क्या धरती पर मंडरा रहा है महाविनाश का खतरा ?

मुंबई व पालघर में आज से दो दिनों के मौसम के लिए बताया जा रहा है कि ठंड बढ़ेगी और बरसात भी हो सकती है। फरवरी माह में यह जलवायु परिवर्तन आश्चर्य की बात मानी जाएगा पर यह आश्चर्य नहीं है। यह सब बार-बार होने वाले जलवायु परिवर्तन का नतीजा है। आम तौर पर जलवायु परिवर्तन से होने वाले खतरों पर लोग ज्यादा बात नहीं करते हैं लेकिन सरकार और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं में इसको लेकर गंभीर चिंता है और नई-नई रिपोर्ट चौंकाने वाली हैं। विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने एक रिपोर्ट में कहा कि भारत, चीन, बांग्लादेश और नीदरलैंड में समुद्री जल स्तर बढ़ गया है। इस रिपोर्ट में यह कहा गया कि बढ़े हुए समुद्री जल स्तर से अलग-अलग महाद्वीपों के कई बड़े शहर डूब सकते हैं। इनमें  शंघाई, ढाका, बैंकॉक, जकार्ता, मुंबई, मापुटो, लागोस, काहिरा, लंदन, कोपेनहेगन, न्यूयॉर्क, लॉस एंजिल्स, ब्यूनस आयर्स और सैंटियागो शामिल हैं। इस बार समुद्री जल स्तर के बढ़ने की वजह इन्सान है और यह 1971 के बाद पहली बार हो रहा है। डब्ल्यू.एम.ओ. की रिपोर्ट में बताया गया है कि 1900 के बाद से समुद्र का जल स्तर तेजी से बढ़ रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक 1993 से 2002 के बीच हर साल औसतन 2.1 मिमी जल स्तर बढ़ा था जबकि 2003 से 2012 के बीच सालाना औसतन 2.9 मिमी जल स्तर बढ़ा। वहीं 2013 से 2022 के बीच हर साल औसतन 4.5 मिमी जल स्तर बढ़ा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि तापमान के 2 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ने से समुद्री जल स्तर 2 से 6 मीटर तक बढ़ सकता है। 5 डिग्री सेल्सियस तक तापमान बढ़ने से 19 से 22 मीटर तक जल स्तर बढ़ने का खतरा है।
डब्ल्यू.एम.ओ. की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले तीन हजार सालों में समुद्र का जल स्तर इतनी तेज़ी से बढ़ना परेशानी का सबब है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि समुद्र भी पिछले 11 हजार सालों सबसे ज्यादा गर्म हुआ है। रिपोर्ट में समझाया गया है कि समुद्र के जल स्तर में हर साल औसतन 0.15 मीटर तक भी बढ़ोतरी होने से बाढ़ से प्रभावित होने वाली आबादी 20 प्रतिशत बढ़ जाएगी। समुद्र के जल स्तर में 0.75 मीटर की बढ़ोतरी होने से 40 प्रतिशत आबादी को खतरा होगा। संयुक्त राष्ट्र प्रमुख एंटोनियो गुटेरेस ने कहा कि दुनिया की 10 प्रतिशत आबादी यानी करीब 90 करोड़ लोग तटीय इलाकों में रहते हैं और समुद्री जल स्तर बढ़ने से इन पर सबसे ज्यादा खतरा है यानी धरती पर रह रहे 10 में से 1 व्यक्ति को बाढ़ की मार झेलनी पड़ेगी। उन्होंने बताया कि कई अफ्रीकी देशों में लोगों का जीवन समुद्री जल स्तर बढ़ने से खत्म हो सकता है।
गुटेरेस का कहना है कि समुद्री जल स्तर बढ़ने से कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। बढ़ते जल स्तर से 25 से 45 करोड़ लोगों के जीवन पर असर पड़ेगा। कई आइलैंड या देश गायब हो सकते हैं, साथ ही रहने के लिए जमीन और पीने के लिए पानी का खतरा भी पैदा हो जाएगा। ऐसा 80 साल से भी कम समय में हो सकता है। जल स्तर बढ़ने की सबसे बड़ी वजह जलवायु परिवर्तन है जिसकी वजह से धरती का तापमान घट-बढ़ रहा है। तापमान बढ़ने से बर्फ पिघल रही है और समुद्र भी गर्म हो रहे हैं।  संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के मुताबिक हर साल अंटार्कटिका में 150 अरब टन बर्फ पिघल रही है। 
