पर्यावरण से छेड़छाड़ का नतीजा नैसर्गिक आपदाएं

आज देश को कई नैसर्गिक आपदाओं का सामना करना पड़ रहा है। ये नैसर्गिक आपदाएं मानव द्वारा ही निर्मित की जा रही हैं, ऐसा कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा। वृक्ष मानवीय सभ्यता का मेरूदंड हैं।  वृक्ष के बिना मानव जीवन तथा पर्यावरण की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। वृक्षों पर ही मानव जाति का अस्तित्व टिका है। मानव हो या पशु-पक्षी सभी वृक्षों की बदौलत सांस ले रहे हैं। ऐसी महत्त्वपूर्ण संपदा की उपेक्षा कर मनुष्य स्वयं के पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहा है। स्वस्थ पर्यावरण सोना, चांदी, हीरे-मोती तथा यूरेनियम से भी अधिक मूल्यवान है क्योंकि सारी चीजें तो फिर से प्राप्त की जा सकती हैं, परंतु पर्यावरण नहीं। यदि एक बार इसका विनाश हुआ तो फिर यह सदा के लिए खो जाएगा और उसी के साथ लुप्त हो जाएगा सारा सृष्टि-क्र म।
विश्व की इस सबसे ज्वलंत समस्या को हल करने के लिए आवश्यकता है पर्यावरण के प्रति समाज के हर वर्ग में जागरूकता फैलाए जाने की। पर्यावरण को संतुलित बनाये रखने हेतु शासन सहित हम सभी का कर्त्तव्य बनता है कि पेड़ लगायें न कि पेड़ काटें। नैसर्गिक आपदाएं ऐसी समस्या है जो मानव जाति के ज्ञान एवं समझ को चुनौती दे रही है और संपूर्ण विश्व के साथ मिलकर इस पर शोध करने की जरूरत है। अगर हम इस दिशा में उचित कदम नहीं उठाएंगे तो हमारी समृद्धि और सुरक्षा भी खतरे में पड़ जाएगी। 
ग्लोबल वार्मिंग का मानवीय जीवन पर भी गंभीर असर पड़ रहा है। व्यवसायिक मछली पालन, कृषि एवं प्राकृतिक संसाधन ही मानव जीवन का मुख्य आधार है। ग्लोबल वार्मिंग का बुरा असर उद्योगों के स्वार्थ बुनियादी ढांचे पर भी पड़ना शुरू हो चुका है जिसकी परिणति स्वरूप प्रत्येक जीव संरचना को प्राकृतिक आपदाओं से सामना करके भुगतान चुकाना पड़ रहा है।
हालांकि दुर्भायवश नैसर्गिक आपदाओं से संबंधित शोध भूमि और वायुमंडल पर पड़ने वाले उसके असर तक ही केंद्रित रहे हैं लेकिन मानव यह भूल गया कि साफ नदियां, उपजाऊ खेत, हरे भरे ऊंचे पहाड़, झने जंगल देश के मजबूत  स्तंभ हैं। आज कितनी भी बड़ी बड़ी तकनीक निकाल लें लेकिन प्रकृति से अगर छेड़छाड़ करेंगे तो आने वाले दिनों में हम सभी सुखी रह ही नहीं सकते।
गत दिनों उत्तराखंड में नैसर्गिक आपदा के कारण ही विकास के नाम पर उपजी परियोजनाओं ने पर्वत के नैसर्गिक स्वरूप को बिगाड़ दिया।
 मौसम का मिजाज बदलने में भी उनकी अहम भूमिका है। प्रकृति अपनी नैसर्गिक अवस्था में वायुमंडल में जमा वाष्प को समान रूप से वितरित करती है। जबरन किए गए मानवीय हस्तक्ष्ेप का नतीजा बादलों के फटने के रूप में सामने आता है। विकास के लिए बड़े पैमाने पर जंगलों को साफ किया गया, विस्फोटकों का बेतहाशा इस्तेमाल कर पहाड़ काटे गए, लम्बी सुरंगें बनाई गई हैं, यह सब पर्वत को कमजोर करने के लिए काफी था।
प्रकृति की सुंदर वादियों में चौड़ी सड़क निर्माण करने के लिए बारूद का इस्तेमाल किया गया। वही बारूद प्रकृति आज नैसर्गिक आपदाओं के रूप में लोगों को वापस कर रही है तो हायतौबा मची है। पर्यावरण के साथ लगातार किए जा रहे खिलवाड़ में यदि मानव इस महत्त्व को नहीं समझ पाया तो आने वाले समय में नैसर्गिक आपदाएं और बढ़ेंगी जिसकी हमें भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है। (युवराज)