कुछ खास महत्व रखता है नवम्बर का महीना !

वैसे तो हर महीना महत्वपूर्ण होता है और प्रत्येक महीने में कुछ न कुछ खास होता है, लेकिन नवम्बर का महीना ऐसा है कि इसमें राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दिवस बहुत मनाए जाते हैं और चर्चा का विषय बने रहने पर किसी नई चीज़ की शुरुआत हो ही जाती है। 
अनोखे दिन : इस माह पुरुष दिवस का मनाया जाना काफी अनोखा है। अपने मन की बात कहने तक का अधिकार पुरुष को नहीं है। उस पर कितने भी हमले किए जायें, उससे कुछ भी कहा सुना जाए, बिना किसी कुसूर के प्रताड़ना की जाए, बचपन से बुढ़ापे तक, पुरुष के पास सब कुछ सहने के सिवा और कोई रास्ता नहीं है। 
अगर वह अपनी बुद्धि, विवेक और परिश्रम से कुछ हासिल कर भी ले तो भी यह कहा और कहलवाया जाता है कि उसकी सफलता के पीछे मां या पत्नी का हाथ है, मतलब यह कि उसके किए कुछ नहीं होता अगर उसके जीवन में कोई महिला न होती। उसके जीवन भर अविवाहित रहने पर भी यही खोजबीन रहती है कि आखिर कोई स्त्री अवश्य है जो यह इतनी ऊंचाई तक पहुंचा है। 
इसके विपरीत राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय स्तर पर महिला दिवस के अनुरूप इस माह स्त्रियों के प्रति हिंसा के विरोध में 25 नवम्बर से विश्व अभियान चलाया जाता है जो 10 दिसम्बर तक चलता है क्योंकि यह मानवाधिकार दिवस है। यह कभी याद नहीं किया जाता कि पुरुष आत्महत्या के मामले में सबसे अधिक हैं, आंकड़ों की बात करें तो महिलाओं से पांच वर्ष कम जीते हैं, घर परिवार या समाज में कोई भी अनहोनी या दुर्घटना हो जाए तो उसे ही पहले ज़िम्मेदार ठहराया जाता है। उसकी बात तक ठीक से नहीं सुनी जाती। कमाई करने से लेकर परिवार का भरण पोषण उसे ही करना है, अगर न करे या पूरी कोशिश के बाद भी न कर पाए तो उसे निकम्मा, निठल्ला और कामचोर कहा जाता है। इस बात पर तो चिंता की जाती है कि तीन में से एक महिला प्रतिदिन हिंसा का शिकार होती है और हर दस मिनट में परिवार या समाज में उसकी हत्या किसी भी कारण से हो जाती है और अब तो डिजिटल हिंसा भी महिलाओं के साथ अधिक हो रही हैं, लेकिन किसी पुरुष के साथ परिवार या दफ्तर में जो अमानवीय का व्यवहार किया जाता है, उसकी चर्चा तक नहीं होती। महिला किसी को भी मनघड़ंत आरोप लगा कर जेल भिजवा सकती है, परन्तु पुरुष को न्याय पाने के लिये बरसों इंतज़ार करना पड़ता है। 
यह सब सत्य होने के बावजूद इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि महिलाओं को पुरुष के हिंसक आचरण से बचाना आवश्यक है। 
कुछ अन्य दिवस : इसी महीने बेसहारा, अनाथ बच्चों के लिए विश्व गोद अर्थात् एडॉप्शन दिवस भी मनाया जाता है और दुनिया भर में अनेक कार्यक्रम और आयोजन होते हैं ताकि ऐसे परिवार या व्यक्ति सामने आएं जो ऐसे बच्चों का सहारा बन सकें जिनका दुनिया में कोई नहीं और उन्हें  लावारिस कहने की ज़रूरत न पड़े। अनुमान है कि हर दसवां बच्चा इस श्रेणी में आता है जिसकी सुध लेने वाला कोई नहीं होता, उनमें से केवल दो तीन बच्चों को ही गोद लेने के अनुमानित आंकड़े हैं। आवश्यकता है कि उन्हें आश्रय देने के लिए व्यापक स्तर पर जागरूकता फैलाई जाए, जो इस दिवस का उद्देश्य है। समय से पहले जन्म लेने वाले शिशुओं के लिए भी इसी माह दिवस मनाया जाता है और पूरे महीने साक्षरता अभियान भी चलाया जाता है। 14 को भारत में और 20 को विश्व में बाल दिवस मनाया जाता है जो अधिकतर लकीर पीटने जैसा होता है। उनके शारीरिक या मानसिक शोषण की पुरज़ोर तरीके से चर्चा नहीं होती तो फिर इन्हें मनाये जाने का मतलब क्या है ये आजतक समझ में नहीं आया। 
परिवार में किसी पुरुष के मानसिक तनाव में रहने की वजह से उसके व्यवहार में चिड़चिड़ापन हो जाने पर बिना समझे उस पर कई आरोप लगाए जाते हैं। पुरुषों में मानसिक स्वास्थ्य ठीक न होने के मामले बढ़ रहे हैं, लेकिन मनोचिकित्सकों का अभाव है। तनाव के कारण मधुमेह और हृदय रोग बढ़ रहे हैं और अवसाद से ग्रसित रहने के कारण खुदकुशी से लेकर हार्ट अटैक होने के मामले बढ़ रहे हैं। पुरुष हिंसक क्यों हो रहे हैं, यह जाने बिना उन पर गंभीर आरोप लगाए जाते हैं और इससे पहले कि वे अपनी बात कह पायें, उन्हें नौकरी से निकाल दिया जाना या कठोर कार्रवाई किया जाना आम बात है। 
देश में यह महीना भविष्य में इस बात के लिए भी जाना जाएगा कि जिस बिहार में 11 वर्षों में 10 बार नितीश कुमार मुख्यमंत्री बने हैं। एक बात और कि जो प्रशांत किशोर सलाहकार और चुनाव विश्लेषक रहे हों, वह चुनाव में जीतने की उम्मीद कर उतरे, परन्तु हार गए, यह नसीहत के तौर पर माना जाएगा। 
हालांकि यह महीना दिल्ली और आसपास के शहरों में जबरदस्त प्रदूषण का शिकार बने रहने के लिए जाना जाता है इस सब के बावजूद नवंबर अपनी ख़ासियत के कारण ताज़गी का प्रतीक माना जाता है।

#कुछ खास महत्व रखता है नवम्बर का महीना !