हिन्दुओं का दुर्लभ तीर्थ स्थल है गंगासागर

बाकी तीर्थ बार-बार, गंगासागर एक बार। गंगासागर हिन्दुओं का दुर्लभ तीर्थ है जहां पहुंचना आम आदमी के लिए आज भी सहज नहीं है किन्तु हिन्दुओं के लिए गंगासागर की तीर्थ यात्र जीवन में एक बार अत्यन्त आवश्यक है। देवर्षि नारद ने महाभारत में युधिष्ठिर को गंगासागर का माहात्म्य बतलाते हुए कहा था कि ‘गंगासागर में एक बार स्नान दश अश्वमेध यज्ञों की फल प्राप्ति के समान है।’
इसी क्रम में आगे यह बतलाया गया है कि गंगा सभी जगह पतित पावनी है किन्तु हरिद्वार, प्रयागराज और गंगासागर संगम में तो अधिक पुण्यवती है। गंगा का तो केवल पानी ही मोक्षप्रद होता है चाहे वह सामान्य जगह ही बहती हो किन्तु वाराणसी में तो मोक्ष, जल एवं स्थल दोनों में प्राप्त होता है और गंगासागर में तो जल, स्थल एवम् अन्तरिक्ष आदि तीनों में मोक्ष प्राप्ति का साधन है।
स्कन्द पुराण में तो ऐसा कहा गया है कि जो फल तीर्थ सेवा, सभी प्रकार के दान, सभी देवताओं की पूजा, सर्वविद् तपस्या और यज्ञ के पुण्य से प्राप्त होता है, वह गंगासागर में एक बार स्नान करने से प्राप्त हो जाता है।
गंगासागर दक्षिण-पश्चिम गंगा और ब्रह्मपुत्र के डेल्टा पर अवस्थित एक मौजा है जो सागर-दीप के सुदूर दक्षिणी द्वार पर स्थित है। यह क्षेत्र सुन्दरवन का एक हिस्सा है। प्रतिवर्ष सूर्य जब मकर राशि में प्रवेश करता है उस समय यहां मकर स्नान का मेला आयोजित होता है। यह पौष मास में 14-15 जनवरी के आस-पास ही होता है।
चूंकि यह सुन्दरवन का हिस्सा है, इस कारण से दुर्गम पथ वाला, घाट विहीन, निर्जन स्थान है। सूर्यास्त के पश्चात जहां सदैव जंगली जानवरों का भय बना रहता है। भक्तजनों के लिए केवल जल मार्ग के अलावा और कोई रास्ता नहीं है जहां से वे गंगासागर पहुंच सकें। मकर संक्रांति के अवसर पर भरने वाले मेले में पांच लाख से भी अधिक यात्री सहभागी बनते हैं। उस समय भारत सहित नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, श्रीलंका तथा विश्व के कोने-कोने से लोग उपस्थित होते हैं।
आजकल पूरे वर्ष ही गंगासागर तीर्थ यात्र जाने वालों का क्रम चलता रहता है। यह स्थान इसलिए भी पवित्र है कि गंगा, गंगोत्री से निकलने के पश्चात भारत के अन्य शहरों में भ्रमण करती हुई अन्त में सागर में विलीन होती है, अत: यह सागर-संगम है। हालांकि सागर-संगम स्थल पर गंगा का मुहाना पीछे हट गया है। अब वह केवल यहां आकर पतली धारा के रूप में ही संगमित होती है।
गंगासागर का इतिहास बहुत पुराना है। ठीक से यह नहीं बताया जा सकता कि यह संगम मेला कब से शुरु हुआ। महाकवि कालिदास के रघुवंश में इसका उल्लेख मिलता है। दूसरी शताब्दी के यूनानी इतिहासकार क्लाडियस टोल ने भी अपनी पुस्तक जिओग्राफिका हाएफा गासिस में भी गंगासागर का उल्लेख किया है। 
मुसलमान इतिहासकार अल बरुनी ने अपनी प्रसिद्ध रचना ‘किताब-उल- हिन्द’ में गंगासागर का उल्लेख किया है कि यह वह क्षेत्र है जो चक्रवातों, समुद्री लुटेरों, जंगली जानवरों, बाढ़ आदि से सदैव आतंकित रहा है। गंगासागर कोलकाता से 90 मील दक्षिण की ओर स्थित है। कोलकाता से यात्री प्राय: बस पश्चात जहाज पश्चात लघु गाड़ियों द्वारा गंगासागर पहुंचते हैं। आलेख लेखक पवन कुमार कल्ला ने कोलकाता से बस द्वारा यात्र करके समुद्री किनारे तक पहुंच की। यह समुद्री तट हार्बल प्वाइंट के नाम से जाना जाता है। यह यात्र 110 किमी. की रही।
