कागज़ के नोटों के प्रचलन की कहानी

पहले पहल कागज़ के नोट नहीं होते थे तब अमीर लोग हुंडी का प्रयोग करते थे। उन दिनों में जब कोई व्यक्ति कहीं बाहर जाता तो वह अपना पैसा अमीर लोगों के पास रख जाता था। अमीर व्यक्ति उस आदमी को एक कागज़ लिखकर दे देता था। दूसरी जगह जाकर वह व्यक्ति वहां से अपना पैसा लेकर अपने काम कर लेता था।नोटों का प्रचलन 1661 में शुरू हुआ। सबसे पहले कागज़ के नोट स्वीडन के बैंक ऑफ स्टाकहोम ने छापे थे। भारत में नोटों की छपाई 1928 में इंडिया सिक्योरिटी प्रैस नासिक (महाराष्ट्र) में शुरू हुए। उससे पहले भारत के लिए नोट लंदन में छापे गए जिनको ‘बैंक ऑफ इंडिया’ छापता था। सन् 1862 से बैंक ऑफ इंग्लैंड ने भारत के लिए नोटों की छपाई की। सन् 1862 में कागज़ी मुद्रा एक्ट बनाया गया। भारत में 1928 में पहली बार नोट छापे गए जो कागज़ के एक तरफ ही छापे गए थे और दूसरी तरफ कागज़ बिल्कुल कोरा था। पर नोटों की नकल आसानी से हो सकती थी। अब नोट एक खास किस्म के कागज़ पर छपते हैं। यह कागज़ 1967-68 में इंग्लैंड की एक कम्पनी ‘मैसर्ज पेरिटलस लिमिटेड’ से खरीदा जाता था।  1962 में होसंगाबाद में कागज़ बनने लग गया। इस मिल ने जून 1968 में नोट छापने का कागज़ मुहैय्या करवा दिया तब से नोटों की छपाई में तरह-तरह का बदलाव आने लगा और अब जो नोट छपते हैं वह आप अपने हाथों देख ही लेते हैं।

-डी.आर. बंदना
511-खैहरा इन्कलेव, जालन्धर