रावलपिंडी को चंडीगढ़ से जोड़ने वाला चन्न
पिछली सदी के सुप्रसिद्ध शिक्षक, अनुवादक, संपादक, मनोरंजनकर्ता और वामपंथी तेरा सिंह चन्न को याद करना साधु सिंह हमदर्द, गुरबख्श सिंह प्रीतलड़ी, हीरा सिंह दर्द, मोहन सिंह माहर, अर्जन सिंह गड़गज और अवतार सिंह मल्होत्रा के समय का अनुसरण करना है। गत रविवार को पंजाबी लेखक सभा चंडीगढ़ ने पंजाब कला परिषद के प्रांगण में तेरा सिंह चन्न यादगारी मेले का आयोजन करके उन साहित्यिक और सांस्कृतिक अवधारणाओं को याद किया, जो चन्न और उनके समय का मार्गदर्शन करती थीं, जिन पर विद्युत उपकरण पोंचा फेर रहे और इममें स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले और उसके तुरंत बाद की यादें समाहित थीं। कला परिषद के रंधावा आडिटोरियम में प्रवेश करने से पहले पंजाबी साहित्य, संस्कृति, चित्रकला और कैलिग्राफी प्रदर्शनियों का रंग भी अजीब था, जिसका नेतृत्व चरखा कर रहा था। तेरा सिंह चन्न की उपलब्धियों और दिशा-निर्देशों को याद करने वालों में मुख्य अतिथि गुरप्रीत घुग्गी और विशिष्ट अतिथि सुरजीत सिंह धीर ही नहीं, बल्कि सुखदेव सिंह सिरसा, सरबजीत सिंह, गुरनाम कंवर और बलविंदर सिंह उत्तम ने तेरा सिंह चन्न की साहित्यिक, सांस्कृतिक और संगठनात्मक योजना को उत्कृष्ट, प्रभाती और लोकप्रिय बता कर नवाज़ा।
निश्चय ही इस मेले को सफल और प्रभावी बनाने में पंजाबी लेखक सभा के अध्यक्ष दीपक सरमा चनारथल और महासचिव भूपेंदर सिंह मलिक की दूरदर्शिता, लगन प्रशंसनीय रही। इस मेले ने न केवल चंडीगढ़ के साहित्य रसिया और कला प्रेमियों को ही जागृत किया, बल्कि दूर-पास के प्रत्येक उस व्यक्ति को भी आकर्षित किया जो किसी न किसी रूप में कोमल कलाओं का प्रेमी है। खूबी यह कि रंधावा ऑडिटोरियम के हॉल और गैलरी के अलावा दरवाज़े के बाहर खड़े दर्शक और श्रोते भी समारोह का आनंद ले रहे थे।
इस अवसर पर पंजाबी लेखक सभा के पूर्व अध्यक्ष और महासचिव भी उपस्थित थे, जिनकी उपस्थिति की दर्शकों और श्रोताओं ने तालियों की गूंज से सराहना की। इनमें दीपक मनमोहन सिंह, लाभ सिंह खीवा, शिंदरपाल सिंह, स्वराज संधू और शाम सिंह अंग संग की उपस्थिति विशेष थी।
इस अवसर पर पंजाबी लेखक सभा द्वारा एक पुस्तिका का विमोचन किया गया, जिसमें सभा के इतिहास और इस वर्ष की गतिविधियों का विस्तार से उल्लेख है। पंजाबी साहित्य अकादमी लुधियाना द्वारा प्रकाशित तेरा सिंह चन्न सिरजना और समागम के अध्यक्षता मंडल के अतिरिक्त जसविंदर सिंह, डॉ. कुलदीप सिंह दीप द्वारा इसका विमोचन किया गया। प्रख्यात लोक कलाकार बलकार सिद्धू को उनकी सेवाओं के लिए तेरा सिंह चन्न यादगारी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
