महान गदरी शहीद करतार सिंह सराभा 

शहीदी दिवस पर विशेष

भारत को आज़ाद करवाने के लिए शहीद करतार सिंह सराभा एक ऐसे महानायक के रूप में उभरे, जो अत्यन्त दूरदर्शी, एक योग्य नेता के सभी गुणों से सम्पन्न थे। उन्हें गदर पार्टी के अध्यक्ष सोहन सिंह भकना ने ‘बाला-सेनापति’ करार दिया था। उनका जन्म 24 मई, 1896 को लुधियाना जिले के सराभा गांव में माता साहिब कौर और पिता मंगल सिंह के घर हुआ था। जब वह 5 वर्ष के थे तो तब उनके पिता का देहांत हो गया और जब वे 12 वर्ष के हुए, तो उनकी माता उन्हें हमेशा के लिए छोड़कर चली गईं। उनके पालन-पोषण और शिक्षा का दायित्व उनके दादा स. बदन सिंह पर आ गया। उच्च शिक्षा के लिए उन्हें लुधियाना के मिशन स्कूल में और बाद में 1910 में अपने चाचा बख्शीश सिंह के मार्गदर्शन में रेवेनशॉ कॉलेजिएट स्कूल कटक (ओडिशा) में नौवीं कक्षा में दाखिला दिलाया गया। यहीं से उन्होंने 1912 में मैट्रिक पास की। स्कूल के प्रिंसीपल बेनी माधव दास के देशभक्ति वाले विचारों का उन पर गहरा प्रभाव पड़ा। इसके बाद उन्होंने कॉलेज विंग में पढ़ाई शुरू कर दी। जुलाई 1912 में वह बर्कले विश्वविद्यालय में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए दाखिला लेने अमरीका गए, लेकिन वहां उन्होंने रसायन विज्ञान की डिग्री में दाखिला लिया। 
अमरीकियों की स्वतंत्रता और भारतीयों के साथ उनके अत्यंत बुरे व्यवहार ने करतार सिंह के हृदय में देशभक्ति और स्वतंत्रता के बीज बो दिए। लाला हरदयाल, भाई परमानंद लाहौर, जितेंद्र लाहिरी बंगाली जैसे क्रांतिकारी नेता पहले से ही राजनीतिक चेतना की चिंगारी को प्रज्वलित करने के लिए वहां मौजूद थे, जिनके सम्पर्क में करतार सिंह सराभा तथा अन्य विद्यार्थी भी आ गए। 13 मार्च, 1912 को एस्टोरिया में अमरीकी स्तर की एक बैठक हुई, जिसमें हिंदुस्तान एसोसिएशन ऑफ  पेसिफिक कोस्ट (गदर पाटी) की बाकायदा स्थापना की गई, जिसमें सोहन सिंह भकना को अध्यक्ष और लाला हरदयाल को सचिव बनाया गया तथा अन्य पदाधिकारी चुने गए। इस बैठक में करतार सिंह भी उपस्थित थे। संगठन की स्थापना की औपचारिक घोषणा 21 अप्रैल, 1913 को सान फ्रांसिस्को में की गई। संगठन ने गदर (सशस्त्र विद्रोह) के माध्यम से भारत में ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकने और एक नए राष्ट्रीय लोकतांत्रिक राज्य की स्थापना का मुख्य लक्ष्य निर्धारित किया, जिसके लिए ‘गदर’ समाचार पत्र प्रकाशित करने और निचले स्तर तक एक संगठनात्मक संरचना बनाने का निर्णय लिया गया। अंतत: 1 नवम्बर, 1913 से युगांतर आश्रम से गदर समाचार पत्र का प्रकाशन शुरू होने लगा। लाला हरदयाल को संपादक, करतार सिंह सराभा और रघबर दयाल गुप्ता को उप-संपादक नियुक्त किया गया। साप्ताहिक गदर के अलावा देशवासियों में जेश भरने के लिए समय-समय पर एक गदर काव्य पुस्तिका ‘गदर दी गूंज’ भी प्रकाशित की जाती थी। करतार सिंह सराभा ने गदर अखबार में लगातार अनेक लेख और कविताएं लिखीं, उन्हें गुमनाम रूप से प्रकाशित किया। 
