मृत्यु से साक्षात्कार

तीन मित्र एक जंगल से गुजर रहे थे। उन्होंने वहां एक महात्मा को तपस्या करते देखा। तीनों उनके पास पहुंचे और बोले, ‘महात्मन्, हम लोग मृत्यु का साक्षात्कार करना चाहते हैं।’ महात्मा ने एक गुफा की ओर इशारा करके कहा, ‘तुम उस गुफा में जाओ, वहां तुम्हारा मृत्यु से साक्षात्कार हो सकता है। किंतु मैं सावधान करता हूं कि भूल से भी एक-दूसरे से छल-कपट न करना, अन्यथा तुम्हारा जीवन संकट में पड़ सकता है।’ तीनों गुफा में पहुंचे। उन्होंने गुफा में झांका तो वहां सोने की अशर्फियों का ढेर देखकर विस्मय में पड़ गए। उन्होंने एक-दूसरे से कहा, ‘महात्मा ने तो बताया था कि यहां मृत्यु का साक्षात्कार हो सकता है, लेकिन यहां तो सोने का ढेर लगा है। फिलहाल हम इस सोने को ले जाकर आपस में बांट लेते हैं। बाद में किसी दिन यहां आकर मृत्यु को ढूंढ लेंगे।’इसके बाद सोने की अशर्फियां घर ले जाने की योजना पर विचार हुआ। एक ने सुझाव दिया, ‘शाम घिर आई है, और थोड़ी देर में रात हो जायेगी। इसलिए रात में इसी गुफा में रुकते हैं। तुम दोनों पास के गांव से खाने का सामान और पानी ले आओ, तब तक मैं यहां रखवाली करता हूं।’ दोनों साथी चले गए। थोड़ी देर बाद उनमें से एक पास के झरने से पानी लेकर लौटा। जैसे ही उसने गुफा में प्रवेश किया, वहां मौजूद उसके साथी ने तलवार से उसकी हत्या कर दी। वह नहीं चाहता था कि सोने के इस ढेर में से उसे किसी को हिस्सा देना पड़े। कुछ ही देर बाद उसका दूसरा साथी भी गांव से भोजन लेकर लौटा, तो गुफा में मौजूद उसके मित्र ने उसकी भी हत्या कर दी। दोनों साथियों को मौत के घाट उतारने के बाद निश्चिंत भाव से उसने सारा सोना बटोरा और लाए गए भोजन को खाने लगा। लेकिन भोजन करते ही उसकी भी मृत्यु हो गई। भोजन लाने वाले साथी ने भोजन में ज़हर मिला दिया था, ताकि सारे सोने को वही ले सके। महात्मा की चेतावनी याद नहीं रखकर लोभ में एक दूसरे से छल करने वाले मित्रों ने मृत्यु का साक्षात्कार तो किया, पर इसके लिए उन्हें अपना जीवन गंवाना पड़ा।

—देवेन्द्र शर्मा