मोदी शासन के 4 वर्ष : चार वर्षों में आर्थिकता में कई सुधार, परन्तु वादे रहे अधूरे

खन्ना, 25 मई : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने 26 मई 2014 को शपथ ली थी। चार वर्ष बीत जाने के बाद सरकार की आर्थिक नीतियों व आर्थिक उपलब्धियों के बारे में विभिन्न स्तरों पर विचार चर्चा जारी है। इन 4 वर्षों में मोदी सरकार ने बहुत बड़े-बड़े कदम भी उठाए व उनसे देश की आर्थिकता को बड़े-बड़े लाभ होने के वादे भी किए गए। परन्तु धरातल पर ऐसे ये लाभ दिखाई नहीं दे रहे हैं। इस दौरान जी.एस.टी. लागू करके इसको आज तक का सबसे बड़ा कर सुधार करने का दावा किया गया, नोटबंदी कर काला धन समाप्त करने और डिज़ीटल करंसी चलाने का दावा भी किया गया, परन्तु नकदी लेन-देन दोबारा पुरानी दरों पर पहुंच गया है। दीवालिया कानून में संशोधन किया गया, जिसका परिणाम यह हुआ कि विश्व बैंक ने भारत को एशिया की तीसरी सबसे बड़ी आर्थिकता करार दिया और कहा कि भारत अब व्यापार करने के लिए पहले से बहुत बढ़िया स्थान है। परन्तु इसके बावजूद देश की आर्थिकता में सब कुछ ठीक नहीं हुआ। देश में प्रत्येक वर्ष 1 करोड़ नौकरियां पैदा किए जाने का वादा किया गया था, जो पूरा नहीं हुआ। भ्रष्टाचार समाप्त करना, गरीबों को ऊपर उठाने व किसानों की आय बढ़ाने के वादे भी अभी तक वादे ही दिखाई देते हैं, हालात पहले से भी खराब हैं। ‘मेक इन इंडिया’ मुहिम का भी कोई खास परिणाम अभी दिखाई नहीं दिया, अभी भी भारत के कुल घरेलू उत्पादन में निर्माण क्षेत्र का हिस्सा 17 से 18 फीसदी में ही घूम रहा है। मोदी सरकार राजकोष घटाने में काफी सफल रही है। कुल घरेलू उत्पादन (जी.डी.पी.) में वृद्धि ? : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शासन सम्भालने के समय मई 2014 में जी.डी.पी. में वृद्धि की दर लगभग 6.5 फीसदी पर चल रही थी, 4 वर्षों में कुल घरेलू उत्पादन वृद्धि दर 9 फीसदी से भी ऊपर चली गई थी, जो वित्तीय वर्ष 2017-18 की पहली तिमाही में पुन: 6.1 फीसदी पर आ गई। परन्तु 2017-18 की दूसरी तिमाही में यह पुन: 7.1 फीसदी पर पहुंच गई। इस तरह गत 4 वर्षों में भारत की जी.डी.पी. की औसत वृद्धि दर 7.3 फीसदी रही जो इससे पिछले दशक की 7.6 से नीचे रही। वर्ष 2018 के लिए जी.डी.पी. वृद्धि की दर 6.6 फीसदी ही रहने का अंदेशा है। महंगाई दर घटी : मोदी सरकार महंगाई दर को कंट्रोल करने में अवश्य सफल रही है। चाहे इसका मुख्य कारण मोदी शासन में विश्व में कच्चे तेल की घटी कीमतों ही रही 2013-14 में महंगाई वृद्धि दर 9.4 फीसदी थी, जो वित्तीय वर्ष 2017-18 में 3.6 फीसदी ही रही। अब जब विश्व बाज़ार में कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ौतरी हो रही तो देखना पड़ेगा कि सरकार महंगाई वृद्धि दर पर कितना काबू रख सकती है। टैक्स और टैक्स देने वाले बढ़े : मोदी शासन में प्रत्यक्ष टैक्स एकत्रित करने के मामले में ऐतिहासिक इजाफा हुआ है। 2016-17 में 5.43 करोड़ टैक्ट रिटर्नें भरी गई परन्तु 2017-18 में 6.84 करोड़ रिटर्नें भरी गईं। 2017-18 में 10.2 लाख करोड़ रुपए का टैक्स जमा हुआ, जो गत वर्ष से 18 फीसदी ज्यादा है। रुपए की कीमत बुरी तरह गिरी : 9 मई 2013 को 54 रुपए 24 पैसे का एक अमरीकन डालर था जो 21 मई 2018 को 68 रुपए 12 पैसे का हो गया है। भारतीय रुपए की ऐसी स्थिति अन्य प्रमुख विदेशी करंसी के मुकाबले भी हुई है। पब्लिक सैक्टर बैंकों के कर्ज़े की हालत : देश के सरकारी बैंकों द्वारा दिए गए कर्ज़े की हालत बहुत खराब है कुल 2.72 लाख करोड़ रुपए के बुरे माने गए कर्ज़े में से वित्तीय वर्ष 2014-15 से लेकर 2017-18 के 31 दिसम्बर तक केवल 29, 343 करोड़ रुपए ही वसूले जा सके हैं जिनका कुल कर्ज़े का 10.77 फीसदी ही बनता है। इस दौरान बड़े-बड़े उद्योगों के द्वारा लिए गए कज़र्े के एन.पी.ए. के लगभग 90 फीसदी कज़र् को माफ कर दिया गया है।