महान खिलाड़ियों की महान बातें

लामिसाल हौसले का बादशाह
वर्ष 1933 के ओलम्पिक खेलों से कई वर्ष पहले की घटना है। दो बच्चे अंगीठी जला रहे थे और उनमें से एक ने गलती से मिट्टी के तेल की जगह पैट्रोल अंगीठी में डाल दिया। एकदम आग भड़क गई और दोनों बच्चे भयानक आग की चपेट में आ गए। एक की तो इस हादसे में मृत्यु हो गई और दूसरे के शरीर का निचला हिस्सा बुरी तरह झुलस गया। डाक्टरों ने उसकी टांगें काटने की बात कही लेकिन वह नहीं माना। आप्रेशन नहीं किया गया और उनके दोनों पांव धीरे-धीरे लकड़ी की तरह सूख गए। डाक्टरों ने ऐलान कर दिया कि वह उम्र भर के लिए विकलांग हो गए थे और दोबारा कभी भी चलने के काबिल नहीं रहे थे, लेकिन हकीकत यह थी कि उस बच्चे के भीतर बेहद मज़बूत इच्छा शक्ति और बहुत अधिक आत्म बल था। उन्होंने कई कठिनाइयों का सामना करके चलने की कोशिश न छोड़ी और निरन्तर अभ्यास जारी रखा। आखिर उनकी दृढ़ता और सख्त मेहनत को फल मिला और वह दिन भी आया जब वर्ष 1933 के ओलम्पिक खेलों में सर्वोत्तम धावक के तौर पर उन्होंने स्वर्ण पदक हासिल किया और इतिहास रच दिया। समूचे खेल जगत के लिए यह एक अद्वितीय घटना थी और इस हैरतअंगेज़ चमत्कार को अंज़ाम देने वाले लामिसाल हौसले के बादशाह का नाम था गलैम कनिंघम।
सज़ा की जगह मिले इनाम ने बदली ज़िन्दगी
भारत में अंग्रेज़ी शासनकाल के समय की बात है। ग्वालियर के विक्टोरिया स्कूल में एक बच्चा छठी कक्षा में पढ़ता था। वह पढ़ाई में जितना होशियार था, खेलों में भी उतना ही अच्छी कारगुज़ारी दिखाया करता था। एक दिन स्कूल के साथ लगते बंगले में एक अंग्रेज़ अफसर गुस्से में लाल-पीला होता हुआ निकला और सीधा स्कूल के अंदर आ गया। उसने प्रिंसीपल को शिकायत भरे लहज़े से कहा- ‘आपके स्कूल के एक बच्चे ने हॉकी की गेंद को इतनी ज़ोर से हिट मारा कि मेरे बंगले की दीवार में छेद कर दिया है। प्रिंसीपल ने तुरंत मामले की पड़ताल आरम्भ की और जल्द ही वह बच्चा भी ढूंढ लिया, जिसने गेंद को हिट किया था। प्रिंसीपल ने उस बच्चे को अपने पास बुलाया और गुस्सा करने की जगह उसकी पीठ को थपथपाते हुए कहा- ‘बेटा, तेरा शॉट सचमुच ही ज़बरदस्त था। तुम्हें तो सज़ा नहीं, बल्कि इनाम मिलना चाहिए।’
इतना कह कर प्रिंसीपल ने उसका माथा चूमा और इनाम के तौर पर एक हॉकी स्टिक और एक गेंद उक्त बच्चे को भेंट कर दी। अपने इस ज़बरदस्त शॉट के लिए बचपन में ही नाम कमाने वाले और बड़े होकर हॉकी को ही अपना जुनून बनाने वाले इस बालक का नाम रूप सिंह था,जो बाद में भारतीय हॉकी टीम के कप्तान भी बने थे।
ज़बरदस्त आत्म-विश्वास की हुई जीत
विश्व के महान फुटबॉलर के तौर पर जाने-जाते एक खिलाड़ी ने एक मैच के दौरान गोल करने के इरादे से बॉल दागा लेकिन गोल न हो सका।
 इस असफलता से खफा हुए उस खिलाड़ी ने मैच के प्रबंधकों को चुनौती देते हुए कहा- ‘मैंने तीन सौ डिग्री के कोण से बाल मारा है, गोल फिर भला क्यों नहीं हुआ? बहुत ही ज़बरदस्त आत्म-विश्वास था उस खिलाड़ी के कथन में। जब पोल मापा गया तो पता चला कि पोल सचमुच ही टेढ़ा था। अपने दृढ़  आत्म-विश्वास के कारण जीत हासिल करने वाले उस महान खिलाड़ी का नाम था- पेले, जिनको फुटबॉल की दुनिया का बादशाह होने का सम्मान भी दिया गया था।’
-प्रो. परमजीत सिंह निक्के घुम्मन