नोबेल पाने के लिए ट्रम्प अब भारत को दुलराने लगे हैं
अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने एक बार फिर से शांति का नोबेल प्राप्त करने के लिए तैयारी आरंभ कर दी है। उनके भारत के प्रति हाल के दिनों में दिए गये बयान, रूसी राष्ट्रपति की तय भारत यात्रा, नोबेल प्राइज के लिए नामांकन हेतु यत्न और फीफा वर्ल्ड कप का शांति के लिए पुरस्कार देने की घोषणा करना, ये कुछ ऐसे घटनाक्रम हैं, जिनसे लगता है कि डोनाल्ड ट्रम्प ने तय कर लिया है कि वर्ष 2026 का शांति का नोबेल पुरस्कार हर हाल में जीतकर ही रहेंगे। यह लगातार दूसरी बार होगा, जब वह इसके लिए साम-दाम दंड-भेद की नीति अपनाकर खुद को शांति का मसीहा घोषित करना चाहते हैं।
वर्ष 2025 में वह हर प्रकार की कोशिश के बाद भी नोबेल शांति पुरस्कार नहीं जीत सके थे। माना जा रहा है कि इसके पीछे भारत का समर्थन, घोषित तौर पर नहीं मिलना बड़ा कारण रहा। यह कारण बेवजह भी नहीं था। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ में पाकिस्तान को भारत ने जिस तरह से सुलटाया था, उसे देखकर ट्रम्प ने यह कह कर श्रेय लेने का प्रयास किया कि उन्होंने दोनों की लड़ाई बंद कराई। इसके विपरीत देखें तो भारत ने हमेशा इस मुद्दे पर कुछ नहीं कहा। हां, यह ज़रूर कहा कि पाकिस्तान को उसी के गढ़ में हमारे जवानों ने धो दिया। इससे चिढ़कर ही ट्रम्प ने रूसी तेल की आड़ में ‘जजिया कर’ जैसा टैरिफ लगा दिया। उन्हें उम्मीद थी कि इससे भारत, डरपोक पाकिस्तान की तरह आत्म-समर्पण कर देगा, मगर हुआ उल्टा। अब जब रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन 6 दिसम्बर 2025 को भारत आ रहे हैं, तो खुद ट्रम्प ने भारत और उसकी जनता की तारीफ करनी आरंभ कर दी है।
ट्रम्प के दो बयान इस बात की गवाही दे रहे हैं कि वह समझौता करने को बेताब हैं और किसी भी कीमत पर भारत की मदद चाहते हैं। ट्रम्प ने कहा-भारत की जनता उनसे प्यार नहीं करती है,पर जल्दी ही वह उनसे प्यार करने लगेगी। उन्होंने भारत पर लगे टैरिफ को भी घटाने की बात कही। उनका दूसरा बयान है कि उनके देश में हर प्रकार की प्रतिभा नहीं है, इसलिए उन्हें दूसरे देशों से प्रतिमाएं लानी होंगी। इसका सीधा सा मतलब है कि अब ट्रम्प न सिर्फ टैरिफ कम करने की सोच रहे हैं बल्कि वह एच-1 बी वीजा फीस में जो अनाप-शनाप बढ़ोत्तरी हुई है, उसे भी कम करेंगे। यहां यह बात सभी जानते हैं कि भारतीयों जैसी प्रतिभाएं किसी दूसरे देश में नहीं हैं। इसका मतलब यह है कि अब वह भारतीय यूथ को भी लुभाने के लिए कदम उठाएंगे। प्रश्न यह है कि ऐसा क्यों? दरअसल, ट्रम्प देख चुके हैं कि वह कितनी भी कोशिश कर लें पर उनकी सुनवाई नहीं हो रही। उनसे डरना तो दूर कोई घबरा भी नहीं रहा। यहां तक कि उनके यहां जो लोग रोज़गार लेकर गए थे, वह भी वापस होने लगे हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि उन्होंने डराकर अपना मतलब निकालने के बारे में सोचा था पर वह उसमें मात खा गए। पाकिस्तान जैसे देश उनसे डरते हैं और ट्रम्प जानते हैं कि पाकिस्तान की दुनिया में कोई कीमत नहीं है।
