आपसी सहयोग की ज़रूरत
हरियाणा के सूरजकुंड में हुई उत्तरी राज्यों की केन्द्रीय कौंसिल की 32वीं बैठक इसलिए अहम कही जा सकती है कि इसमें अलग-अलग राज्यों के प्रमुखों ने अपने-अपने प्रदेशों को दरपेश मामले खुल कर एक-दूसरे के साथ सांझे किए हैं। इस तरह मूलभूत रूप में इस आपसी समझदारी में वृद्धि होती है और आपसी अच्छा सहयोग भी बना रहता है। देश के उत्तरी क्षेत्र के राज्य एक-दूसरे के साथ पूरी तरह से जुड़े हुए हैं। दिन-प्रतिदिन इनका प्रत्येक स्तर पर आपसी आदान-प्रदान होता रहता है। दिल्ली से लेकर लद्दाख तक यह क्षेत्र आपस में पूरी तरह से जुड़ा हुआ है। चाहे इनमें प्रांतीय या केन्द्रीय प्रशासन अलग-अलग इकाइयों के रूप में काम करते हैं। दिल्ली, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, पंजाब और जम्मू-कश्मीर तक लाखों ही लोगों का इन राज्यों में आना-जाना बना रहता है। कई पक्षों से यह राज्य एक-दूसरे पर आधारित हैं। देश की आज़ादी के बाद इस उत्तरी क्षेत्र में ही समय-समय पर बड़े बदलाव देखने को मिले हैं। राज्यों की हदबंदी भी बदलती रही और इनकी ज़रूरतें और समस्याओं में भी उतार-चढ़ाव आता रहा है।
इसमें कोई सन्देह नहीं कि 1947 के विभाजन के बाद इस क्षेत्र में पंजाब का प्रत्येक पक्ष से घाटा होता रहा है। विभाजन के समय पंजाब का ज्यादातर क्षेत्र पाकिस्तान में चला गया था। फिर 1966 में पंजाब के पुनर्गठन के समय इसका बड़ा भाग हरियाणा में चला गया और कुछ पहाड़ी क्षेत्र हिमाचल को दे दिए गए। आज पंजाब के पास विभाजन से पहले के पंजाब की धरती का मात्र 20 प्रतिशत हिस्सा ही रह गया है। पांच नदियों की धरती अढ़ाई नदियों तक सिकुड़ गई है। वर्षों से मामलों का समाधान न होने के कारण प्रदेश लगातार घाटे में जाता दिखाई दे रहा है। इसके दर्जनों गांवों को उजाड़ कर निर्माण की गई राजधानी भी उसके पास नहीं है। इसके साथ ही नदियों के पानी का विवाद भी किसी तरह सुलझता दिखाई नहीं दे रहा। कुछ ही दिन पहले पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़ के ढांचे में बड़े बदलाव करने से यह संस्थान भी पंजाब के हाथों से निकलता प्रतीत हो रहा है। चाहे पंजाब को हरित क्रांति का संस्थापक माना जाता रहा है परन्तु अनेक कारणों के दृष्टिगत इसके सिर पर ऋण की गठरी लगातार भारी होती गई है और यहां रोज़गार के उचित अवसर पैदा न होने के कारण बड़ी संख्या में युवा वर्ग यहां से निकलने को प्राथमिकता देता रहा है और ज्यादातर युवा दिशाहीन होकर नशे की दलदल में भी धंसते जा रहे हैं। इसी समय में जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के ढांचे में भी लगातार बदलाव होते रहे हैं। आज भी यह क्षेत्र चौराहे पर खड़ा दिखाई दे रहा है। इसकी अपनी समस्याएं और मांगें हैं। दिल्ली देश की राजधानी है, इसमें प्रत्येक क्षेत्र के लोग बसते रहे हैं। महानगर होने के कारण इसे भी लगातार बड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
इसमें सन्देह नहीं कि यदि प्रदेश मज़बूत होंगे तो देश भी मज़बूती और विकास के मार्ग पर चलेगा। इसीलिए इस क्षेत्र को दरपेश साझी समस्याओं को प्रदेश सरकारों को न्याय-संगत ढंग से आपसी सहयोग के साथ हल करने की ओर बढ़ना चाहिए। इस संदर्भ में केन्द्र सरकार को भी क्षेत्र की समूची पृष्ठ-भूमि के दृष्टिगत दरपेश समस्याओं को सन्तोषजनक ढंग से सुलझाने के लिए अपना पूरा-पूरा सहयोग देना चाहिए। क्षेत्र के विकास और शांति के लिए इन समस्याओं का उचित समाधान ढूंढने की बेहद ज़रूरत है ताकि इस क्षेत्र के लोगों की आपसी साझ और भी मज़बूत हो सके।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

