ऐलनाबाद उपचुनाव है मुख्यमंत्री की दूसरी अग्नि-परीक्षा 


हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को सत्ता की दूसरी पारी में दो साल पूरे करते-करते दूसरी बार अग्नि परीक्षा से गुजरना पड़ रहा है। किसान आंदोलन के बीच ऐलनाबाद उप- चुनाव हो रहा है। भाजपा नेताओं का दावा है कि पार्टी के उम्मीदवार गोबिंद कांडा बड़ी जीत दर्ज करेंगे। सच यह है कि गोबिंद कांडा को गांवों में किसानों के विरोध का सामना करना पड़ रहा है। सोशल मीडिया पर भाजपा नेताओं का गांवों में प्रवेश वर्जित करने के बोर्ड दिखाए जा रहे हैं। ऐसी स्थिति में कांडा कैसे लोगों तक अपनी बात पहुंचाएंगे? मुख्यमंत्री खट्टर इससे पहले बरौदा क्षेत्र में अग्नि परीक्षा से गुजर चुके हैं। तब भी किसान आंदोलन चल रहा था। तब भाजपा-जजपा गठबंधन की नई-नई सरकार बनी थी। आमतौर पर उप चुनाव के नतीजे सत्तारूढ़ दल के पक्ष में जाते हैं। सरकार ने तब बरौदा के विकास के खूब दावे किए थे। उप चुनाव को जाट-गैर जाट बनाने के भी प्रयास किए गए, लेकिन परिणाम भाजपा के पक्ष में नहीं आया। क्या ऐलनाबाद में भाजपा के गोबिंद कांडा जीत पाएंगे, इसके लिए दो नवम्बर तक इंतजार करना पड़ेगा। 
कौन थे भाजपा टिकट के दावेदार?
भाजपा में ऐलनाबाद उपचुनाव के लिए टिकट के दावेदार कौन थे? पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष ओम प्रकाश धनखड़ ने दावा किया था कि 17 कार्यकर्त्ताओं ने टिकट की इच्छा जाहिर की थी। किसान आंदोलन के बीच चुनाव लड़ने के इच्छुक ये कौन लोग थे, पार्टी की तरफ  से आज तक इनका खुलासा नहीं किया गया है। अगर पार्टी अपने निष्ठावान कार्यकर्त्ताओं पर ही भरोसा करती है तो बाहर से दो-तीन दिन पहले भाजपा में आए गोबिंद कांडा को टिकट क्यों दिया गया? भाजपा विरोधी लोग सवाल पूछ भी रहे हैं कि क्या भाजपा में कोई भी ऐसा नेता नहीं था, जो जीतने की ताकत रखता हो। 
इनैलो के प्रधान महासचिव अभय सिंह चौटाला तो गोबिंद कांडा को ‘उधार’ का उम्मीदवार बता रहे हैं। लोग यह भी कह रहे हैं कि क्या भाजपा की नीतियां समय के हिसाब से बदलती रहती हैं। दो साल पहले विधानसभा चुनावों में जब पार्टी को 40 सीटें मिली थीं तो भाजपा को सरकार बनाने के लिए सिरसा के विधायक गोपाल कांडा ने समर्थन देने की इच्छा जाहिर की थी, लेकिन पूर्व केंद्रीय मंत्री उमा भारती ने उन्हें पार्टी से दूर रखने की बात कही थी। वजह यह थी कि गोपाल कांडा एक युवती को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोपी थे। दो साल बीतते-बीतते ऐसा क्या हो गया कि भाजपा ने गोपाल कांडा के भाई गोबिंद कांडा को न केवल पार्टी में शामिल कर लिया, बल्कि ऐलनाबाद उप चुनाव के लिए हाथों-हाथ टिकट भी दे दिया। 
चली तो कुमारी सैलजा की ही
ऐलनाबाद उपचुनाव में कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष कुमारी सैलजा की चली। सैलजा ने ही पवन बैनिवाल को भाजपा छोड़ने के बाद कांग्रेस में शामिल करवाया था। जाहिर है, पवन बैनिवाल बिना शर्त कांग्रेस में शामिल हुए थे, लेकिन पर्दे के पीछे जरूर उन्हें उप चुनाव में टिकट देने का वादा किया गया होगा। सैलजा ने उन्हें टिकट दिलवा कर अपना वादा निभाया भी। पवन बैनिवाल दो बार ऐलनाबाद क्षेत्र से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ चुके थे और दोनों ही बार वह दूसरे स्थान पर रहे। किसान आंदोलन के चलते पवन का भाजपा से मोहभंग हो गया और उन्होंने केंद्र के कृषि कानूनों के खिलाफ  पार्टी छोड़ दी। भाजपा के लिए यह एक बड़ा झटका था। भाजपा के राज में चेयरमैन रह चुके पवन बैनिवाल के लिए पार्टी बदलना कितना फायदेमंद साबित होगा, यह दो नवम्बर को ही साफ  होगा, लेकिन इतना जरूर है कि विधानसभा में पहुंचने के लिए इस उप-चुनाव में वह कोई कोर कसर नहीं छोड़ेंगे। 
भरत सिंह की नाराज़गी के मायने
