भाजपा के लिए बड़ी चुनौती है जम्मू-कश्मीर


जम्मू-कश्मीर में तीन वर्ष के लगभग चुनी हुई सरकार कार्य करती रही है। 19 जून को भारतीय जनता पार्टी की ओर से सरकार से समर्थन वापिस लेने से पीपल्ज़ डैमोक्रेटिक पार्टी (पी.डी.पी.) की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती को इस्तीफा देना पड़ा था। हम इस बात की प्रशंसा अवश्य करते हैं कि चाहे भारतीय जनता पार्टी और पीपल्ज़ डैमोक्रेटिक पार्टी सैद्धांतिक तौर पर अलग पार्टियां हैं और इनका कश्मीर मामले के प्रति दृष्टिकोण भी अलग-अलग है। परन्तु विधानसभा चुनावों में दोनों ही पार्टियों के उभार के कारण न्यूनतम कार्यक्रम बना कर इस सरकार को चलाने का प्रयास किया गया। गत तीन वर्षों में बहुत कुछ ऐसा हुआ, जो दुखद था। सरकार द्वारा स्थिति को सुधारने के लिए बहुत प्रयास किए गए। पाकिस्तान के संरक्षण पर राज्य में घुसपैठ जारी रही, हिंसा का नंगा नाच होता रहा, बहुत से कश्मीरी युवक इस हिंसा में शामिल हुए, पत्थरबाज़ी की घटनाओं ने स्थिति को और भी बिगाड़ दिया। जब भी आतंकवादियों, आम नागरिकों या सैन्य जवानों की मौतें होती थीं, तो हालात और भी तनावपूर्ण बन जाते थे। खास तौर पर वर्ष 2016 में कश्मीरी आतंकवादी बुरहान वानी के मारे जाने के बाद हुर्रियत कांफ्रैंस जैसे संगठनों ने जहां लोगों को भड़काने का प्रयास किया, वहीं पाकिस्तान ने अपनी कार्रवाइयों से जलती पर तेल डाला। 
अगले वर्ष लोकसभा के चुनावों के मद्देनज़र हालात के ठीक न होने के कारण भाजपा ने सरकार से अपना संबंध-विछेद कर लिया। इसका एक कारण यह भी कहा जा सकता है कि सरकार में होते हुए जम्मू के क्षेत्र में जहां से उसको अधिक सीटें मिली थी, पार्टी के आधार को काफी नुक्सान पहुंच रहा था। खास तौर पर कठुआ दुष्कर्म के मामले में भाजपा की स्थिति बहुत ही नाज़ुक बन गई थी। 20 जून को राज्यपाल शासन का ऐलान कर दिया गया। इसके बाद घटनाक्रम काफी तेज़ हुआ प्रतीत होता है। चाहे राज्यपाल एन.एन. वोहरा ने यह कहा है कि राज्यपाल शासन का मतलब प्रशासनिक तौर पर सख्ती अपनाना नहीं है और न ही शक्ति का प्रदर्शन करना है। वह विश्वास दिलाते हैं कि इस समय के दौरान हर पक्ष से इस गम्भीर समस्या पर विचार करके उस संबंधी कदम उठाये जाएंगे और लोगों में विश्वास बहाल करने के लिए बड़े प्रयास भी किए जाएंगे। इसके साथ ही सुरक्षा बलों ने काफी सक्रियता दिखाते हुए कुछ बड़े आतंकवादियों को मार दिया है और स्थान-स्थान पर आतंकवादियों से भीषण मुठभेड़ की जा रही है। इस संबंधी सेना के प्रमुख बिपन रावत कई बार कश्मीर का दौरा कर चुके हैं, अब रक्षा मंत्री सीतारमण ने भी विशेष तौर पर कश्मीर का दौरा किया है। आगामी दिनों में अमरनाथ की प्रसिद्ध यात्रा शुरू हो रही है, जिसमें लाखों श्रद्धालुओं की सुरक्षा के लिए सरकार के लिए प्रबंध करने बड़ी चुनौती बने नज़र आ रहे हैं। यह भी सूचना मिली है कि कुछ आतंकवादी संगठनों द्वारा अमरनाथ यात्रा में रुकावट डालने की पूरी तैयारियां की जा रही हैं, क्योंकि पहली यात्राओं के दौरान भी कई बार हिंसक घटनाएं घटीं, जिनमें काफी श्रद्धालु मारे गए थे। जहां नई स्थिति में केन्द्र सरकार ने इस समस्या से निपटने के लिए पूरी तैयारी की प्रतीत होती है, वहीं राज्य की राजनीतिक पार्टियों तथा हुर्रियत कांफ्रैंस को नये सिरे से अपनी नीति पर विचार करना पड़ेगा। इस समय यह देखना होगा कि पाकिस्तान कैसे अपने इरादों को अंजाम देता है। 
केन्द्र की भाजपा की सरकार के लिए कश्मीर की स्थिति एक बड़ी चुनौती बनकर उभरी है। यदि आगामी महीनों में वह अलग-अलग स्तरों पर अपनाए अपने दृष्टिकोण से स्थिति को सुधारने में सफल हो जाती है, तो यह उसकी बहुत बड़ी उपलब्धि मानी जाएगी और इसका असर आगामी लोकसभा चुनावों पर भी पड़ेगा। यदि वह स्थिति को सम्भालने से समर्थ रही तो यह बात केन्द्र सरकार के प्रभाव को कम करने में ही सहायक होगी। चाहे पाकिस्तान, हुर्रियत कांफ्रैंस या राजनीतिक पार्टियां इस मामले पर अलग-अलग बोली बोलते नज़र आ रहे हैं, परन्तु इस बात में कोई सन्देह नहीं होना चाहिए कि कश्मीर भारत का अनभिज्ञ हिस्सा है। इसको देश से किसी भी सूरत में अलग नहीं किया जा सकता, इसके लिए चाहे कितनी भी कीमत क्यों न चुकानी पड़े? 
-बरजिन्दर सिंह हमदर्द