर्तन और मानवीय दखल के कारण मरूस्थलीकरण की चपेट में तेजी से आ रहा है। मरूस्थलीकरण केवल भूमि तक सीमित नहीं है, यह हमारे स्वास्थ्य, वायु गुणवत्ता और पारिस्थितिकी तंत्र पर भी गंभीर प्रभाव डालता है। यूएनईपी की वर्ष 2023 की रिपोर्ट बताती है कि मरूस्थलीकरण से उठने वाली धूल के कण (पीएम 2.5) श्वसन, हृदय रोग और कैंसर जैसी बीमारियों को बड़ा रहे हैं। भारत सरकार ने सितंबर 2019 में यूएनसीसीडी के कॉन्फ्रैंस ऑफ पार्टीज (कॉप4) की मेजबानी नोएडा में की थी, जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संकल्प लिया था कि भारत वर्ष 2030 तक 2.6 करोड़ हेक्टेयर बंजर भूमि को उपजाऊ बनाएगा। इस दिशा में ‘नेशनल अफॉरेस्टेशन प्रोग्राम’, ‘कैच द रेन’, ‘वृक्षारोपण अभियान’, ‘जल शक्ति अभियान’ और ‘राष्ट्रीय भूमि पुनरुद्धार मिशन’ जैसी कई योजनाएं क्रियान्वित की गई हैं।