बेहद चिंताजनक है सड़क दुर्घटनाओं में मौतों का बढ़ना
देश में सड़क दुर्घटनाओं और इनमें होने वाले हताहतों की संख्या में निरन्तर होती वृद्धि ने समाज के एक बड़े वर्ग को चिन्तित किया है। इंडिया स्पेंट शीर्षक वाली एक संस्था के अनुसार देश के विभिन्न शहरों और खासकर महानगरों में एक ओर वाहनों की संख्या बड़ी तेज़ी से बढ़ी है, वहीं इस कारण सड़कों पर होने वाली दुर्घटनाओं और इनमें हताहत होने वाले लोगों की संख्या भी उसी अनुपात से बढ़ी है। इस संदर्भ में यह भी एक उल्लेखनीय बात है कि महानगरों से जुड़ी ग्रामीण एवं सम्पर्क सड़कों पर भी दुर्घटनाएं तेज़ी से बढ़ी हैं। सरकारें बेशक समय-समय पर सड़क दुर्घटनाओं पर अंकुश लगाने हेतु भरसक प्रयास करती रहती हैं, किन्तु लाख यत्नों के बावजूद इस समस्या से उपजने वाली पीड़ाओं की गठरी ढीली नहीं हुई है।
नि:संदेह यह एक ऐसा सामाजिक पक्ष है जिसकी किसी भी तरह से उपेक्षा नहीं की जा सकती, किन्तु रिपोर्ट के अनुसार इस समस्या का यह एक नया पक्ष उजागर हुआ है जो न केवल देश और समाज के एक बड़े वर्ग की चिन्ता को बढ़ाता है, अपितु इस संबंध में तात्कालिक निदान की आवश्यकता पर भी बल देता है। वो पक्ष यह है कि देश में होने वाली सड़क दुर्घटनाओं में दो-पहिया वाहन चालकों और फुटपाथों पर पैदल चलने वालों के हताहत होने की संख्या विगत कुछ वर्षों से निरन्तर बढ़ रही है। रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2023 के सड़क दुर्घटना के कुल हताहतों में से 45 प्रतिशत दो-पहिया वाहन सवार थे। 2014 में यह प्रतिशत 30 था। इन आंकड़ों में दर्ज यह एक आंकड़ा भी बेहद पीड़ादायक है कि पूरे देश में प्रत्येक एक घंटे में 9 बाइक-सवारों की सड़क दुर्घटनाओं में मृत्यु हो जाती है। सन 2014 में यह आंकड़ा 5 बाइक सवारों का था। इस तथ्य से जुड़ा यह पक्ष भी विचारणीय हो जाता है कि ऐसी दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों में से 69 प्रतिशत ग्रामीण अथवा अर्ध-शहरी सड़क मार्गों पर होती हैं। शहरी इलाकों में हुई दुर्घटनाओं में वर्ष 2013 में 74 प्रतिशत मौतें दो-पहिया वाहन सवारों की हुईं। एक अन्य विवरण के अनुसार शहरी क्षेत्रों में फुटपाथों पर हुए अवैध कब्ज़ों ने भी सड़क-दुर्घटनाओं को बढ़ाया है। फुटपाथों पर पैदल चलने वाले लोगों खासकर बच्चों, महिलाओं और वृद्धजनों के साथ होने वाली दुर्घटनाओं और इनमें हताहत होने वालों की संख्या विगत एक दशक में 24 प्रतिशत बढ़ी है।
इसका एक बड़ा कारण देश भर में दो-पहिया वाहनों की बढ़ती संख्या भी है। एक सरकारी आंकड़े के अनुसार वर्ष 2022 में देश में पंजीकृत वाहनों की संख्या 74 प्रतिशत के हिसाब से बढ़ी थी। वर्ष 2014 में देश में दो-पहिया वाहनों की संख्या 13.9 करोड़ थी जो 2022 में 26.3 करोड़ हो गई थी। चालू वित्त वर्ष में यह संख्या 50 प्रतिशत के हिसाब से बढ़ने की सम्भावना है। ग्रामीण क्षेत्रों में सड़क दुर्घटनाओं में वृद्धि का कारण सम्पर्क एवं ग्रामीण सड़कों का छोटा होना, कानून-व्यवस्था अर्थात हैल्मेट जैसे नियम-कानूनों का पालन न किया जाना और गांवों में समृद्धि का उपजना भी हो सकता है। गांवों में लापरवाही से वाहन चलाना आम बात है। विशेषज्ञों के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में बिना हैल्मेट 50 से अधिक गति से वाहन चलाना भी ़खतरनाक हो सकता है।
हम समझते हैं कि नि:संदेह यह स्थिति बेहद चिन्ताजनक है, और निदान की तलाश में चिन्ता का कारण भी बनती है। यह भी एक गम्भीर तथ्य है कि विश्व भर के देशों में सड़क दुर्घटनाओं को लेकर भारत शीर्ष पर मौजूद है हालांकि यहां वाहनों की तादाद आज कई बड़े देशों से कम है। होना तो यह चाहिए था कि देश में सड़क-मार्गों का जाल बिछने से दुर्घटनाओं में कमी आती, किन्तु ‘मर्ज बढ़ता गया ज्यूं-ज्यूं दवा की’ के अनुसार सड़क दुर्घटनाओं और इनमें हताहत होने वालों की संख्या दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। विशेषज्ञों के अनुसार इसके लिए एक और बड़ा कारण बड़े सड़क-मार्गों और बहु-मार्गी सड़कों के निर्माण में रह गई त्रुटियां और विसंगतियां भी हैं। अक्सर ऐसे मार्गों पर वाहन-चालक गलत अथवा विपरीत पथ लेते हैं जिस कारण दुर्घटनाओं की आशंका स्वत: बढ़ जाती है। शराब पीकर वाहन चलाना भी दुर्घटनाओं का वायस बनता है। जयपुर में एक डंपर चालक द्वारा 13 लोगों को रौंद देना ऐसी ही घटना का परिचायक है। तेलंगाना में एक सड़क दुर्घटना में 19 लोगों की मौत भी संवेदना को जगाती है।
हम समझते हैं कि ऐसी सड़क दुर्घटनाओं को रोकने के लिए निश्चय ही एक बड़ी और व्यापक योजनाबंदी की ज़रूरत है। सड़कों पर ़खतरे वाले बिन्दुओं की तलाश करके उन्हें दुरुस्त किया जाना बहुत ज़रूरी है। शराब पीकर वाहन चलाने वालों पर भी तत्काल और कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए। ऐसे कुछ प्रतिबद्ध और निष्ठापूर्वक किये गये उपचारों से ही सड़क-दुर्घटनाओं में होने वाले हताहतों की तादाद पर अंकुश लगाया जा सकता है।