ट्रम्प के इन निर्णयों के पीछे बड़ी बात यह है कि वह नोबेल के लिए भारत की अनुशंसा चाहते हैं जो उन्हें मिल नहीं रही। वह जब भी भारत से कोई समझौता करना चाहते हैं या फिर खुद का रवैया लचीला दिखाते हैं तो उनका दोस्त पाकिस्तान, भारत में आतंकवादी हरकत करवा देता है। ट्रम्प का सपना नोबेल हैं, और नोबेल के लिए नामांकन का समय फिर आरंभ हो गया है। ट्रम्प को जापानी प्रधानमंत्री साने ताकाइची व पाकिस्तान ने नोबेल के लिए नामांकित कर दिया है। उनके सामने इस पुरस्कार को पाने के लिए फ्रांसेस्का अल्बानीज को भी नामांकन मिला है और यह नामांकन दो ऐसे संगठनों ने दिया है जो नागरिक समाज तथा महिला सुरक्षा के लिए कार्य करते हैं। अल्बानीज जहां मानवीयता की बात करती हैं, वहीं ट्रम्प हमेशा व्यापार के लिए लाभदायक सौदों की तलाश में रहते हैं। ट्रम्प की धमकियां हर कहीं उत्तेजना का कार्य करती हैं और शांति कभी उत्तेजना से नहीं आती। अभी तो नामांकन का दौर आरंभ ही हुआ है और ट्रम्प के लिए चुनौतियां सामने आने लगी हैं। यह बात भी उन्हें सालती होगी कि पाकिस्तान के कुछ नेताओं ने पिछली बार उनके नामांकन पर प्रश्न उठाए थे। इन हालात में वह अब भारत की विश्वसनीयता को समझते हुए अपनी सहृदयता की आड़ में उसे मनाने की कोशिश कर रहे हैं।
ट्रम्प को पता है कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन जब भारत आ रहे हैं, तो वह कुछ न कुछ ऐसा करके जाएंगे, जिससे भारत की दोस्ती और मज़बूत होगी। रूसी राष्ट्रपति वर्ष 2021 में भी दिसम्बर माह में भारत आए थे और अब फिर वह समय है। इस बार भारत के व्यापार पर अमरीका की चोट है। यहां की युवा प्रतिभा को अमरीका ने अपने यहां आने से रोकने की कोशिश की है और अमरीका भारत को डराने के लिए पाकिस्तान की सहायता कर रहा है। इन हालात में पुतिन की यात्रा बहुत महत्वपूर्ण है। संभवत: खुद ट्रम्प भी अगले वर्ष भारत आने की बात करके कोई माहौल पैदा करना चाहते हों। इधर ट्रम्प नोबेल प्राइज देने वाली कमेटी को अपनी नेकनीयती और गुडविल दिखाने के लिए केवल भारत को पटाने का प्रयास कर रहे हों, ऐसा भी नहीं है। उन्होंने फीफा को लेकर भी अपनी बात रखी है। हां, फीफा की ओर से उन्हें कुछ पॉजीटिव संकेत मिल रहे हैं। इसमें लगता है कि फीफा का पहला शांति पुरस्कार उन्हें मिल सकता है। यह भी संभवत: उन्हीं दिनों में दिया जाएगा, जब रूसी राष्ट्रपति पुतिन भारत में होंगे। वैसे इस बात में कोई दो राय नहीं हैं कि फीफा के प्रेसिडेंट इनफेंटिनो ट्रम्प के दोस्त हैं और दोस्त की मदद करने के लिए वह उन्हें यह पुरस्कार दे भी सकते हैं। ट्रम्प को लगता है कि अगर उन्हें यह पुरस्कार मिल गया व वह भारत से खराब हुए संबंधों को सुधारते हुए अपने पक्ष में नामांकन पा जाते हैं, तो हो सकता है कि वह वर्ष 2026 का शांति का नोबेल भी पा जाएं। मगर ऐसा तभी संभव है, जब भारत यह माने कि ट्रम्प के कारण भारत के प्रति पाकिस्तान के रवैये में परिवर्तन हुआ है।
यूं पाकिस्तान का जन्म ही भारत के नुकसान पर हुआ है और वह भारत को परेशान करने के लिए हर प्रकार से काम करता है,ऐसे में ट्रम्प की नोबेल डील कहें या फिर उनकी चुपड़ी बातें भारत पर बहुत असर नहीं डालने वालीं। विदेशी मामलों के जानकार यह भी कहते हैं कि ट्रम्प के खिलाफ अब बाहर ही नहीं उनके देश में भी माहौल बन रहा है। इस बार अमरीकी शट-डाउन जितना देर तक चला, उतना पहले कभी नहीं चला था और जिस तरह की परेशानियां इस बार हुई, इसके पहले नहीं हुई थी। इससे उनकी किरकिरी हुई है। इससे भी वह कुछ परेशान हैं। कहने की बात कोई भी हो पर ट्रम्प के मन में अभी भी नोबेल की चमक का सागर हिलोरें ले रहा है और वह उसे पाने के लिए अब अपने रवैय्ये को बदलने को भी शायद तैयार हैं, फिलवक्त की उनकी गतिविधियां तो कुछ ऐसी ही हैं।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर



