विश्व में गहराता जा रहा जलयुद्ध का खतरा

नई दिल्ली, 14 फरवरी (एजेंसी) : दुनिया भर में लगातार बढ़ती जनसंख्या और जलवायु परिवर्तन संसाधनों को खतरे में डाल सकती है। सबसे ज्यादा खतरा पानी को लेकर है जो बहुत तेज़ी से कम हो रहा है। बहुत से जानकार और विश्लेषक आशंका जता चुके हैं भविष्य में अगला विश्व युद्ध पानी को लेकर हो सकता है। इसके संकेत अभी से दिखने भी लगे हैं। अब एक ताज़ा रिपोर्ट में बताया गया है कि जलयुद्ध के गहराते खतरे को लेकर भारत की स्थिति सबसे चिंताजनक हो सकती है। भविष्य में पानी को लेकर विश्वयुद्ध होगा या नहीं । ये अभी कहना मुश्किल है, लेकिन पानी एक अंतर्राष्ट्रीय समस्या बन चुका है। पानी को लेकर कई देशों के बीच विवाद छिड़ चुका है। बात अगर भारत की करें तो यहां भी दिल्ली-हरियाणा, पंजाब-हरियाणा और तमिलनाडू-कर्नाटक सहित कई राज्यों में जल बंटवारे को लेकर अक्सर विवाद सामने आता रहता है। इसके अलावा जल बंटवारे को लेकर भारत का पड़ोसी देशों पाकिस्तान, चीन और बांग्लादेश से भी लम्बे समय से विवाद चल रहा है। भारत के अंदर और बाहर जल बंटवारे का विवाद कितना गहरा है, इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसे लेकर सरकारों के बीच तलवारें खिंच जाती हैं। कई समाज सेवी इस मुद्दे पर अक्सर धरना प्रदर्शन करते रहते हैं। बावजूद देश की राजधानी दिल्ली सहित तमाम राज्यों में जल संकट एक बड़ी समस्या बनता जा रहा है। सरकारी स्तर पर जल संरक्षण को लेकर तमाम योजनाएं चलाई जा रही हैं और करोड़ों रुपये का बजट हर वर्ष खर्च किया जाता है। अब एक ताज़ा रिपोर्ट में भी पानी को लेकर निकट भविष्य में अंतर्राष्ट्रीय विवाद बढ़ने की आशंका व्यक्त की गई है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भविष्य में दुनिया भर में पानी को लेकर गम्भीर संघर्ष होने वाले हैं। जिसे जल युद्ध  भी कहा जा सकता है। रिपोर्ट में जलयुद्ध के लिए सम्भावित पांच नदियों को चिन्हित किया गया है। आपको जानकर हैरानी होगी कि इन पांच नदियों में से तीन भारत में हैं। चिन्हित नदियों में नील, गंगा-ब्रह्मपुत्र, सिंधु, टाइग्रिसन्यूफ्रेट्क और कोलोरोडो नदियां शामिल हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि अब भी हम जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों को दूर करने के लिये तैयार हो जाते हैं तो इस आशंका को टाला जा सकता है। अगर ऐसा नहीं हुआ तो अगले कुछ वर्षों में ही दुनिया के कई देशों में लोग पानी के लिये आपस में भिड़ पड़ेंगे। भारत में दिल्ली और मुंबई जैसे शहरों के कई एरिया में यह स्थिति अभी बन चुकी है। इससे निपटने के लिये संबंधित देशों को जल विवाद की मूल वजहों तक जाना होगा। इसके बाद प्रतिबद्ध होकर उससे निपटने के संयुक्त उपाय करने होंगे।