स्वतंत्रता के उन्नायक सतगुरु राम सिंह

जैसे रात के बाद दिन, दु:ख के बाद सुख और गुलामी के बाद आज़ादी की बारी आती है, इसी तरह ही 6 ऋतुओं की रानी कही जाती बसन्त ऋतु भी पतझड़ के बाद आती है। पहाड़ों में बर्फ, तेज़ ठण्डी हवाएं, कोहरे और धुंध के कारण जहां वनस्पति में वीरानी छाई होती है, वहीं बसन्त ऋतु के आगमन पर सर्दी चली जाती है। वनस्पति में बहार शुरू हो जाती है,  बागों में फूल खिलने लगते हैं, पक्षियों के गीत, मोरों का नृत्य, झूमती फसलों को देखकर मानवीय मन में भी खुशी आ जाती है। पतझड़ के बाद आई वसन्त संबंधी श्री गुरु अमरदास जी लिखते हैं—
माहा रुति महि सद बसंतु।।
जितु हरिया सभु जीअ जंतु।।
किया हउ आखा किरम जंतु।।
तेरा किने न पाया आदि अंतु।।
इसी बसंत पंचमी के दिन सोये हुए लोगों को जगाने के लिए, लोगों में स्वाभिमान का मादा भरने के लिए, गुरु सिखी का व्यापक पैमाने पर प्रचार करने और स्वतंत्रता संग्राम की नींव रखने के लिए अद्वितीयजन नेता सतगुरु राम सिंह जी का जन्म 3 फरवरी, 1816 ई. को गांव राइयां भैणी साहिब पिता जस्सा सिंह के घर माता सदा कौर की कोख से हुआ।  महाराजा रणजीत सिंह की मौत के बाद लाहौर दरबार बिखर गया। लोग अपनी रहत-मर्यादाओं, सभ्याचार और विरासत को भूल कर अंग्रेज़ों की प्रशंसा करने लगे। भाई महाराज सिंह के निर्वासन के बाद जब अंग्रेज़ों के खिलाफ पत्ता भी नहीं हिलता था, उस समय 12 अप्रैल, 1857 ई. को सतगुरु राम सिंह जी ने भैणी साहिब की धरती पर सफेद झण्डा फहराकर आज़ादी का बिगुल बजा दिया। ऊंचे, सच्चे, स्वच्छ आचरण, नैतिक जीवन, कथनी और करनी के सिद्धांत तथा जोशीले प्रचार के कारण गांवों के गांव लोग नामधारी सजने लगे। प्रचार को और प्रफुल्लित करने के लिए सतगुरु राम सिंह जी ने महा पंजाब को 22 हिस्सों में बांट कर 22 प्रभावशाली शख्सियतों (सूबे) अलग-अलग क्षेत्रों में नियुक्त किये। जहां धार्मिक पक्ष से सतगुरु राम सिंह जी ने जहां कौम में नई जान डाली वहीं सामाजिक पक्ष से उन्होंने सती प्रथा, लड़कियों को मारने, बेचने के खिलाफ भी आवाज़ उठाई। महंगी पाखंडी परम्पराओं से निकाल कर सादा विवाह की रस्म शुरू की। महिलाओं को पुरुष के समान रुतबा दिया। राजनीतिक पक्ष से सतगुरु राम सिंह जी ने स्वदेशी का प्रचार किया। अंग्रेज़ों के खिलाफ विश्व इतिहास में सबसे पहला असहयोग का हथियार प्रयोग करके अपनी पंचायती अदालतें, अपना डाक प्रबंध, अपनी धर्मशालाओं में धार्मिक पढ़ाई, अपने साधनों की सवारी और अपने हाथों से बनाए गए खद्दर या अपनी मिलों में तैयार माल का प्रयोग करने का प्रचार किया।  सतगुरु राम सिंह जी ने स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए विदेशों से संबंध स्थापित किये। नेपाल की सेना में नामधारी सिंह भर्ती करवाए और कश्मीर में कूका पल्टन खड़ी करवा दी। काबुल, ग्वालियर और लखनऊ के राजाओं के साथ भी आप ने आज़ादी संबंधी विचार-चर्चा की। जंग-ए-आज़ादी के प्रथम संघर्ष कूका आंदोलन में 80 ऐसे नामधारी सिंह शहीद हुए हैं, जिनके विवरण इतिहास के पृष्ठों पर दर्ज हैं। अमृतसर हरिमंदिर साहिब की पवित्रता की रक्षा के लिए चार सिंह अमृतसर में, दो सिंह लुधियाना में, तीन सिंह रायकोट में फांसी के रस्से को चूम कर शहादत का जाम पी गए। 66 सिहों को बिना मुकद्दमा चलाये मालेरकोटला में तोपों से उड़ा दिया गया। बहुत सारे नामधारी नेताओं को जेलों में बन्द कर दिया गया और 22 सूबों को निर्वासित कर दिया गया। 18 जनवरी, 1872 ई. को सत्गुरु राम सिंह को बर्मा में निर्वासित करके श्री भैणी साहिब गुरुद्वारा में पुलिस चौकी बना दी गई परन्तु फिर भी विदेशी सत्ता के विरुद्ध गुप्त नामधारी जंग जारी रही। विश्व इतिहास में सतगुरु राम सिंह शिरोमणि नेता हैं।
-जगदीश सिंह कुहाड़ा