इसके अलावा गदर पार्टी के निर्णय के अनुसार करतार सिंह सराभा ने विमान उड़ाने और उनकी मरम्मत करने का सफलतापूर्वक प्रशिक्षण प्राप्त किया ताकि वह भारत जाकर गदर के लिए एक वायु सेना का निर्माण कर सकें। पार्टी के गुप्त आयोग के निर्देश पर करतार सिंह ने 21 जुलाई,1914 को सान फ्रांसिस्को से योकोहामा के लिए एक विमान में गुप्त रूप से 100 पिस्तौल और बहुत सारा गोला-बारूद इस तरह छिपाया कि खुफिया तंत्र को कोई शक नहीं हुआ और भकना को सफलतापूर्वक विमान में सवार कर दिया। गदर ने अपने 28 जुलाई के अंक के माध्यम से देशवासियों को सचेत किया कि प्रथम विश्व युद्ध शुरू हो गया है, आप भी अपनी स्वतंत्रता की लड़ाई के लिए तैयार हो जाओ और 4 अगस्त के अंक में ‘ऐलान-ए-जंग’ करने का फरमान जारी किया। 11 अगस्त के अंक के क्रांतिकारी आह्वान के अनुसार 6 हज़ार से अधिक गदरी योद्धा अलग-अलग विमानोें से भारत पहुंचे। सितम्बर 1914 में करतार सिंह सराभा कोलंबो होते हुए अमरीका से भारत पहुंचे और छिपकर पंजाब में एक शक्तिशाली गदर पार्टी का संगठन बनाने और सशस्त्र गदर की तैयारी के लिए दिन-रात काम करने लगे। 
करतार सिंह सराभा ने प्रतिदिन 50 मील साइकिल चला कर गांवों और स्कूलों में गदर का प्रचार और लामबंदी की और फिरोजपुर तथा मीयांमार (लाहौर) सहित कई सैन्य छावनियों में निडर और साहसी तरीके से सैनिकों को विद्रोह के लिए तैयार किया। गदर को तब बड़ा झटका लगा जब दल के गद्दार कृपाल सिंह ने ब्रिटिश सरकार को गदर की तिथि और योजना की सूचना दे दी और पूरे पंजाब में गदरियों की तलाश तेड़ हो गई। स. सराभा अपने दो साथियों हरनाम सिंह टुंडीलाट और जगत सिंह सुरसिंह के साथ फ्रंटियर मेल में सवार होकर अफगानिस्तान के कबायली इलाकों में जाने लगे, परन्तु पेशावर से लौट आए और फिर गदर की तैयारी शुरू कर दी। लाहौर के पास सरगोधा की बार के चक नंबर 5 से राजिंदर सिंह पेंशनिया के घर से, उसकी तथा रसालदार गंडा सिंह गंडीविंड की गद्दारी तथा मुखबरी के कारण हरनाम सिंह टुंडीलाट और जगत सिंह सुरसिंहवाला 2 मार्च, 1915 को एक साथ पकड़े गए और सेंट्रल जेल लाहौर में बंद कर दिए गए।
लाहौर षड्यंत्र केस (प्रथम) के तहत मुकद्दमे के दौरान 13 सितम्बर, 1915 को स. सराभा और 24 साथियों को फांसी और संपत्ति जब्त करने की सज़ा सुनाई गई थी। बाद में वायसराय ने 17 की सज़ा को आजीवन कारावास में बदल कर काले पानी भेज दिया। 16 नवम्बर, 1915 को 19 वर्षीय करतार सिंह सराभा तथा उनके कुछ साथी सेंट्रल जेल लाहौर में हंसते-हंसते फांसी पर चढ़ गए और हमेशा के लिए अमर हो गए।

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