बड़ी बात यह है कि इस मेले में पंजाबी लेखक सभा द्वारा प्रस्तुत चार प्रस्तावों को भी गर्मजोशी से स्वीकार किया गया, जिनमें पंजाबी को चंडीगढ़ की प्रशासनिक भाषा बनाने, पंजाब में पंजाबी भाषा अधिनियम को पूर्ण रूप से लागू करने, संयुक्त संघर्ष के माध्यम से पंजाब विश्वविद्यालय को बचाने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमलों की निंदा करने के प्रस्ताव शामिल थे। ये प्रस्ताव क्रमश: सुखविंदर सिंह सिद्धू, मनजीत कौर मीत, अवतार सिंह पतंग और गुरनाम कंवर द्वारा प्रस्तुत किए गए। इस अवसर पर सुरेश कुमार, डॉ. दीपा और अवि सिद्धू द्वारा लिखित पुस्तकों का भी विमोचन किया गया। प्रसिद्ध लोक गायिका डॉली सिंह ने लोक गीतों की खूबसूरत महफिल सजाई, जिसमें संगीतकार के रूप में गुरविंदर लवली, राजिंदर सिंह और कर्म चंद ने उनका साथ दिया।
मुझसे पूछते हो तो मैं खुद को तेरा सिंह चन्न के परिवार का सदस्य समझता हूं और उनकी बेटियों, बेटों और उनके साथियों के ज़रिए चन्न को जानता हूं। जब मैं दिल्ली में था तो वे सभी राणा प्रताप बाग कॉलोनी में रहते थे। उनके घर आने-जाने वालों में मैं ही नहीं, चारपाई तोड़ने वाले कामरेड तथा छोड़े-बड़े रंगकर्मी भी थे। मैंने चन्न को दिल्ली और नई दिल्ली की सड़कों पर साइकिल और फिर मोपेड पर सवार होकर अनपे सिद्धांत को उसकी मंज़िल की ओर ले जाते देखता रहा हूं।
तेरा सिंह की पारिवारिक पृष्ठभूमि चड्ढा खत्रियों वाली थी, लेकिन वे इतने उदार थे कि उनकी बेटी सुलेखा ने सिरजना के संपादक रघबीर सिंह का हाथ थामा और उनके बेटे मनदीप उर्फ सम्मी ने विर्क जट्टां की बेटी अमरजीत का, उनके बेटे दिलदार की शादी चन्न के मुस्लिम साथी की बेटी सुल्ताना से हुई। सभी खुश हैं।
तेरा सिंह चन्न की नाट्य विधाओं का प्रमाण देना हो तो यह बताना बनता है कि एक बार उसने लकड़ी के गड्डे से मंच का काम लेकर मंच के पीछे सफेद कपड़े और सतलुज नदी की लहरों का चित्रण करके देश के विभाजन के दुखों की विधियों से पेश किया। इस झांकी से प्रभावित होकर न केवल गीतों की रानी सुरिंदर कौर, बल्कि रामलीला में भूमिका निभाने वाले जगदीश फरियादी और हुकम चंद खलीली भी चन्न के पेशे में आ गए। चन्न की इन जुगतों ने उर्दू भाषा के व्यंग्यकार फ्रिक तैंसवी से ही नहीं, बल्कि प्रख्यात पंजाबी उस्ताद गुरबख्श सिंह प्रीत लड़ी से भी प्रशंसा प्राप्त की। चन्न की पहली पुस्तक ‘सिसकियां’ थी, जिसे 1943 में देश दीपक मंडल रावलपिंडी ने अपनी हिंदुस्तान साहित्य श्रृंखला की पहली पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया था। उस समय इस युवा कवि को क्या पता था कि दिल्ली और दक्षिण का दौरा करने के बाद उन्हें चंडीगढ़ में अपनी अंतिम सांस लेनी पड़ेगी। 1947 में हुआ देश का विभाजन साहित्यकार चन्न को कभी नहीं भूला।
मुझे आशा है कि भविष्य में चंडीगढ़ साहित्य सभा ही नहीं, दूसरी संस्थाएं भी ऐसे मेले आयोजित करके साहित्य, संस्कृति तथा कला के सितारों को याद करती रहेंगी।