ऐलनाबाद क्षेत्र में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता भरत सिंह बैनिवाल की नाराज़गी के क्या मायने हैं। भरत सिंह को पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के खेमे से माना जाता है। जब अभय सिंह चौटाला ने विधायक पद से इस्तीफा दिया, तब पवन बैनिवाल कांग्रेस में नहीं आए थे। ऐसे में उम्मीद थी कि भरत सिंह ही उप-चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार होंगे। चुनाव लड़ने के लिए उन्होंने अपनी तैयारियां भी शुरू कर दी थीं। ऐलनाबाद में पिछले चालीस साल से वह कांग्रेस का झंडा थामे हुए हैं। वह इस क्षेत्र से कई चुनाव लड़ चुके हैं। एक बार विधायक भी रह चुके हैं। उनका दावा भी है कि उन्होंने हुड्डा सरकार के दौरान अपने इलाके में काफी विकास कार्य करवाए थे। ऐसे में टिकट कटने पर उनका नाराज होना स्वाभाविक भी है। जब भरत सिंह से पूछा गया कि अब उनका अगला कदम क्या होगा, तो बोले कि इस बारे जनता फैसला करेगी। भले ही वह साफ.-साफ कुछ कहने से बच रहे हों, लेकिन उनके समर्थकों को मालूम है कि मतदान के दिन करना क्या है। ऐसे में कहा जा सकता है कि कांग्रेस का भीतरघात के खतरे से बच पाना मुश्किल है। 
नेहरा का भाजपा को झटका
ऐलनाबाद उपचुनाव से पहले भाजपा को उस समय बड़ा झटका लगाए जब पूर्व शिक्षा मंत्री जगदीश नेहरा ने अपने समर्थकों के साथ पार्टी छोड़ दी। नेहरा कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष कुमारी सैलजा से बातचीत के बाद कांग्रेस में शामिल भी हो गए। इस मौके पर कांग्रेस मामलों के प्रभारी विवेक बंसल और विपक्ष के नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा भी मौजूद थे। भजन लाल सरकार में दो बार कैबिनेट मंत्री रह चुके नेहरा सिरसा जिले के वरिष्ठ नेताओं में एक हैं और उनकी छवि एक जनाधार वाले सौम्य राजनेता की है। उनके बेटे सुरेंद्र नेहरा तो काफी पहले ही भाजपा को अलविदा कह चुके हैं। जगदीश नेहरा ने ऐसे समय में भाजपा छोड़ने का फैसला किया है, जब सिरसा जिले के ऐलनाबाद क्षेत्र में हो रहे उप चुनाव में पार्टी तिकोनी लड़ाई में उलझी हुई है। इस मौके पर भाजपा को उनकी ज्यादा जरूरत थी। जगदीश नेहरा किसान परिवार से संबंध रखते हैं और वह इस बात से दुखी थे कि केंद्र सरकार ज़िद पर अड़ी है और लम्बे आंदोलन के बाद भी कृषि कानूनों के मामले में किसानों की बात नहीं सुनी जा रही है। हालांकि, नेहरा पुराने कांग्रेसी हैं और जब वह भाजपा में शामिल हुए थे, तब अंदाज लगाए गए थे कि शायद ही वह भाजपा में एडजस्ट हो पाएं। ऐसा ही हुआ भी और ऐलनाबाद उप चुनाव के मौके पर उन्होंने भाजपा को झटका दे दिया।  
क्या अभय के फैसले पर मुहर लगेगी?
क्या ऐलनाबाद क्षेत्र के लोग इनैलो के प्रधान महासचिव अभय सिंह चौटाला के विधायक पद से इस्तीफा देने के फैसले को सही ठहराएंगे? क्या आंदोलनकारी किसान उप चुनाव में केंद्र के कृषि कानूनों के खिलाफ  मतदान करेंगे? क्या यह उप चुनाव कृषि कानूनों को लेकर जनमत संग्रह है? क्या इस उप चुनाव का भाजपा-जजपा गठबंधन सरकार पर कोई असर पड़ेगा? ये कुछ ऐसे सवाल हैं, जो ऐलनाबाद क्षेत्र के लोगों के बीच चर्चा का विषय बने हुए हैं। चुनाव परिणाम आने के बाद ही इन सवालों का सही जवाब मिल पाएगा लेकिन इनैलो के कार्यकर्त्ता मानते हैं कि अभय सिंह ने इस्तीफा देने से पहले इस मुद्दे पर किसान संगठनों से बातचीत की थी। किसानों की राय पर ही उन्होंने विधायक पद छोड़ा था। अब उप चुनाव से पहले भी नाथूसरी चोपटा में फिर एक किसान महापंचायत के जरिए उन्होंने पूछा था कि क्या उन्हें मैदान में उतरना चाहिए? जब पूरी पंचायत ने एक सुर में समर्थन किया तो ही अभय सिंह ने अपना नामांकन पत्र दाखिल करने का निर्णय लिया था। इनैलो कार्यकर्त्ताओं का फर्ज बनता है कि वे पार्टी उम्मीदवार की जीत के दावे करें, लेकिन असल में किसान किसका साथ देंगे, यह दो नवम्बर को ही पता चलेगा। 
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