नोटबंदी से आखिर क्या हासिल हुआ ?


नोटबंदी को दो साल से ज्यादा होने को आए, लेकिन उससे जुड़ी आश्चर्यजनक बातें एक के बाद एक सामने निकलकर आ रही हैं। ताजा खुलासा रिजर्व बैंक ऑफ  इंडिया ने किया है। नोटबंदी को लेकर आरबीआई ने सरकार को साफ  तौर पर आगाह किया था कि नोटबंदी से कालेधन पर कोई ठोस असर नहीं पड़ेगा, बल्कि इससे आर्थिक वृद्धि पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। आरबीआई ने सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत मांगी गई एक जानकारी के जवाब में यह महत्वपूर्ण बात कही है। एक आरटीआई कार्यकर्ता के सूचना के अधिकार कानून के तहत पूछे गये सवाल के जवाब में आरबीआई ने हाल ही में यह बताया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 8 नवम्बर, 2016 को नोटबंदी के एलान से सिर्फ  ढाई घंटे पहले आरबीआई निदेशक मंडल की बैठक हुई थी। निदेशक मंडल में आरबीआई के मौजूदा गवर्नर शक्तिकांत दास भी शामिल थे। इस बैठक में आरबीआई के तत्कालीन गवर्नर उर्जित पटेल और तत्कालीन वित्त सचिव अंजलि छिब दुग्गल, आरबीआई के डिप्टी गवर्नर आर. गांधी एवं एसएस मूंदड़ा शामिल थे। 
आरटीआई के जवाब में कहा गया है कि बोर्ड की बैठक में सरकार के नोटबंदी के अनुरोध को मंजूरी दी गई थी, लेकिन यह भी कहा गया था कि इससे काले धन पर कोई असर नहीं पड़ेगा। निदेशक मंडल ने इस बैठक में सरकार को राय दी थी कि ज्यादातर कालाधन नकद रूप में नहीं है, बल्कि सोना और अचल सम्पत्ति के रूप में है। लिहाजा सरकार के इस कदम का वैसी संपत्ति पर ठोस असर नहीं होगा। यही नहीं नकली नोट के बारे में निदेशक मंडल की राय थी कि कुल 400 करोड़ रुपये इस श्रेणी के अंतर्गत हैं, जो कुल मुद्रा का बहुत कम प्रतिशत है। आरबीआई के इस खुलासे के बाद यह बात पूरी तरह से स्पष्ट हो गई है कि वह भी नोटबंदी के पक्ष में नहीं था, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दबाव और जिद्द में आरबीआई ने फैसले का समर्थन किया। जिससे देश को आगे चलकर काफी आर्थिक संकट झेलना पड़ा। जिन उद्देश्यों के लिए नोटबंदी की गई थी, उनमें से एक भी हासिल नहीं हुआ।  
8 नवम्बर, 2016 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 500 और 1000 के नोटों को बंद करने का फैसला लिया था और जनता को बैंकों में अपने पास जमा पुराने नोट बदलवाने के लिए 30 दिसम्बर 2016 तक यानी 50 दिनों की मियाद दी गई थी। ये नोट हटते ही देश में आर्थिक एमरजेंसी के हालात बन गए थे। देखते ही देखते देश की 87 फीसदी यानी 15 लाख करोड़ रुपए की मुद्रा, भारतीय अर्थव्यवस्था से बाहर हो गई थी। सरकार द्वारा अचानक थोपे गए इस फैसले से सभी प्रभावित हुए। नोटबंदी से हो रही दिक्कतों की वजह से देश में 100 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई। बावजूद इसके मोदी सरकार और सत्ताधारी पार्टी भाजपा नोटबंदी के अपने इस कदम को, एक ‘क्रांतिकारी’ कदम बतलाती रही। सरकार की दलीलें थीं कि भ्रष्टाचार, काले धन और सीमा पार से होने वाली नकली नोटों की तस्करी पर लगाम लगाने के मद्देनज़र उसने बड़े नोट बदलने का फैसला लिया है। यह बात अलग है कि सरकार के इस कदम से न तो भ्रष्टाचार खत्म हुआ और ना ही काले धन पर कोई रोक लगी। आरबीआई ने खुद ये बात मानी कि नोटबंदी के दौरान देश में प्रचलन में रहे 15.41 लाख करोड़ रुपए के प्रतिबंधित नोटों में से 15.31 लाख करोड़ रुपए प्रणाली में वापस लौट आए हैं। यानी नकली नोट और काला धन पकड़ने के उसके सारे दावे झूठे निकले। उल्टे नोटबंदी की वजह से भारतीय अर्थ-व्यवस्था जो कोमा में गई, उससे अभी तक नहीं उबर पाई है। अपने आर्थिक सर्वे में खुद सरकार ने इस बात को स्वीकारा कि नोटबंदी की वजह से देश की जीडीपी में तकरीबन 2 फीसदी की गिरावट आई है।  
