मां पूर्णागिरि शक्ति पीठ 

चैत्र नवरात्रि में लगने वाले प्रसिद्ध मेलों में से एक मेला है-मां पूर्णागिरि का मेला। यह मंदिर जनपद पिथौरागढ़ में समुद्र तल से लगभग छह हज़ार फुट की ऊंचाई पर स्थित है। एक ओर ऊंची पर्वत श्रृंखलाएं-घाटियां तथा दूसरी ओर शारदा नदी की निर्मल जलधारा का विहंगम दृश्य मन को ऐसा बांध लेता है कि प्रकृति की अनुपम छटा को देखकर विश्व की नियंता शक्ति के प्रति स्वयं ही सिर झुक जाता है। कहा जाता है कि मां पूर्णागिरि शक्ति पीठ एक सौ आठ शक्तिपीठों में से एक है। यह मंत्रों द्वारा सिद्ध शक्तिपीठ माना जाता है जहां दूर-दूर से श्रद्धालु अपनी मनौतियां मांगने यहां आते हैं। यह मेला लगभग 7 किलोमीटर क्षेत्र में फैला रहता है जिसे सम्पन्न कराने के लिए शासन-प्रशासन स्तर से विशेष व्यवस्थाएं की जाती हैं। उ. प्र. परिवहन निगम और उत्तर रेलवे द्वारा श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए विशेष ट्रेनें और बसें चलायी जाती हैं। टनकपुर के मुख्य बाजार से जीप मिल जाती है। इसके माध्यम से 15 किलोमीटर का रास्ता आसानी से तय हो जाता है। यह जीप जहां पर छोड़ती है, उस जगह का नाम है ठुलीगाड़। ठुलीगाड़ का स्थानीय कुमाऊंनी भाषा में अर्थ है बड़ा नाला। वास्तव में यह जगह एक बड़ा नाला ही है जो बरसात के मौसम में भरकर चलता है। उन दिनों मंदिरों का संपर्क इधर से कट जाता है। इसी स्थान से शुरू होती है पैदल यात्रा, जो लगभग 7 किलोमीटर तक चलती है। पहाड़ी मार्ग होने के कारण कभी पर्वत शिखर पर पहुंचना और कभी एकदम तलहटी में पहुंच जाना रोमांचकारी अनुभव होता है। ‘जय माता के जयघोष’ के साथ श्रद्धालु तीन-चार घण्टे पैदल चलकर जब मंदिर में पहुंचते हैं तो उनकी सारी थकान दूर हो जाती है। कहा जाता है कि दक्ष प्रजापति के यज्ञ में अपने पति को न बुलाये जाने से दुखी उमा द्वारा यज्ञ कुण्ड में कूदने पर जब शिवजी देवी के शरीर को लेकर चले तो देवता चिन्तित हुये। तब विष्णु ने धनुष-बाण से देवी के शरीर को खण्ड-खण्ड कर दिया। उनके शरीर के भाग जहां-जहां गिरे, वहीं पर शक्ति पीठ बने। देवी भागवत के मुताबिक ऐसे 108 शक्तिपीठ हैं। पूर्णागिरि में उमा का नाभिस्थल गिरा था। कहा जाता है कि नाभि पहाड़ में छेद करते हुए शारदा नदी की तलहटी में पहुंच पाताल में समा गयी। श्रद्धालुओं द्वारा चढ़ाया जाने वाला चढ़ावा इसी रास्ते से नीचे चले जाने के कारण पुजारियों ने उस जगह को ढक दिया है। श्रद्धालुओं के विशेष आग्रह पर पुजारी उस स्थल के दर्शन करा देते हैं। ठुलीगाड़ से चलते ही मेला क्षेत्र शुरू हो जाता है। दिन रात चलने वाले मेले में जिला पंचायत द्वारा विद्युत व्यवस्था की जाती है। मार्ग में स्थान-स्थान पर विभिन्न प्रतिष्ठानों/संस्थाओं की ओर से जलपान के शिविर लगाये जाते हैं।