हार्बल प्वाइंट से पानी मार्ग द्वारा 18 किमी. का सफर करके कचुबेड़ियां नामक स्थान पर पहुंचे। चूंकि समुद्री तट होने के कारण से वर्षा होना यहां आम बात है इसलिए भीगते हुए ही यात्री काफिलों ने यह यात्र की। कचुबेड़ियां एक प्रकार से स्टे प्वाइंट है। कचुबेड़ियां से फिर गंगासागर तक पहुंचने हेतु दस सीटों वाली गाड़ी में सवारियों को भरकर गंगासागर ले जाया जाता है। कचुबेड़ियां से गंगासागर तक का स्थान 40 किमी. तक सफर वाला है।
इस रास्ते में वर्षा की फुहारें, पेड़ों की संघन श्रृंखला की आबादी, बीच-बीच में झोपड़पट्टीनुमा कच्ची इमारतें, रास्ते में जमीन काट-काट कर वर्षा जल संग्रह स्थल, यानी लघु सरोवर हैं। इसी प्रकार से भूमि में खुदाई करके आयताकार लघु आकृतियों में मछली पालन के दृश्य लोक-लुभावन से लगते हैं।
वर्षा की फुहारों, विभिन्न प्रकार के पेड़-पौधों की हरीतियां, खुशबूदार फूलों और जंगल में झोपड़पट्टियां, पानी संग्रह व मछली पालन करते लोगों को आदिवासी लिबास में देखकर स्वर्गिक सुख का अनुभव किया।
गंगासागर पहुंचने पर वहां साइकिल रिक्शा खड़े रहते हैं जो सामान ढोने जैसे बने हुए हैं। गंगासागर से सागर तट लगभग 2-3 किमी. दूर है। इस कारण से थके हुए लोग उन तीन पहियों वाले सामान ढोने जैसे साइकिल रिक्शा में 6-7 की तादाद में बैठकर सागर संगम तक पहुंचते हैं। इस प्रकार से गंगासागर तट तक पहुंचने में चार चरणों की यात्र की जाती है। इसीलिए कहा गया है कि ‘सारे तीर्थ बार-बार, गंगासागर एक बार।’
सागर संगम स्थल पहुंचने पर अनन्त नील जलराशि की चाराें तरफ छितराई आभा, कल-कल ध्वनि करती जल तरंगें, समुद्रतटीय गुलमाच्छादित बालुकाराशि, रंग-बिरंगे रेंगने वाले केकड़े, यह सब कुछ बरबस लोकलोचनों को अपनी ओर आकृष्ट करने से नहीं चूकते। 150 वर्गमील में फैला यह क्षेत्र प्राय: जनहीन-सा लगता है। साधुओं की टोलियां जरूर वहां रहती है जिनकी संख्या अल्पमात्र में ही है।
यहां मकर सक्रांति के अवसर पर पांच दिवसीय मेला लगता है। उस समय पश्चिमी बंगाल सरकार की तरफ से मेले को अंजाम दिया जाता है। संक्रांति पर्व पर यात्री रेत पर पड़े रहते हैं। समुद्र स्नान तीन दिन तक किया जाता है। इसके अलावा मुण्डन कर्म, श्राद्ध, पिण्डदान कर्म आदि किए जाते हैं। इसके बाद लोगों के लौटने का क्र म आरम्भ हो जाता है। गंगासागर में कपिलमुनि जी का मंदिर है जो वहां का मुख्य आकर्षण है। इस मंदिर की स्थापना श्री पंचनामी अखाड़ा हनुमानगढ़ी अयोध्या के महन्त द्वारा सन् 1973 में की गई जो संगम स्थल से दूर अवस्थित है। पास ही गंगाजी का मंदिर है। साथ में राजा सगर का भी मंदिर अवस्थित है। सिन्दूरी रंग की इन मूर्तियों में विशेष आकर्षण है।
गंगासागर जाते समय यात्रीगण यह विशेष ध्यान रखें कि सागर संगम स्थल में ठहरने की पर्याप्त व्यवस्थाएं नहीं है क्योंकि यात्रियों की संख्या भारी पैमाने पर होती है इसके अलावा सागर संगम स्थल पर पीने के पानी का अभाव है, इसलिए यात्रियों को जितने समय तक ठहरना हो, पानी का बंदोबस्त कर अपने साथ ले जाए।
गर्मियों के दिनों में सागर संगम स्थल से पांच बजे के आस-पास रवाना हो जाएं। सर्दियों में तो इससे भी कम समय में। कारण यह कि कचुबेड़ियां में ही ठहरने की माकूल व्यवस्था है जो 40 किमी. दूर पड़ता है और इस क्षेत्र में वर्षा की फुहारें व समुद्र की गर्जना आपको भयभीत कर सकती हैं।
कचुबेड़ियां से वापस उस तट तक पहुंचने के लिए समुद्र के ज्वार के उतरने का इंतजार किया जाता है। इस इंतजार में ही घण्टों लग जाते हैं। फिर जहाजों को भेड़-बकरियों की तरह भरा जाता है जो यात्र को दु:खी बना देता है। हालांकि पर्यटन पुस्तकों में आने जाने के कुछ और रास्ते भी बताये गए है लेकिन लेखक ने वर्णित राह से ही यात्र की है। (उर्वशी)

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