गेहूं का उत्पादन बढ़ाने के लिए छोटे किसानों को भी सुविधाएं उपलब्ध की जाएं

आजकल का ठंडा मौसम गेहूं के लिए लाभदायक होने के कारण और बिजाई के बाद समय पर वर्षा होने के कारण गेहूं की पैदावार पिछले वर्ष से अधिक होने की सम्भावना हो गई है। कृषि विभाग और किसान कल्याण विभाग के डायरैक्टर जसबीर सिंह बैंस के अनुसार उत्पादन पिछले वर्ष के 165.88 लाख टन से अधिक होगा। अगर आगे मार्च-अप्रैल में भी मौसम अनुकूल रहा। भारत सरकार के आई.सी.ए.आर. गेहूं और जौं की खोज संस्थान के निर्देशक डा. ज्ञानइन्द्र प्रताप सिंह के अनुसार देश में गेहूं का उत्पादन पिछले वर्ष के 98.37 मिलियन टन के मुकाबले 100 मिलियन टन हो जाने का अनुमान है। गेहूं पैदा करने वाले पंजाब, हरियाणा और उत्तर भारत के दूसरे स्थानों पर वर्तमान में चल रहा ठंडा मौसम गेहूं की फसल के लिए अति लाभदायक है। पिछले महीने तक देश में 29 मिलियन हैक्टेयर रकबे पर गेहूं की बिजाई हो चुकी थी, जो बढ़कर पिछले वर्ष के 30.4 मिलियन हैक्टेयर को छू जाने की सम्भावना है। पंजाब में गेहूं की काश्त पिछले वर्ष 34.97 लाख हैक्टेयर रकबे पर हुई थी। इस वर्ष पिछले वर्ष के अंत तक 34.90 लाख हैक्टेयर रकबा बीजा जा चुका था। डायरैक्टर बैंस के अनुसार रकबा लगभग पिछले वर्ष के स्तर पर ही रहने की आस है। अब जो देरी से बिजाई हो रही है, उसके लिए किसानों को लेट काश्त करने वाली सफल डब्ल्यू.जी. 544 और एच.डी. 3117 जैसी किस्में बीजने की सिफारिश की जाती है। आई.सी.ए.आर. भारतीय खोज संस्थान के गेहूं के ब्रीडर डा. राजबीर यादव के अनुसार एच.डी. 3117 किस्म इस समय बीज कर भी किसानों को अपेक्षित अच्छा झाड़ दे देगी।खरीफ के मौसम में धान की रिकार्ड फसल काटने के बाद किसानों को गेहूं की बढ़िया उपज मिलने की आशाएं बन जाने पर खुशी का अहसास हो रहा है। चाहे छोटे और सीमित किसान ऋण माफी के जाल में उलझे हुए हैं। डायरैक्टर बैंस के अनुसार केन्द्र देश के अन्न भण्डार में पंजाब की ओर से गेहूं का सब राज्यों से अधिक योगदान डालने के लिए आस बांध कर बैठा है। केन्द्र की ओर से 128 करोड़ रुपए का योगदान आया है और कृषि विभाग ने राज्य सरकार की ओर से डाले जाने वाले योगदान को शामिल करके 216 करोड़ रुपए की योजना बनाकर वित्त विभाग को भेजी है। इसी तरह आर.के.वाई. स्कीम निचले पीली कुंगी के हमले को काबू करने के लिए किसानों को 5 करोड़ रुपए दवाइयों पर सब्सिडी देने का प्रबंध किया गया है। स्कीम की वित्त विभाग की ओर से स्वीकृति दिए जाने उपरांत किसानों को जो गेहूं की एच.डी. 2967, एच.डी. 3086, डब्ल्यू.एच. 1105 आदि किस्मों के बीज 1000 रुपए की छूट देकर सब्सिडी पर दिए गए हैं, वह सब्सिडी की रकम भी उनके खातों में जमा करवा दी जायेगी।गेहूं, रबी की पारम्परिक मुख्य फसल है, जिसको हर छोटा बड़ा किसान बीजता है। बड़े और खुशहाल किसान तो नए बीजों, पौधे सुरक्षा विधियों और नई खोज से पूरा लाभ उठाकर अपनी उत्पादकता बढ़ा रहे हैं, लेकिन छोटे किसान आज भी इन तकनीकों के लाभ से वंचित हैं, क्योंकि यह कृषि प्रसार सेवाएं पिछड़ जाने के कारण उन तक नहीं पहुंच रहीं। पंजाब सरकार को इस श्रेणी के किसानों को नई खोज का लाभ पहुंचाने के लिए कृषि प्रसार सेवा को फिर से जीवित करना चाहिए। इसलिए सरकार को भी उत्तर प्रदेश की ओर से शुरू की गई किसान पाठशाला योजना जैसी स्कीम को अस्तित्व में लाने पर विचार करना चाहिए। अब पिछली शताब्दी के 70वें दशक का सामूहिक विकास ढांचा लाना तो सम्भव नहीं होगा। ऐसी कोई नई स्कीम अमल में लाई जाए, जिसके तहत कृषि विभाग, पी.ए.यू., कृषि विज्ञान केन्द्र और निजी क्षेत्र की किसान संस्थाएं एकजुट होकर काम करें और नई खोज को अंदरूनी गांवों तक, छोटे और सीमित किसानों को पहुंचाकर उनकी आमदनी में बढ़ौतरी करें।पंजाब में जो गेहूं की उत्पादकता 51 क्विंटल प्रति हैक्टेयर पर पहुंची है, उसमें कीमिआई खादों के प्रयोग की भी विशेष भूमिका है। केन्द्र सरकार की ओर से यूरिया की खपत कम करने के लिए जोर दिया जा रहा है। इस संबंधी यूरिया के पैकेट का वज़न भी 50 किलो की बजाय 45 किलो किया जा रहा है। इससे यूरिया की खपत कम होने की कोई सम्भावना नहीं। कहीं छोटे किसान वज़न संबंधी असमंजस में पड़ कर खपत बढ़ा न बैठें? अधिक महत्व फास्फोरस और पोटाश की खपत बढ़ाने पर दिए जाने की ज़रूरत है, क्योंकि नाइट्रोजन (एन), फास्फोरस (पी) और पोटाशियम (के) के प्रयोग करने पर संतुलन नहीं रखा जा रहा। चाहे नीम-कोटिड यूरिया का प्रयोग 10 प्रतिशत अधिक प्रभावशाली हो सकता है, लेकिन किसान इसको आम यूरिया की खुराक के बराबर ही पा रहे हैं। यूरिया का उद्योग के तौर पर इस्तेमाल करके इस पर दी जा रही भारी सब्सिडी के फायदे को रोकने के लिए जो नई विधि के ज़रिये सब्सिडी किसानों के खातों में जमा कराने की बनाई गई है, वो भी छोटे और सीमित किसानों के लिए विशेष करके योग्य नहीं। उनको पूरी कीमत देकर पहले यह खाद खरीदना असम्भव होगा। इस पर पुन: विचार करने की ज़रूरत है। अक्तूबर में किसानों की ओर से पूरी कीमत अदा करके सब्सिडी वाले खरीदे गए बीजों की सब्सिडी की रकम अब तक भी उनके खातों में जमा नहीं हुई। कई ऐसे किसान जिन्होंने यह बीज पिछली रबी में खरीदे थे, सब्सिडी की रकम भी वसूली के लिए आज भी वह कृषि विभाग के चक्कर काट रहे हैं।