अन्तर्राष्ट्रीय बुजुर्ग दिवस पर विशेष : पीपल के पेड़ होते हैं बुजुर्ग

जिस तरह पीपल के पेड़ दिन-रात ऑक्सीजन देकर समाज को शुद्ध वातावरण देकर रक्षा करते हैं, उसी प्रकार बूढ़े बुजुर्गों की छत्र-छाया में हमारे जीवन का भला होता है। पीपल के पेड़ की जड़ें पत्ते और छाल औषधियों में प्रयुक्त होकर हमें कई बीमारियों से बचाती हैं। बुजुर्ग हमारा पालन-पोषण ही नहीं करते हमें पढ़ा-लिखा कर अपने पैरों पर खड़ा होने के योग्य बनाते हैं। उनकी दुआएं हमारे जीवन को संवारती हैं। उनकी गालियों में भी कोई न कोई नसीहत मिली होती है। बुजुर्ग हमें सत्यता और नैतिकता का पाठ पढ़ाते हैं। बुरे कर्मों से बचने तथा नशे से दूर रहने की शिक्षा देते हैं। बुरी संगत से परहेज करने की नसीहत देते हैं। दूध-दही, मक्खन और पनीर या फलों के सेवन का प्रेरणादायक परामर्श देते हैं। बुजुर्ग दिन-रात अपने बच्चों की प्रगति के लिए दुआएं, प्रार्थनाएं करते हैं और मन्नतें मांगते हैं। परन्तु बड़े अफसोस की बात है आधुनिक संदर्भ में पश्चिमी सभ्यता के प्रभाव से बुजुर्गों की दुर्दशा हो रही है। उन्हें वृद्ध आश्रमों में मरने के लिए धकेला जा रहा है। घर में बुजुर्गों को आदर मान नहीं दिया जा रहा। वो घर किस्मत वाला है, जहां माता-पिता, दादा-दादी का सम्मान होता है। नई पीढ़ी के लोग मान-मर्यादाएं भूल चुके हैं। हमारी पुरानी विरासत में ऐसा कभी नहीं हुआ। श्रवण कुमार का उदाहरण हमारे सामने है। अपने कन्धे पर कांवरी उठाकर माता-पिता जो अंधे थे, उन्हें बिठाकर तीर्थ यात्रा को ले गया था। भगवान राम पिता का वचन निभाने के लिए 14 वर्ष के वनवास को चले गये थे। हमें उन महान विभूतियों से शिक्षा लेकर बुजुर्गों की सेवा करनी चाहिए। मां-बाप की सेवा ही भगवान की सेवा है। जिस तरह मां का रुतबा महान और प्रतिष्ठादायक है, पिता का दर्ज भी आकाश से ऊंचा है। मां प्रथम गुरु है, तो पिता भी आचरण और आदर्श का प्रतीक है।  बूढ़े दादा-दादी, नाना-नानी सभी पूजनीय हैं, जिनकी छत्र-छाया में बच्चे का शुद्ध विकास होता है। हमें बुजुर्गों का सम्मान करना चाहिए। पहले उन्हें खाना खिलाना चाहिए, बाद में स्वयं खाना चाहिए। बूढ़े बुजुर्ग शारीरिक रूप से कमज़ोर शिथिल हो जाते हैं। उपचार के अतिरिक्त उनकी टांगें सहलानी चाहिएं। चरण दबाकर आशीष प्राप्त करना चाहिए। केवल मातृ दिवस या पितृ दिवस मनाकर कर्त्तव्य पूर्ण नहीं हो जाता, वास्तविक रूप से श्रद्धापूर्वक उनकी सेवा करनी चाहिए। सचमुच ही वे वट वृक्ष हैं, जिनकी देखभाल जी-जान से करनी चाहिए तभी हमारा कल्याण सम्भव है।

—गांव व डाकघर फिरोजपुर कलां
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