एक सैन्य तानाशाह और

पाकिस्तान एक बार फिर सैन्य तानाशाही की ओर बढ़ रहा है। वर्ष 1947 में अस्तित्व में आने से लेकर ही इसका भविष्य अनिश्चित दिखाई देता रहा है। बेहद ़गरीबी का सामना करते हुए, यह अपनी ज़रूरतों के लिए ज्यादातर अन्य देशों पर ही निर्भर रहा है। अस्तित्व में आते ही इस पर अमरीका भारी हो गया था, जिस कारण इसके अपने विकास की चाल धीमी पड़ गई थी। जिस ढंग-तरीके से यह वजूद में आया था, उस पूरे दृश्य के दृष्टिगत यह ज़रूर महसूस होने लगा था कि ब्रिटिश कूटनीति के  प्रभाव से बने इस नए देश को ऐसे बड़े नेताओं की ज़रूरत होगी, जो इसकी समूची स्थिति को समझते हुए इसे कोई अच्छी दिशा देने का यत्न कर सकें।
इसके संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना इसके अस्तित्व में आने के बाद अधिक समय तक जीवित नहीं रह सके और न ही भारत की तरह इसकी लोकतांत्रिक जड़ें ही मज़बूत हो सकीं। जिस कारण यह भाग्यहीन देश अब तक प्रत्यक्ष रूप में 33 वर्षों से भी अधिक समय तक सैन्य तानाशाही के अधीन ही विचरण करता रहा है। जब कभी जन-साधारण में चली लहरों के दम पर अलग-अलग राजनीतिक पार्टियों ने अपने नेताओं के नेतृत्व में लोकतांत्रिक सरकारें स्थापित भी कर लीं तो भी देश के प्रशासन पर सैन्य प्रमुखों का ही दबदबा बना रहा। जनरल अयूब खान ने वर्ष 1958 में सत्ता पर अपना कब्ज़ा कर लिया और वह 11 वर्ष तक शासन करता रहा। उसके बाद याहया खान ने कुर्सी सम्भाली और उसके बाद कुछ समय के लिए लोकतंत्र का अनुभव लिया गया, परन्तु तब बनी कमज़ोर सरकारों को हटा कर 1977 में जनरल ज़िया-उल-हक ने कुर्सी सम्भाल ली और दुर्घटना में अपनी मौत तक उसने धार्मिक कट्टरता को आधार बना कर और शरीयत कानून लागू करके सत्ता पर अपनी मज़बूत पकड़ बनाए रखी। उससे पहले 1977 में ही पाकिस्तान के दो टुकड़े भी हो चुके थे और इसकी लोगों द्वारा निर्वाचित सरकारें अंधेरे में ही हाथ-पांव मार रही थीं कि वर्ष 1999 में जरनल परवेज़ मुशर्रफ ने नवाज़ शरीफ की निर्वाचित सरकार का तख्ता पलट करके सत्ता सम्भाल ली। अपने अनुसार संविधान में अनेक  बदलाव कर लिए और वर्ष 2008 तक लोगों में फैली ब़गावत के कारण उसे कुर्सी से उतारना पड़ा परन्तु उसके बाद की सरकारों पर भी सेना की नीतियां ही भारी रहीं। इमरान खान ने वर्ष 2018 में आन्दोलन द्वारा पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज़) की निर्वाचित सरकार को बेहद कमज़ोर कर दिया और सेना की सहायता से वर्ष 2018 में वह अपनी पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इन्स़ाफ द्वारा चुनाव लड़ कर प्रधानमंत्री ज़रूर बनें परन्तु उसे जिताने में सेना का ही बड़ा हाथ था।
उसकी सेना के साथ लम्बे समय तक बन न सकी तो पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज़) और पाकिस्तान पीपल्ज़ पार्टी ने सेना की सहायता से इमरान खान का तख्ता पलट करके सत्ता सम्भाल ली। विगत पूरी अवधि में प्रधानमंत्री शहबाज़ शऱीफ एक तरह से सेना के हाथों में ही खेलते आया है। समय-समय देश की निर्वाचित सरकारों ने भारत के साथ मित्रता और सहयोग का हाथ बढ़ाने का यत्न ज़रूर किया परन्तु वहां की सेना का एजेंडा भारत के विरोध में ही रहा। सेना ने तरह-तरह के आतंकवादी संगठनों का पोषण करके भारत के विरुद्ध जेहाद छेड़ रखा। इन संगठनों ने दशकों तक लगातार भारत को प्रत्येक पक्ष से घायल करने के लिए हिंसक खेल जारी रखा। अब भारत के साथ बढ़े तनाव का लाभ उठा कर वहां के जनरल आसिम मुनीर ने एक तरह से फिर अपना प्रभाव बढ़ा लिया है और निर्वाचित सरकार पुन: उसकी कठपुतली बनी दिखाई देती है। भारत के साथ टकराव के चलते पहले उसे फील्ड मार्शल बना दिया गया, जिसके बाद उसने सीधी ताकत तो अपने हाथों में नहीं ली परन्तु वह संविधान में कुछ और ऐसे बदलाव करवाने में सफल हो गया है, जिससे निर्वाचित सरकार रबड़ की मुहर बनी ही दिखाई देगी। उसके प्रभाव के कारण विगत दिवस वहां की राष्ट्रीय असैम्बली ने संविधान में 27वां संशोधन कर दिया है, जिससे आसिम मुनीर चीफ ऑफ डिफैंस फोर्सेज़ बन गया है। उसने एक और योजना से सुप्रीम कोर्ट की शक्तियों को सीमित करके एक अलग संघीय संवैधानिक अदालत बनवा ली है। अब उस पर मुकद्दमा नहीं चलाया जा सकेगा और महत्त्वपूर्ण नियुक्तियां भी उसकी सहमति के बिना नहीं की जा सकेंगी। संविधान की धारा 175 में किए गए संशोधन से न्यायपालिका की शक्ति बेहद सीमित होकर रह गई है। इसके साथ ही उसके पास परमाणु हथियारों का इस्तेमाल करने और अन्य बड़े फैसले लेने के अधिकार भी होंगे।
इन बदलावों की देश की विपक्षी पार्टियों ने कड़ी आलोचना की है और इसके विरुद्ध आन्दोलन शुरू करने की धमकी भी दी है। परन्तु इस सब कुछ के बावजूद यह बात सुनिश्चित बन चुकी है कि आर्थिक पक्ष से बुरी तरह टूट चुका पाकिस्तान एक बार फिर वहां के जनरल द्वारा ही प्रताड़ित किया जाएगा। जैसे पहले सैन्य तानाशाहों ने अपनी ताकतों द्वारा लम्बी अवधि तक देश का शासन चलाया था, नि:संदेह फील्ड मार्शल जनरल आसिम मुनीर भी उसी मार्ग पर चलने की तैयारी कर रहा है, जिससे पाकिस्तान के लोगों का भविष्य और भी अनिश्चित होने की सम्भावना बन गई है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

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