आतंकवादी गतिविधियों का माध्यम बनता सोशल मीडिया
सहज संवाद और एक दूसरे को जोड़ने का प्रमुख माध्यम सोशल मीडिया आज आतंकवादी गतिविधियों का भी सुरक्षित एवं गोपनीय माध्यम बनता जा रहा है। हालिया दिल्ली धमाके में लिप्त व्हाइट कॉलर आतंकवादियों के परस्पर संवाद का माध्यम सोशल मीडिया प्लेटफार्म पाया गया है। सोशल मीडिया के दुरुपयोग की यह अति अवस्था है। न्यूयार्क टाइम्स ने एक अध्ययन में 3.2 मिलियन संवादों का विश्लेषण किया है। वहीं जानकारों के अनुसार सोषल मीडिया प्लेटफार्म पर ही 1500 से अधिक नस्लवादी चैनल सक्रिय है। सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर इतनी अधिक संख्या में असामाजिक गतिविधियों में लिप्त चैनलों का सक्रिय होना गंभीर चिंता का विषय बन जाता है। मानवता के लिए सबसे सम्माननीय डाक्टरी का पेशा दिल्ली धमाके और इसके बाद दिन प्रतिदिन खुलती परतों से बेनकाब होता जा रहा है। डाक्टर, जिसका दायित्व जीवन बचाना है, वहीं लोगों की मौत का सौदागर बनता है। यह मानवता के लिए खतरनाक स्थिति है। चिन्ता की बात यह है कि शिक्षा का केन्द्र विश्वविद्यालय इसका केन्द्र बना हुआ पाया गया। हालांकि फरीदाबाद के अल फलाह विश्वविद्यालय ने स्वंय को आतंकवादी गतिविधियों से दूर होने का दावा किया है, परन्तु यह महज लिपापोती से अधिक कुछ ज्यादा नहीं लगता। जब कुछ डॉक्टर बेनकाब हो रहे हैं और इन पर कार्रवाई की बात हो रही है तो कुछ राजनीतिक दल और संगठन इनके पक्ष में दूसरी तरह की भाषा बोलने लगे हैं। समझ से परे यह बात है कि ऐसे संगठनों का क्या दायित्व उन बेगुनाह लोगों और परिवारों के प्रति नहीं होता, जो इन आतंकी गतिविधियों में मौत के आगोश में चले जाते हैं और घायल हो जाते हैं। इन प्रभावित लोगों व इनके परिवारों के प्रति भी किसी की जबावदेही होनी चाहिए। अच्छा तो यह हो कि दूसरी तरह की भाषा बोलने वाले प्रभावित लोगों के पक्ष में भी आगे आएं। आतंकवादी गतिविधियों से जुड़े लोगों के साझा संवाद का माध्यम टेलीग्राम प्लेटफार्म पाया गया है।
सोशल मीडिया की जहां तक बात है तो इसमें कोई दो राय नहीं कि आज सोशल मीडिया प्लेटफार्म लोगों की पसंद, सूचनाओं को साझा करने और एक-दूसरे तक अपनी भावनाएं पहुंचाने का माध्यम बन गए हैं। सवाल इनके दुरुपयोग और इन पर आवश्यक अंकुश की आवश्यकता को लेकर है। लाख दावें करें पर सोशल मीडिया प्लेटफार्म असामाजिक गतिविधियों व भ्रामक समाचारों पर तत्काल कार्रवाई करने में विफल ही देखें गए हैं। सोशल मीडिया के संदेशों की प्रतिक्रिया स्वरूप लोगों की जुटाना और भीड़ का आक्रोषित हो जाना आज आम हो गया है। यही कारण है कि कानून व्यवस्था के ज़िम्मेदार लोग सबसे पहले प्रभावित क्षेत्र में इंटरनेट सेवाओं को स्थगित करना ही श्रेयस्कर समझते हैं। यह भी सही है कि देश में अधिकांश लोगों से जुड़े सोशल मीडिया प्लेटफार्मों का संचालन विदेशी धरती पर हो रहा है। इसे दुर्भाग्य ही माना जाएगा कि लाख प्रयासों के बावजूद देश में बने सोशल मीडिया प्लेटफार्म अपनी पहचान बनाने व अधिकांश देशवासियाें के चहेते बनने में सफल नहीं हो पाए। आज प्रमुख सोशल मीडिया प्लेटफार्मों की संचालन की डोर विदेशियों के हाथ ही है। हालांकि हमारे देष में यू-ट्यूब, वाट्सएप, इंस्टाग्राम, फेसबुक लिंकड्विन आदि सोशल प्लेटफार्म अधिक चलन में है तो वाट्सएप और इंस्टा की पहुंच आम लोगों तक है। दुनियाभर में 5 अरब 41 लाख से अधिक लोग सोशल मीडिया प्लेटफार्म का उपयोग कर रहे हैं।
जहां तक टेलीग्राम प्लेटफार्म का सवाल है यह सर्वविदित है कि आतंकवादी गतिविधियों का यह केन्द्र रहा है। रूस-यूक्रून युद्ध में ज़ेलेन्स्की द्वारा इस प्लेटफार्म का उपयोग किया गया है तो हांगकांग-बेलारुस द्वारा भी इसका उपयोग इसी तरह से किया जाता रहा है। दरअसल इस प्लेटफार्म को आज़ादी की आवाज़ कहा जाता है। रूस के दो भाईयों पॉवेल ड्यूरोव और निकोलोई ड्यूरोव द्वारा तैयार ओर संचालित इस प्लेटफार्म का दावा है कि वह डाटा शेयर नहीं करता। इस पर प्रसारित संदेशों को कोई तीसरा देख या पढ़ नहीं सकता। यही कारण है कि सुरक्षित व गोपनीयता के दावें के चलते इस तरह की गतिविधियों को संचालित करने वाले ग्रुप इस प्लेटफार्म पर सक्रिय है। सदस्य बनाने, हिंसा फैलाने, पैसा जुटाने, नशीली दवाएं, हथियार जुटाने, नफरत के संदेश फैलाने आदि असामाजिक गतिविधियों में सोशल मीडिया प्लेटफार्म का उपयोग किया जाता है। जहां तक टेलीग्राम सोशल मीडिया प्लेटफार्म की बात है तो केवल 60 कार्मिकों द्वारा संचालित इस प्लेटफार्म पर इस तरह की गतिविधियों की मोनेटरिंग करने, हटाने, कार्रवाई करने की आशा करना बेमानी होगा।
ऐसे में एक बार फिर यक्ष प्रश्न यही उभरता है कि जब सोशल मीडिया प्लेटफार्म आज लोगों की ज़रूरत बन चुका है तो फिर इन प्लेटफार्मों के संचालकों के लिए एक आदर्श मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) जारी करने के साथ ही इन पर असामाजिक, समाज विरोधी, आतंकवादी, भ्रम फैलाने वाली या इसी तरह की गतिविधियों पर रोक लगाने के लिए सख्त कदम उठाये जाने की आवश्यकता है। सवाल देश की सुरक्षा और आंतरिक शांति और सद्भावना का है तो फिर सोशल मीडिया प्लेटफार्मों को भी समाज के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी को समझना होगा। सरकार को भी इस तरह की गतिविधियों में लिप्त प्लेटफार्मों पर रोक या सख्त कार्रवाई करने में किसी तरह की देरी व संकोच नहीं किया जाना चाहिए।
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