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनोमी (सीएमईआई) के ‘कंज्यूमर पिरामिड्स हाऊसहोल्ड सर्विस’ (सीपीएचएस) के आंकड़ों के मुताबिक साल 2016-2017 के अंतिम तिमाही में तक़रीबन 15 लाख नौकरियां गई। भारतीय जनता पार्टी के सहयोगी संगठन भारतीय मजदूर संघ ने खुद नोटबंदी पर ये कहा था कि, ‘‘असंगठित क्षेत्र की ढाई लाख यूनिटें बंद हो गईं और रियल एस्टेट सैक्टर पर बहुत बुरा असर पड़ा है। बड़ी तादाद में लोगों ने नौकरियां गंवाई हैं।’’ नोटबंदी का ऐलान करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बात और कही थी कि सरकार के इस कदम से देश के अंदर नक्सलियों और देश के बाहर से फंडिंग पाने वाली आतंकी हरकतों पर अंकुश लगेगा। लेकिन आज कश्मीर में क्या हालात हैं, सबको मालूम हैं। प्रधानमंत्री के दावे से इतर, आतंकी हमलों में और भी ज्यादा बढ़ोतरी हुई है। नोटबंदी से कोई फायदा तो नहीं हुआ, बल्कि इसे लागू करने में रिजर्व बैंक को हज़ारों करोड़ रुपए का नुकसान ज़रूर हुआ। नए नोटों की प्रिंटिंग के लिए रिजर्व बैंक को 7,965 करोड़ रुपए खर्च करने पड़े। इसके अलावा नकदी की किल्लत नहीं हो, इसके लिए ज़्यादा नोट बाज़ार में जारी करने के चलते 17,426 करोड़ रुपए का ब्याज़ भी चुकाना पड़ा। इसके अलावा देश भर के एटीएम को नए नोटों के मुताबिक कैलिब्रेट करने में भी करोड़ों रुपए का ख़र्च सिस्टम को उठाना पड़ा है।
 नोटबंदी के इस अकेले फैसले से देश में इतना सब कुछ हो गया, लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अभी भी यह बात मानने को तैयार नहीं कि उनका यह फैसला गलत था। उन्होंने बिना किसी तैयारी के देश को आर्थिक अनिश्चितता में खड़ा कर दिया था। संसद में अपने फैसले का बचाव और उसकी तारीफ  करते हुए उन्होंने नोटबंदी को दुनिया में किया गया ऐसा सबसे बड़ा कदम करार दिया, जिसकी कोई तुलना नहीं है। वहीं वित्त मंत्री अरुण जेटली ने नोटबंदी के फैसले के फायदे गिनाते हुए कहा, ‘दीर्घावधि में इससे कर राजस्व बढ़ेगा और यह तेज़ी से राजकोषीय मजबूती में तबदील होगा।’
जबकि नोटबंदी से जुड़े मामले में ऐसा बिल्कुल नहीं था। आरटीआई अधिनियम में कुछ ऐसे विशेष प्रावधान भी शामिल हैं, जिनके तहत सार्वजनिक करने से छूट प्राप्त रिकार्ड को भी सार्वजनिक किया जा सकता है। प्रधानमंत्री कार्यालय, वित्त मंत्रालय और रिजर्व बैंक के इस नकारात्मक रवैये पर तत्कालीन केन्द्रीय सूचना आयुक्त एम. श्रीधर आचार्युलु ने अपने एक आदेश में स्पष्ट किया था कि ‘‘सभी सरकारी प्राधिकारियों की यह नैतिक, संवैधानिक, आरटीआई आधारित लोकतांत्रिक ज़िम्मेदारी है कि वह नोटबंदी से प्रभावित हुए हर नागरिक को इस संबंधी सूचना, इसके कारण, प्रभाव और यदि कोई नकारात्मक असर पड़ा है, तो उसके लिए उठाए गए उपचारात्मक कदमों की जानकारी दे।’’ बहरहाल देर से ही सही, नोटबंदी से ज़ुड़ी सभी जानकारियां एक के बाद एक देश के सामने आ रही हैं और देशवासियों को मालूम चल रहा है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नोटबंदी को लेकर जो बड़े-बड़े वादे और दावे किए थे, वे सब झूठे थे। नोटबंदी से ना तो कालाधन वापिस आया और ना ही उतने नकली नोट पकड़ में आए, जितना सरकार ने दावा किया था। नोटबंदी से गर कोई फायदा हुआ, तो वह है टैक्स भरने वाले लोगों की संख्या में कुछ लाख की बढ़ोतरी। 
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