जलवायु परिवर्तन को समझने से पहले जलवायु को समझना ज़रूरी है। जलवायु का मतलब किसी दिये गए क्षेत्र में लम्बे समय तक औसत मौसम से होता है। जब भी किसी क्षेत्र विशेष के औसत मौसम में बदलाव आता है तो उसे जलवायु परिवर्तन कहते हैं। जलवायु परिवर्तन को किसी एक खास जगह से लेकर एक साथ पूरी दुनिया में भी महसूस किया जाता है। फिलहाल जलवायु परिवर्तन का असर पूरी दुनिया में देखने को मिल रहा है। पृथ्वी का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों का कहना है कि पृथ्वी का तापमान लगातार बढ़ता जा रहा है। वैज्ञानिकों को बीते 100 सालों में पृथ्वी का तापमान 1 डिग्री फारेनहाइट तक बढ़ा हुआ होना परेशान कर रहा है। पृथ्वी के तापमान में यह परिवर्तन पृथ्वी की जनसंख्या से काफी कम हो सकता है। लेकिन इस तरह का कोई परिवर्तन मानव जाति पर बड़ा और खतरनाक असर डाल सकता है। अभी बढ़ा हुआ पृथ्वी का तापमान और महासागरों का बढ़ता जलस्तर जलवायु परिवर्तन का ही नतीजा है। जलवायु परिवर्तन के लिए प्राकृतिक और मानवीय गतिविधियां जिम्मेदार होती हैं। ऐसा 1971 के बाद पहली बार हो रहा है जब जल स्तर के बढ़ने की वजह इंसान यानी मानवीय गतिविधियां है। मानवीय गतिविधियों में तेजी से बढ़ता शहरीकरण, औद्योगिकीकरण है। 
डब्ल्यू.एम.ओ. की रिपोर्ट में बढ़ते समुद्री जल स्तर से भारत को भी खतरा है। सबसे ज्यादा खतरा मुंबई को है। 2021 में इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज यानी आई.पी.सी.सी. ने एक रिपोर्ट जारी की थी। इस रिपोर्ट के आधार पर नोएडा स्थित फर्म आर.एम.एस.आई. ने अनुमान लगाया था कि बढ़ते समुद्री जल स्तर की वजह से मुंबई, कोच्चि, मंगलौर, चेन्नई, विशाखापट्टनम और तिरुवनंतपुरम समेत कई शहर डूब सकते हैं। भारत एक तरफ हिमालय और तीन तरफ से समुद्र से घिरा है। भारत के 13 राज्यों की सीमा समुद्र से लगी हुई है। इसमें आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, केरल, कर्नाटक, उड़ीसा, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, गोवा, गुजरात, पुडुचेरी, अंडमान-निकोबार, दमण-दीव और लक्ष्यद्वीप है। ऐसे में आने वाले समय में भारत को बड़ा खतरा हो सकता है। समुद्र का जल स्तर बढ़ने की वजह से निचले तटीय इलाकों में बसे गांवों और इलाकों पर सबसे ज्यादा असर पड़ेगा। पिछले दशकों में मुंबई में पहले ही भारी बारिश हो चुकी है। वहीं पश्चिम बंगाल भी दो चक्रवातों अम्फान और चक्रवात यास के बाद तबाही झेल चुका है।
यूनेस्को विश्व विरासत के मुताबिक बंगाल की खाड़ी क्षेत्र सुंदरबन भारत में सबसे ज्यादा जोखिम वाले क्षेत्रों में से एक है। 1891 और 2018 के बीच के आंकड़ों से पता चला है कि इस अवधि के दौरान बंगाल की खाड़ी क्षेत्र में 41 गंभीर चक्रवाती तूफान और 21 चक्रवाती तूफान आए थे। ये सभी घटनाएं मई महीने की हैं। ऐसा नहीं कि भारत इस खतरे को देखकर चुप करके बैठा है। जलवायु परिवर्तन के बढ़ते खतरे को देखते हुए भारत ने साल 2008 में राष्ट्रीय कार्य योजना की शुरुआत थी जिसका मकसद सरकार की अलग-अलग एजेंसियों, वैज्ञानिकों, उद्योग और आम जनता को जलवायु परिवर्तन से पैदा होने वाले खतरे और इससे मुकाबला करने के कोशिशों के बारे जागरूक करना है। इस कार्ययोजना में 8 मिशन शामिल हैं।
वैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों का मानना है कि ग्लोबल वार्मिंग में कमी के लिए मुख्य रूप से सीएफसी गैसों का उत्सर्जन कम करना होगा और इसके लिए फ्रिज, एयर कंडीशनर और दूसरे कूलिंग मशीनों का इस्तेमाल कम करना होगा या ऐसी मशीनों का उपयोग करना होगा जिनसे सीएफसी गैसें कम निकलती हैं। औद्योगिक इकाइयों की चिमनियों से निकलने वाला धुआं हानिकारक है और इनसे निकलने वाली कार्बन डाईऑक्साइड गर्मी बढ़ाती है। इन इकाइयों में प्रदूषण रोकने के उपाय करने होंगे। वाहनों में से निकलने वाले धुएं का प्रभाव कम करने के लिए पर्यावरण मानकों का सख्ती से पालन करना होगा। उद्योगों और खासकर रासायनिक इकाइयों से निकलने वाले कचरे को फिर से उपयोग में लाने लायक बनाने की कोशिश करनी होगी और प्राथमिकता के आधार पर पेड़ों की कटाई रोकनी होगी तथा जंगलों के संरक्षण पर बल देना होगा। अक्षय ऊर्जा के उपायों पर ध्यान देना होगा यानी अगर कोयले से बनने वाली बिजली के बदले पवन ऊर्जा, सौर ऊर्जा और पनबिजली पर ध्यान दिया जाए तो आबोहवा को गर्म करने वाली गैसों पर नियंत्रण पाया जा सकता है।