बांग्लादेश—एक नई चुनौती

भारत की आज़ादी के इतिहास में देश का विभाजन एक ऐसी दुखद घटना है, जिसको कभी भुलाया नहीं जा सकता। उस समय ब्रिटिश शासकों ने एक निश्चित नीति के अन्तर्गत मुस्लिम लीग द्वारा जिसका नेता मोहम्मद अली जिन्ना था, देश का विभाजन करवाया, जिसको उस समय करोड़ों ही लोगों ने मानसिक तौर पर स्वीकार नहीं किया था। भारत के इतिहास में यह एक बेहद अनोखी घटना थी, जिसमें भारत से अलग हुआ पाकिस्तान भी दो टुकड़ों में बंटा हुआ था— एक पश्चिमी पाकिस्तान और दूसरा हज़ारों मील दूर पूर्वी पाकिस्तान। दो अलग-अलग हिस्सों में बंटे इस पाकिस्तान की भी अजीब दास्तान थी। एक देश के लोग एक-दूसरे से बेहद दूर अलग जीवन, अलग संस्कृति को अपनाए बैठे थे। अंतत: 1971 में पूर्वी पाकिस्तान में तीव्र विद्रोह हुआ। शेख मुजीबुर रहमान के नेतृत्व में अलग बांग्लादेश अस्तित्व में आया। भारत ने इसको आज़ादी दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उस समय आज़ादी के लिए चले आंदोलन में पाकिस्तान की सेना ने लाखों ही बेकसूर लोगों को बेरहमी से मार दिया था।
शेख मुजीबुर रहमान ने इस देश का शासक बनने के बाद अपनी ज़िंदगी में हमेशा भारत के साथ मेलमिलाप और सहयोग का हाथ बढ़ाए रखा। उनको और उनके पूरे परिवार को कुछ सैनिकों द्वारा मार दिए जाने के बाद गड़बड़ग्रस्त बांग्लादेश में प्रशासन बनते रहे, बगावतें होती रहीं और अलग-अलग पार्टियों की समय-समय सरकारें बनती रहीं। शेख हसीना और उनकी छोटी बहन मुजीबुर रहमान के परिवार में से बच गई थीं। उनके द्वारा बनाई गई अवामी लीग पार्टी ने देश में हमेशा बड़ी भूमिका अदा की। इसी कड़ी में शेख हसीना वाजिद पिछले लम्बे समय से देश की प्रधानमंत्री बनते आ रही थीं। पाकिस्तान द्वारा बनाई जाती लगातार साज़िशों के कारण वहां भारत विरोधी धार्मिक कट्टरवादी पार्टियां अस्तित्व में आईं, जिनका समय-समय पर देश की सत्ता पर भी कब्ज़ा रहा। यही बड़ा कारण था कि शेख हसीना वाजिद ने शासन संभालते ही सख्ती के साथ प्रशासन चलाया। उन्होंने एक विशेष अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट स्थापित करके उन लोगों को सख्त सज़ाएं भी दीं, जो बांग्लादेश की आज़ादी  के आंदोलन के दौरान लोगों के कत्ल-ए-आम में पाकिस्तानी सेना की पूरी मदद करते रहे थे और जिन पर हज़ारों ही लोगों को मार देने का आरोप था।
शेख हसीना के इस सख्त प्रशासन के खिलाफ कट्टरपंथियों द्वारा सरकार के विरुद्ध एक ऐसी लहर पैदा कर दी गई, जिसके प्रभाव के कारण देश भर में अशांति, नरसंहार तथा आगज़नी की घटनाएं लगातार घटित होने लगीं। गत वर्ष 15 जुलाई से 15 अगस्त तक एक माह तक इस देश में पूरी तरह हिंसक ब़गावत फैल गई, जिसे शेख हसीना ने सख्ती से दबाने का यत्न किया। इस कारण बड़ी संख्या में लोग मारे गए, परन्तु फैली यह हिंसक ब़गावत नियंत्रित नहीं हो सकी, जिस कारण शेख हसीना को 5 अगस्त, 2024 को देश छोड़ कर भारत में शरण लेने के लिए मजबूर होना पड़ा। उसके बाद कट्टरपंथी शक्तियों ने मुहम्मद यूनुस को मुख्य सलाहकार बना कर अस्थायी सरकार बनाने की घोषणा कर दी। इस प्रकार अप्रत्यक्ष ढंग से उन्होंने सभी शक्तियां अपने हाथ में ले लीं और बाद में वहां की सबसे बड़ी अवामी लीग पार्टी पर प्रतिबंध लगा दिया गया। उसके बाद फरवरी 2026 में आम चुनाव करवाने की घोषणा कर दी गई, जिसमें प्रतिबंधित अवामी लीग को भाग लेने का कोई अधिकार नहीं है। इस अस्थायी सरकार द्वारा विशेष अदालत बना कर हसीना तथा उनके दर्जनों साथियों पर मुकद्दमा चलाया गया। अब शेख हसीना को इस अदालत द्वारा फांसी की सज़ा सुनाई गई है, जिसके बारे में शेख हसीना ने यह कहा है कि इस अदालत की कोई मान्यता नहीं है और न ही इसे लोगों द्वारा निर्वाचित सरकार ने स्थापित किया है। यह फैसला पक्षपात तथा राजनीति से प्रेरित है और कट्टरपंथी लोगों द्वारा रची गई एक साज़िश है, जो उनके साथ-साथ अवामी लीग को खत्म करना चाहते हैं।
इस फैसले से कुछ समय पहले अवामी लीग के कार्यकर्ताओं तथा समर्थकों को व्यापक स्तर पर प्रदर्शन शुरू कर दिए थे। अब इस फैसले के बाद प्रदर्शन और भी तेज़ हो गए हैं। इससे एक बार फिर जहां इस देश का भविष्य अनिश्चित हो गया है, वहीं भारत के लिए भी इस मुहाज़ पर एक और बड़ी चुनौती आ खड़ी हुई है, क्योंकि बांग्लादेश में कट्टरपंथी ताकतें अब पूरी तरह हावी हो चुकी हैं, जिनका पाकिस्तान के साथ सीधा संबंध बना हुआ है। आगामी दिनों में इस चुनौती से निपटने के लिए भारत सरकार को बड़ी मज़बूती तथा पुख्ता योजनाबंदी की ज़रूरत होगी।  


—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

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